तरन्नुम बेगम को महसूस हुआ था कि इस बार हिन्दुस्तान से लौट कर वो नहीं कोई और ही जालिम आया था।
जालिम की चाल ढाल, बोल चाल और यहां तक कि आवाज अंदाज सभी बदले-बदले लगे थे। तरन्नुम ताड़ गई थी कि जालिम के साथ आई रजिया सुल्तान कोई आम औरत नहीं एक अलग ही आइटम थी। रजिया सुल्तान ने समर कोट की हवा को अलग से तरंगायित कर दिया था। लाख जतन के बाद भी तरन्नुम बेगम रजिया सुल्तान को पहचान नहीं पाई थी। लेकिन उसने रजिया सुल्तान की चंचल-चपल आंखों को पढ़ लिया था। उन में खोट था। लेकिन तरन्नुम बेगम चाह कर भी उस खोट को कोई नाम न दे पाई थी।
लेकिन जालिम के चेहरे पर जो दिखा था वो तो बिलकुल भिन्न और भ्रामक था।
“हम दिल्ली से इस बार खाली हाथ नहीं – तीन रत्न लाए हैं, बेगम।” जालिम ने तरन्नुम बेगम को बांहों में भर कर कहा था। “रजिया सुल्तान से तो तुम मिल चुकी हो।” मुसकुराया था जालिम। “एम ए, पी एच डी की है – रजिया सुल्तान ने।” जालिम ने सगर्व बताया था। “रजिया सुल्तान सिराजुद्दौला के खानदान से और घसीटी बेगम के कुल् की हैं। अरबों, खरबों की मालकिन हैं लेकिन भारत सरकार ने इनका हक मार लिया है।” जालिम ने मुड़ कर तरन्नुम बेगम की आंखों को पढ़ा था।
“तो ..?” तरन्नुम बेगम ने प्रश्न किया था।
“तो क्या ये जुल्म नहीं है? हम हक दिलवाएंगे – रजिया को।” जालिम चतुराई से असली मुद्दे को छुपा गया था।
लेकिन तरन्नुम बेगम ने सब कुछ पढ़ लिया था। उसे अपने और अपने ग्यारह बच्चों के ऊपर मंडराता खतरा दिखाई दे गया था।
“और दूसरा तोहफा हम लाए हैं – नएला। युवा रसोइया है। शहंशाह जहांगीर के रसोइये के कुल का है।” जालिम ने नएला की कैफियत बताई थी।
“हमारे किस काम का?” तरन्नुम बेगम ने तनिक तुनक कर पूछा था।
“क्यों?” जालिम ने प्रति प्रश्न किया था। “कल को हम भी तो शहंशाह जहांगीर द्वितीय बनेंगे। तब हमारा रुतबा समर कोट तक सीमित न होगा बेगम।” जालिम हंसा था। “हम तो ..” जालिम ने निगाहें उठा कर आसमान को देखा था।
चुप ही बनी रही थी तरन्नुम बेगम।
“और ये देखो पैन।” जालिम ने जेब से निकाल कर तरन्नुम बेगम को पैन दिखाया था। “ये पैन इब्राहिम लिंकन का है।” उसने जार दे कर बताया था। “जानती हो कौन था इब्राहिम लिंकन?” जालिम ने तरन्नुम बेगम को छोटा करने के लिहाज से प्रश्न पूछा था।
“होगा कोई।” तरन्नुम बेगम तनिक नाराज हुई थीं।
“अरे नहीं बेगम। इस पेन से रजिया सुल्तान हमारा इतिहास लिखेंगी – इंग्लिश में।” जोरों से हंसा था जालिम।
तरन्नुम बेगम को अब दाल में काला नजर आ गया था।
वहीं रजिया सुल्तान को भी समर कोट का सही स्वरूप दिख गया था।
समर कोट एक नहीं दो थे। एक समर कोट गंधर्वों का समर कोट था। जालिम का और गंधर्वों का एका न था। जालिम उनके लिए एक आक्रांता था, जिसने गंधर्व सैन की हत्या कर जाेर जबरदस्ती समर कोट की सत्ता हथिया ली थी। मजबूरी में ही महारानी शैव्या ने समर्पण किया था और तरन्नुम बेगम बन गई थी।
गंधर्व सैन के ग्यारह बच्चों को जालिम ने ग्यारह ठिकानों पर भेज दुनिया की छाती पर पैर जमा लिया था।
असल में तो जालिम बशीर हाट के मुलाजिम और समर कोट के महाराजा का कातिल ही था।
जालिम हर मायनों में एक बे रहम बादशाह था और अगर बाई ए लक्की चांस उसे दुनिया की सत्ता मिल गई तो ..?
