समर कोट में 6 तारीख को होने वाले उत्सव में गंधर्व सैन के ग्यारह राजकुमारियों और राजकुमारों को नहीं आना था।
उनके पास धन माल पहुंचने वाला था। सोने के सिक्के, चांदी के तोहफे और हीरे पन्ने बड़ी तादात में समर कोट से भेजे जा रहे थे। जालिम का आदेश था – लोगों के बीच में इनका प्रदर्शन किया जाए और महा रैली के बाद मुफ्त बांटने का आश्वासन दिया जाए। 36 हजार टन नारकौटिक्स भी जल्दी ही गोआ पहुंचने वाले थे। रोलेंडो के एजेंटों ने माल पहुंचाना था और उन्हें बदले में पेमेंट करना था। जालिम का आदेश था कि जनता में नशा मुफ्त बांटा जाए और कोशिश की जाए कि 19 अप्रैल की लंदन में होने वाली रैली में दुनिया भर के लोग पहुंचें – नशे में धुत। लंदन में पैर रखने के लिए एक इंच जमीन नहीं बचनी चाहिए – जालिम का हुक्म था।
दिल्ली से हाकिम साहब ने दो पोशाकें, दो मुकुट और गले के दो मुगली हार तैयार करा कर भेजने थे।
नएला के लिए हुक्म था कि वो जहांगीरी मुगल मीनू उत्सव के लिए तैयार करेगा।
अप्रैल में मौसम का मिजाज बड़ा ही खुशनुमा रहता है। समर कोट में इसे बसंत ऋतु मानते हैं। प्रेमी और प्रेमिकाओं के लिए खुले में मिलने जुलने के लिए उपयुक्त मौसम होता है।
6 अप्रैल का उत्सव इस बार बड़े ही जोशो-खरोश के साथ मनाया जा रहा था। जालिम की विश्व विजय का संदेश हर समर कोट निवासी के पास पहुंचा हुआ था। एक अलग ही उल्लास लोगों के मन प्राण को प्रेरित किए हुए था।
6 अप्रैल की शाम को चार सफेद घोड़ों की बग्गी में जालिम की सवारी निकली थी।
बग्गी के शीर्ष पर तरन्नुम बेगम गंधर्व परिपाटी के अनुसार सजी वजी बैठी थीं। आगे की सीट पर जालिम और रजिया सुल्तान साथ-साथ बैठे थे। जालिम ने दिल्ली से बन कर आया औरंगजेब का परिधान पहना था, तो रजिया सुल्तान ने हूबहू रजिया सुल्तान का वेश धारण किया हुआ था। समर कोट के लोगों को यह पहली बार ही देखने को मिला था।
शाम के आठ बजे समर कोट पर स्वर्ग उतर आया था।
लकदक रोशनी में नहाया समर कोट लोकल संगीत की मधुर धुन सुन मस्त हुआ लग रहा था। नर्तक और नृत्यांगनाएं बड़े ही मनोयोग से नाच रहे थे, गा रहे थे और खा रहे थे – पी रहे थे। वारुणी की बार खुली थी। फ्री थी। और भी सब कुछ खुला खिला था। रजिया सुल्तान भी इन्हीं नर्तकों के बीच हिली मिली नाच रही थी। कई बार उसने नएला को तलाश किया था लेकिन वो तो काम में नाक तक डूबा था।
आज उत्सव में जालिम की सहेली का चुनाव होना था।
9 बजे जालिम औरंगजेब की पोशाक में सजा वजा नाचते गाते प्रेमियों के बीच प्रगट हुआ था। उसे अब उनके साथ नाचना था, गाना था और खाना पीना था। आज उसने किसी एक नृत्यांगना के कंधे पर हाथ रखना था। वो नृत्यांगना हाथ रखने के बाद जालिम की सहेली बन जानी थी, एक साल के लिए। इस दौरान जालिम इस सहेली के साथ जी भर कर एश फरमाने के लिए स्वतंत्र था।
रजिया सुल्तान नाचते-नाचते पुरानी यादों में खो गई थी।
सुनहरी राजधानी में वह उस राजा के साथ नाच रही थी जिसने अपनी रानी का चुनाव करना था। सोफी का मन था कि वो राजा उसे ही चुने। वही महारानी बने उस स्वर्ण नगरी की और उस महान राजा की। वही स्वप्न आज फिर लौट आया था। जालिम दुनिया का शहंशाह बनने जा रहा था। जालिम जवान था, महान था और अजेय था। अगर वो उसके कंधे पर हाथ रख दे तो ..? तो क्या वो रॉबर्ट को भूल जाएगी? तो क्या वो राहुल को ..?
