कुछ घर भी काटते हैं,
ज़ोर-ज़ोर से नहीं,
पर धीमे से आपको खोखला बनाते हैं।
उनकी ज़िन्दगी का खोया हुआ वक़्त,
उनकी खोयी हुई हँसी,
वो बार-बार मांगते हैं।
उनकी पीली, हरी और लाल दीवारे,
टूट जाएँगी अगर आप नहीं माने;
उनके बिस्तर पर बिखरी हुई यादें,
समेट नहीं पाएँगीअगर आप नही लौटे;
अपनी दास्ताओ में खोये हुए रहते हैं कुछ घर,
सवर जाने की उम्मीद में,
खुद को जिंदा रखने की कोशिश में,
कुछ घर भी काटते हैं,
ज़ोर-ज़ोर से नहीं,
पर धीमे से आपको अपने हालात बतलाते हैं ।
~ संस्कृति वर्मा