नेतृत्व का उद्देश्य लोगों को सही रास्ता बताना है! हुकूमत करना नहीं
अक्सर हम देखते हैं कि कोई सामाजिक संस्था हो या कोई संगठन या कोई कोई राजनीतिक पद, इन सब पर जो भी व्यक्ति मनोनयन, चयन या निर्वाचन द्वारा जब काबिज़ होता हैं तो उसके बाद उसका रुतबा ही बदल जाता हैं उसको ऐसा लगता हैं कि मै तो राजा हूँ और बाकि सब प्रजा। अक्सर पद पाकर व्यक्ति अपने मद में इतना मगरूर हो जाता हैं और अपने नैतिक कर्तव्यों का समुचित निर्वहन करने में असफल रहता हैं। नतीजन आवाम को फिर से बदलाव की आवश्यक्ता को महसूस करती हैं। अगर हमें समाज , संगठन या विधि द्वारा स्थापित कोई भी प्रावधान के अंतर्गत कोई भी पद मिलता हैं तो निश्चय ही यह हमारी खुशनसीबी हैं। मेरे विचार से हमे पद ग्रहण करके अपने स्वभाव में विनम्रता लानी चाहिये, उग्रता नही।हमे किसी भी तरीके से अगर नेतृत्व करने का मौका मिला हैं तो उस सुअवसर का बेहतरीन प्रयोग करते हुए हमें कर्मठ बनकर अपने कार्यकर्ताओं को साथ लेकर अपनी योग्यता को सेवा के माध्यम से परिलक्षित करना चाहिये ताकि अन्य सभी हमारे अच्छे कार्यो का अनुसरण करें। हमे यह स्वीकार करना पड़ेगा कि नेतृत्व का अर्थ लोगो को सही रास्ता बताना हैं न की हुक़ूमत करना। समय सब को मौका देता हैं, हर बार इतिहास अपने आप को दोहराता हैं जब तक हमे इस सच्चाई का अनुभव होता हैं तब तक वो सुनहरा मौका हमारे हाथ से कोशों दूर निकल चुका होता हैं।