और तभी जालिम ने रजिया बेगम के कंधे पर हाथ रख दिया था।
“ओ गॉड।” सिहर गई थी सोफी। “इट हैज हैपन्नड।” सोफी ने स्वयं को नींद से जगाया था। “अब ..? क्या वो हो जाए जालिम की?” प्रश्न खड़ा-खड़ा सोफी से उत्तर मांग रहा था।
सुबह का अवसान आ पहुंचा था। तारे आसमान पर नहीं थे। राहुल कहीं दिख नहीं रहा था। सोफी अब जालिम की सहेली बन चुकी थी। अब वो जालिम की अमानत थी। जालिम औरंगजेब की पोशाक में सजा वजा उसके पास आ खड़ा हुआ था। सोफी भाग जाना चाहती थी, सोफी उड़ जाना चाहती थी और सोफी अगर धरती फट जाती तो उसमें समा जाना चाहती थी। लेकिन जालिम ..?
हंस रहा था जालिम। प्रसन्न था जालिम। साक्षात औरंगजेब का अवतार लग रहा था जालिम।
जालिम ने रजिया सुल्तान की आंखों में देखा था।
लेकिन रजिया सुल्तान ने आंखें फेर ली थीं।
फिर जालिम ने रजिया सुल्तान को फूल की तरह अपनी बलिष्ठ बांहों में भर कर ऊपर उठा लिया था। जालिम उसे अपना प्राप्त हक मान कर महल की ओर चल पड़ा था।
नर्तक और नृत्यांगनाएं तालियां बजाते रहे थे।
बहुत भूखा था जालिम। इस बार उसने दिल्ली और हैदराबाद में बड़ा संयम बरता था और भूखा ही लौट आया था। लेकिन आज वो आपा खो बैठा था। आज वो अपने प्राप्त हक – रजिया सुल्तान के साथ जी भर कर अइयाशी करना चाहता था। आज उसका मन था – रजिया सुल्तान को खाने का, चबाने का और चूंस-चूंस कर एक-एक शहद की बूंद की तरह घूंट-घूंट कर पीने का। उसकी आंखों में भर आए मद को सोफी ने साक्षात देख लिया था।
“तुमने तो लाल किले के लिए ..?” सोफी ने लड़खड़ाती जुबान से प्रश्न पूछा था।
“न लाल ताल और न लाल किला। हाहाहा। रज्जो मेरी जान आजा सुर से सुर मिला।” जालिम ने रजिया सुल्तान को अपने समीप खींचा था। सोफी समझ गई थी कि आज उसकी लाज खतरे में थी।
जालिम ने पहना औरंगजेब का लिबास एक-एक कर उतार फेंका था। अब वो रजिया सुल्तान से आग्रह कर रहा था कि वो भी ..
“न-न-नहीं। मैं .. मैं मर जाऊंगी ..” सोफी बुरी तरह से डर गई थी। उसने चारों ओर निगाहें दौड़ाई थीं। कोई सहारा खोजा था। लेकिन ..