सोफी ने दुनिया के हर कोने में हाहाकार होते देख-सुन लिया था।
फिर लोग अमेरिका को ही याद करेंगे – सोफी मुसकुराई थी। लेकिन अच्छे वक्त की तो यादें ही शेष रह जाती हैं।
जालिम का जुनून दुनिया पर छा गया था। लोग जालिम के दीवाने हो गए थे। जालिम जैसे कोई नायाब फरिश्ता था – लोग उसके आने के इंतजार में पलकें बिछाए बैठे रहते। जालिम के करिश्मे, जालिम के वायदे और जालिम की घोषणाएं अजीब और आकर्षक थीं।
19 अप्रैल की महा रैली में जालिम के अवतार का आगमन होना था।
कॉनफ्रेंस रूम में बैठे स्पाई फ्रंट के पांचों बोर्ड मैंबर्स समझ ही न पा रहे थे कि इस लाइलाज बीमारी – जालिम का इलाज कैसे करें?
“टिट फॉर टैट।” अचानक लैरी ने चुप्पी तोड़ी थी। “हाथ पर हाथ रख कर बैठने से कोई फायदा नहीं है सर।” लैरी का सुझाव था। “19 अप्रैल दूर ही कितना रह गया है?”
“तो क्या करें?” बरनी ने पूछा था। “हमने तो हर कोशिश की है लेकिन ..”
“काउंटर प्रोपेगेंडा।” लैरी का सुझाव था। “अब हमें जालिम के बारे सब पता है। क्यों न हम पूरे देश दुनिया को जालिम के बारे बताएं कि वो ..”
“फायदा?” माइक ने पूछा था।
“19 अप्रैल की महा रैली को फेल करना।” लैरी का उत्तर आया था।
कॉनफ्रेस रूम में फिर से चुप्पी लौट आई थी। लैरी का विचार बुरा नहीं था। प्रोपेगेंडा भी एक असरदार हथियार था।
“कैसे होगा?” सर रॉजर्स ने पूछा था।
“मैं अमेरिका और यूरोप को संभालता हूँ तो बरनी सर इंडिया और चीन को देख लें। आप – माइक सर रूस को संभालें और आप ..” उसने टैड पर निगाहें केंद्रित की थीं।
“मैं भी मेरा काम करूंगा।” टैड ने प्रसन्न हो कर कहा था। “मरता क्या न करता।” उन्होंने जुमला कसा था। “पूरा प्रैस और मीडिया और विचारकों को काम से लगा देता हूँ। लिखो – जो भी मन आए लिखो। बेधड़क हो कर लिखो – इस तरह लिखो कि ..”
“गुड आइडिया।” सर रॉजर्स का चेहरा खिल गया था।
रुकी खड़ी नदी को रास्ता मिल गया था। अमेरिका की महा शक्ति जालिम के ऊपर गाज की तरह गिरी थी।
लिखा जा रहा था – जालिम तो अनपढ़ है। वह गंवार है। गुंडा है। लेकिन नई इंग्लिश स्पीकिंग वाइफ ले आया है। अपना इतिहास अंग्रेजी में लिखवा रहा है।
टाइम्स ने लिखा था – जालिम एक क्रिमिनल है। जालिम ने बशीर हाट के मुलाजिम की हत्या की। जालिम ने समर कोट के महाराजा गंधर्व सैन को मार कर उनका राज पाट हड़प लिया। उनकी पत्नी महारानी शैव्या को रखैल बना कर रक्खा और उनके ग्यारह बच्चों को गुलाम बना कर दुनिया की छाती पर मूंग दल रहा है।
दैनिक में लिखा था – जालिम के जुल्मों की कहानी अजब गजब है। समर कोट के गंधर्व जैसे नर्क में रह रहे हैं। अगर जालिम का राज आया तो ..
अब दुनिया के हर कोने पर धूम मची थी कि जालिम कोई दरवेश नहीं ठग था, चोर था, हत्यारा था और बेईमान था। लोग जालिम के बहकावे में न आएं। 19 अप्रैल की महा रैली एक प्रपंच है। दूर रहें भले लोग।
लेकिन कमाल ये देखने में आया था कि लोग अमेरिका के किए प्रचार प्रसार का मखौल उड़ा रहे थे। लोग कह रहे थे कि अमेरिका हार गया है, घुटनों पर आ गया है और जालिम से डर गया है। तभी अमेरिका अब माई बाप चिल्ला रहा है।
वक्त बहुत खप गया था। 19 अप्रैल अब ज्यादा दूर न थी और अमेरिका के स्काई लार्क का डी डे सूना-सूना अंधकार में भटक रहा था।
लेकिन समर कोट में जोरों की गहमा गहमी थी। 6 अप्रैल को होने वाले उत्सव में 19 अप्रैल को होने वाली महा रैली का भी असर दिख रहा था।
जालिम के फरमान दिल्ली और हैदराबाद तक पहुंच गए थे।
“सात अप्रैल का जश्न हम लाल ताल की बजाए 19 अप्रैल को लाल किले में मनाएंगे। तैयारियां हो।” जालिम का फरमान था।
चाय की ट्रॉली खींच कर लाए नएला की नजरें अब चाय पीती रजिया सुल्तान से टकरा गई थीं। कई पलों की कोशिश के बाद भी दोनों की नजरें वापस लौट आई थीं।
“तो क्या अमेरिका हार जाएगा?” दोनों ने एक दूसरे से प्रश्न पूछे थे।
लेकिन इन प्रश्नों के उत्तर तो अमेरिका के पास भी नहीं थे।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड