“बुरा ..न मानें , बाबा !” बेहद नरम आवाज़ में वह बोली थी. “भीख न मांगूं तो …और क्या करू …?” उस ने मुझे प्रश्न पूछा था.
“काम ….!” मैंने आदतानुसार उसे काम का ही नुस्खा पकडाया था.
“करती थी …., काम ! सात-सात कोठियों का काम करती थी …! सात सौ रूपए पाती थी…..!!”
“कोई है नहीं …., तुम्हारा ….?” मैंने उसे फिर टोका था.
“था …! वो भी था …! हमें दुल्हिन बना कर दिल्ली वही तो लाया था. दो हज़ार की पगार पाता था. ” उस का चेहरा तनिक खिल आया था. “जीवट वाला मरद था ….!” वह संभल कर बोली थी. “बहुत ही भला आदमी था. ” उस के स्वर आद्र हो आए थे. “हम का बोला – ला ! करवाचौथ की महदी लगा दूं …?” में तो उसे देखती ही रह गई थी. “मरद -मानस हो कर ….?” में पूछ बैठी थी. “सो कुछ नहीं , ला ….” वह अब चुप थी. उस की आँखें डबडबा आइ थीं. शायद वह रो देना चाहती थी. उस के होठ कांपने लगे थे.
“फिर ….?” मैंने उस का सोच तोडा था.
“ये ….देखो …!” उस ने अपनी दोनों हथेलियाँ मेरे सामने तान दी थीं. “ये सूरज ….और ये चाँद !” उस ने अपनी हथेलिओं पर छपे सूरज और चाँद दिखाए थे. “दो बेटे होंगे , तेरे ! ये —सूरज …और ये चाँद !” वो बोला था. “दोनों को पढाएंगे …जी-जान से पढाएंगे …!” उस का इरादा था. “अगर में पढ़ा-लिखा होता तो ….तू भी आज राज महलों ….और ताज महलों मैं रह रही होती …झुग्गी में नहीं ! हम मिल कर ….अपने सूरज – चाँद को …..”
“पढ़ाया था ….?” मैंने बात काटी थी.
“पढ़ाया था ….! सूरज इंग्लैंड गया ….और चाँद अमरीका !!” उस ने किलक लील कर कहा था.
“और ….वो ….?”
“सुरग सिंधार गए …..!” भारी मन से उस ने बताया था. “सूरज जब इंग्लैंड गया तो ….वो बोला , ‘क्या करेगी टीम-ताम का ….? ला बेच आता हूँ ! सूरज के काम आएगा , पैसा !” वह पलट कर मेरी आँखों में देखने लगी थी. “और जब चाँद अमरीका गया …तो झुग्गी बेच दी ! हम फिर से चौड़े मैं रहने लगे थे. बस …..ऐसी बिमारी लगी …कि …लेकर रही !” वह रोने लगी थी.
में पसीज गया था. में अब ….विकल्प-विहीन था ….में द्रवित था ! आज मुझे उस के सूरज और चाँद पर क्रोध आ रहा था. ‘नालायक !’ में कहना चाहता था. लेकिन तभी मेरे ज़हन में पूरे भारत का मानचित्र छप गया था. मैं देख रहा था ….कि बूढ़े…बेकार …हुए माँ-बाप को छोड़-छोड़ कर उन की समर्थ हुई संतानें विदेशों की और भागी चली जा रहीं थीं ….
और जो नहीं जा रहे थे ….वो देश के ही दुश्मन बन गए थे.
“बुरा क्यों मानते हैं, बाबा ….? वक्त है …..कभी उलटा जाता है ….तो कभी सीधा !” वह कहती रही थी .
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