सोफी झपट कर बिस्तर में घुस गई थी। उसने अपने आप को चारों ओर से बैड शीट में लपेट लिया था।
“आओ-आओ। ये शर्माने का दिन नहीं है मेरी जान।” जालिम ने रजिया सुल्तान को बिस्तर से बाहर खींचा था। उसने रजिया सुल्तान का पहना गाउन फाड़ डाला था।
“राहुल।” सोफी कयामत को आया देख जोरों से चिल्लाई थी। उसकी आवाज में करुणा थी, विवशता थी और एक पुकार थी। कसाई के सामने आई गाय की तरह सोफी जोरों से डकराई थी।
चाय की ट्राॅली खींच कर लाता राहुल सोफी की पुकार को पहचान गया था। उसे घटना को समझते देर न लगी थी। वह ट्रॉली को दौड़ाता दृश्य पर आ कर उपस्थित हो गया था। उसने नंग-धड़ंग जालिम को सोफी से जूझते देख लिया था। एक पल के लिए राहुल भी अंधा हो गया था। वह भी सकते में आ गया था। उसने अपने आप की तलाशी ली थी। कोई हथियार उसके पास न था। उसे एक बारगी सर रॉजर्स पर क्रोध हो आया था।
राहुल ने निगाहें उठा कर देखा था। ट्रॉली में स्विच पर लगी पानी की कैटली से भाप निकल रही थी। राहुल ने झटके से कैटली को उठाया था और गरम पानी की धार जालिम के नंगे शरीर पर छोड़ दी थी। पानी इतना गरम था कि राहुल ने जालिम के शरीर पर उगे फफोलों को देख लिया था। जालिम तड़प कर फर्श पर आ गिरा था।
राहुल ने बिना वक्त गंवाए उछल कर अपने दोनों घुटने जालिम के सीने पर दे मारे थे। वह अब जालिम पर मुक्के बरसा रहा था।
तभी साेफी बिस्तर से बाहर आई थी। उसने अपने कपड़े संभाले थे। वह पलंग से नीचे आई थी तो उसने देखा था कि जालिम राहुल के ऊपर चढ़ा था। वह राहुल के गले में पंजा फसाने की कोशिश कर रहा था। सोफी जान गई थी कि अगर राहुल की गर्दन जालिम के पंजे में फंसी तो राहुल गया। मार देगा जालिम राहुल को।
क्या करे – सोफी को कुछ समझ न आ रहा था।
तभी सोफी की नजर फर्श पर पड़ी पानी की कैटली पर पड़ी थी। उसने झट से कैटली को उठाया था और दोनों हाथों से कैटली को जालिम के सर पर दे मारा था। सोफी की दांती भिच गई थी। उसे रोष चढ़ आया था। उसने एक के बाद एक कैटली का वार जालिम के सर पर किया था। जालिम का सर फूट गया था। खून का फव्वारा बह निकला था। जालिम की जैसे ही पकड़ ढीली हुई थी राहुल ने जाेर की दुल्लती मारी थी और जालिम का जबड़ा उड़ा दिया था।
जालिम बेहोश हुआ बगल को लुढ़क गया था।
खून में लथपथ राहुल और सोफी ने अब एक दूसरे को देखा था।
तभी बतासो भागी चली आई थी। उसने बेहोश पड़े जालिम को बैड शीट में बांधना आरंभ कर दिया था। लेकिन एक बैड शीट में जालिम कहां समाने वाला था। बतासो दौड़ी थी और बहुत सारी बैड शीट ले आई थी। अब वो तीनों जालिम को बैड शीटों में बांध रहे थे।
कालिया ने विलंब न किया था। उसने कोड पर काला घोड़ा का संकेत भेज दिया था। महल के ऊपर चढ़ कर उसने काला घोड़ा का झंडा फहरा दिया था। ऑपरेशन स्पाई फ्रंट आरंभ हो गया था।
कालिया फुर्ती से महल से नीचे उतर उन तीनों की मदद के लिए पहुंच गया था। अब उन चारों ने मिल कर जालिम को बैड शीटों में गठरी की तरह बांध लिया था। लग रहा था – वह धोबी घाट जाते गंदे कपड़ों का बड़ा बंडल था।
अब हैलीकॉप्टर महल के नीचे उतर आया था। उन चारों ने जालिम को घसीटा था और महल के नीचे तक ले आए थे। हैलीकॉप्टर में से चार सैनिक कूदे थे और उन सब ने मिल कर जालिम को हैलीकॉप्टर में लाद दिया था।
मूडी के इशारे पर सोफी और राहुल हैलीकॉप्टर में सवार हुए थे और नीले आसमान में गायब हो गए थे।
दिन ढलते न ढलते ऑपरेशन स्पाई फ्रंट पूरा हो गया था।
“रघुनाथन पागल हो गया है।” माइक ने स्पाई फ्रंट ऑपरेशन के दौरान हुई अकेली कैशुअलटी के बारे सूचना दी थी।
परम गुप्त कॉनफ्रेंस रूम में स्काई लार्क की पूरी टीम जमा थी। टैड को सर रॉजर्स ने आग्रह कर बुलाया था। स्पाई फ्रंट की सफलता पर सभी महा प्रसन्न थे। सर रॉजर्स एक बार फिर अमेरिका के अति अनुभवी और महावीर सिद्ध हुए थे।
“हुआ क्या?” प्रश्न सर रॉजर्स की ओर से आया था।
“लालच!” माइक बताने लगा था। उसने बगल में बैठे मूडी को निगाहें भर कर देखा था। “रॉलेंडो।” माइक ने जोर से नाम पुकारा था। सभी लोग हंस पड़े थे। मूडी तनिक लजा गया था। “उसने गलती से नकली रॉलेंडो को असली मान लिया था।” माइक भी मुसकुरा रहा था। “नारकॉटिक्स से लदा फदा पानी का जहाज जब गोआ पहुंचा तो रघुनाथन खुशी से पागल हो गया था। रॉलेंडो तो कहीं था नहीं। उसने सोचा – मौका है अरब पति बनने का। माल उतारने से पहले जहाज को किराया और खर्चा चुकाना था। रघुनाथन ने अपने एजेंटों से पैसा मांग लिया। ऐजेंटों ने भी खुशी-खुशी जी तोड़ कर पैसा दिया। माल खाली कर जहाज तो चलता बना लेकिन ..” रुका था माइक। उसने एक बार फिर मूडी को देखा था।
“लेकिन ..?” सर रॉजर्स जानने के लिए उत्सुक थे।
“लेकिन सर, माल की जगह जब मिट्टी निकली तो रघुनाथन ..”
“पागल तो होना ही था।” बरनी ने मान लिया था। “ये साला लालच ही तो मारता है सर।” उसने हामी भरी थी। “जालिम भी तो ..” रुका था बरनी। “मेरा मतलब कि जालिम भी तो इसी लालच के जाल में फसा। रॉलेंडो से मिल कर ही तो पागल हुआ था जालिम।”
“नहीं सर।” लैरी बीच में बोला था। “जालिम तो रजिया सुल्तान के जाल में फसा था।” हंस रहा था लैरी।
सोफी सहसा शरमा गई थी।
सभी लोगों ने मुड़ कर रजिया सुल्तान को देखा था। बेजोड़ लगी थी सोफी।
“अखबारों के हैडिंग्स पढ़े हैं?” टैड का प्रश्न आया था। “कंफ्यूज्ड हैं।” वो जोरों से हंसा था। “अभी तक किसी को कुछ पता नहीं। जालिम कहां गया, कैसे गया और कहां है, किसी को कुछ पता नहीं।” टैड ने ताली बजाई थी। “अब निकालाे महा रैली?” उसने व्यंग किया था। “ये मध्यम वर्ग का बुलबुला भी फूट गया।” उसने संतोष की सांस ली थी।
“सर, मामला सब माया का है।” बरनी ने मध्यम वर्ग के बारे बताया था। “माया मिल गई। लूट का माल था। अब मालिक की मर्जी – चाहे जहां जाए।” हंसा था बरनी। “सब मतलब के यार हैं सर।”
“तो क्या 19 अप्रैल की रैली?” लैरी ने विनोद पूर्वक पूछा था।
“बिन दूल्हे के बारात किसके घर जाएगी भाई?” उत्तर सर रॉजर्स ने दिया था। “हाहाहा। बिगड़ गया बानक।”
चाय आ गई थी। सभी बड़े सुकून के साथ चाय पी रहे थे। इसके बाद स्काई लार्क में स्पाई फ्रंट की चर्चा नहीं होनी थी।
“मैं राहुल के साथ जा रही हूँ डैडी।” सोफी ने अचानक सर रॉजर्स को संबोधित कर कहा था।
“कहां बेटे?” सर रॉजर्स ने स्नेह पूर्वक पूछा था।
“नीमो की ढाणी।” सोफी का उत्तर आया था। “अब मैं मां सा के साथ रहूंगी।” सोफी ने बताया था।
सर रॉजर्स को समझते देर न लगी थी। सोफी ने राहुल को चुन लिया था – वो जान गए थे। अचानक वो भावुक हो आए थे। सर रॉजर्स की आंखों में स्नेह और सौहार्द के आंसू भर आए थे। उन्होंने एक नजर राहुल को देखा था। राहुल विनम्र भाव से चुप खड़ा था। सर रॉजर्स ने उन दोनों को अपनी बाहों में समेट लिया था। उन्हें आशीर्वाद दे कर सर रॉजर्स चले गए थे।
इस जंग में विजयी भारत हुआ था – यह सभी ने मान लिया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड