स्पाई फ्रंट ऑपरेशन को लेकर बोर्ड के पांचों मैंबर अर्धरात्रि के अवसान पर कॉनफ्रेंस रूम में चुपचाप बैठे थे।

कमरे में प्रशांत खामोशी भरी थी लेकिन उन पांचों के दिमाग लगातार एक ही गीत की धुन को सुनते चले जा रहे थे। हम मेहनत कश इस दुनिया से अब अपना हिस्सा मांगेंगे, एक बाग नहीं, एक खेत नहीं हम सारी दुनिया मांगेंगे। आश्चर्य नहीं तो ये और क्या था? इस गीत को तो दुनिया के चतुर चितेरों ने कब का और कई-कई बार मार गिराया था, परास्त कर दिया था और कब्र के गहरे में ले जाकर दफना दिया था। अब तो डीप स्टेट के मंसूबे खूब फल फूल रहे थे।

मालिक मांगें उठाते नौकर को काम थमा कर हनीमून पर चला जाता है। लौटने पर काम में कमियां निकाल कर नौकर को नौकरी से बाहर का रास्ता दिखा नया नौकर ले आता है। सरकारें मजदूरों की हर मांगें पूरी करती हैं लेकिन फिर महंगाई मांगों से आगे निकल जाती है और फिर मजदूर नई मांगें मांगते रहते हैं। दलाली, कमीशन और घूसखोरी का ऐसा तालमेल बैठ गया है कि सरकारी खजाने को ठिकाने लगाने में बड़ी सुविधा रहती है। स्कैम भी होते हैं तो लाखों करोड़ों और कई-कई अरबों में होते हैं, लेकिन मामला कालांतर में रफादफा हो जाता है। भ्रष्टाचार को शिष्टाचार का नाम देकर सभी दोष मुक्त हो जाते हैं और सब कुछ सहजता से चलता रहता है।

लेकिन इस जालिम ने तो नाव ही उलट दी। डॉलर जैसी सशक्त करैंसी को कागज की नाव कहता है – पागल।

लंदन में हुई महा रैली ने तो सबके दिल हिला दिए हैं। 19 अप्रैल की तय की तारीख एक खंजर की तरह सबके गर्दन पर आ धरी है। स्पाई फ्रंट का डी डे 9 अप्रैल है, लेकिन अभी तक मैदान खाली है। सारे सूरमा तारे गिन रहे हैं।

“हमारा डी डे तो 9 अप्रैल है न?” बरनी ने लैरी से पूछा है।

कॉनफ्रेंस रूम की चुप्पी टूटी है। एक हलचल ने जन्म लिया है। सभी जानते हैं कि बरनी ने मात्र पूछने के लिहाज से ही प्रश्न किया है। उसका अभिप्राय तो कुछ भी नहीं है। प्रश्न तो प्रासंगिक है लेकिन लैरी उसका उत्तर देने में भी लजा रहा है – शरमा रहा है।

“कुछ हो भी रहा है?” टैड का धीरज छूट गया है। वह उद्विग्न है। नाराज भी है।

बरनी उंगलियां मसल रहा है। क्या उत्तर दे समझ नहीं पा रहा है। बाहर बहुत ठंड है। कहीं भी कुछ भी नहीं हो रहा है। जबकि जालिम ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है। और उसे जीवित पकड़ कर लाने की जिममेदारी सोफी की है। सर रॉजर्स की इकलौती बेटी ही इस समर का इकलौता सूरमा है।

“डूब जाएगा अमेरिका सर।” टैड ने गर्जना की है, ताकि सर रॉजर्स की नींद खुले। “टैल मूडी टू बमबार्ड एंड डिस्ट्रॉय द ब्लडी समर कोट।”

कॉनफ्रेंस रूम हिल गया लगा है।

“हवा को गोलों से मारोगे?” सर रॉजर्स ने खिसिया कर पूछा है। “है कहां दुश्मन टैड। ये लड़ाई अलग है। दुनिया भर का मध्यम वर्ग अमेरिका के मुकाबले में आ खड़ा हुआ है। वही गांधी और माओ वाला मामला हे, दोस्त।” सर रॉजर्स ने टैड को कई पलों तक घुरा है। “सुना नहीं – जालिम दुनिया की सारी सेनाओं के सैनिकों की पगार दो गुनी करने जा रहा है। और जनरलों को जागीरें देगा। तुम क्या सोचते हो कि हमारी सेना ..?”

“टैल दैम टू गो टू हैल।” टैड ने पूरे रोष में आ कर कहा है और उठ कर चला गया है।

सर रॉजर्स ने बारी-बारी शेष बैठे तीनों मैंबरों को देखा है।

तीनों चुप हैं। कोई संवाद जन्म नहीं लेता। कोई नई तरकीब या तरीका सामने नहीं आता। सर रॉजर्स तो पहले ही अपनी प्रिय बेटी सोफी को मौत के मुंह में भेज चुके हैं। अब उनके पास और कुछ शेष नहीं है, जो अमेरिका की सुरक्षा के लिए हाजिर करें।

तीनों मैंबर बारी-बारी उठते हैं और कॉनफ्रेंस रूम से बाहर निकल जाते हैं।

अकेले रह गए सर रॉजर्स सोचते हैं कि क्या वास्तव में ही उनसे कोई अक्ष्मय अपराध हो गया है? अमेरिका के परम वीर, परम भक्त और निडर तथा साहसी रॉजर्स क्या हार जाएगें? हार को उन्होंने कभी स्वीकार नहीं किया चाहे वो वियतनाम की जेल की यातनाएं हों या फिर .. या फिर उनकी परम प्रिय पत्नी का परित्याग ही क्यों न हो।

अचानक ही उनका मन भागता है और गांधी और माओ से जा मिलता है।

“ले दे कर सुलझाओ भाई लड़ते क्यों हो?” सर रॉजर्स एक अच्छे सच्चे विश्व नागरिक बन गांधी और माओ से आग्रह कर रहे हैं। “रहना तो हम सब ने इसी दुनिया में है।” उनका सुझाव है।

लेकिन गांधी और माओ तो कब के मौन हो गए – उन्हें याद आ जाता है।

समर कोट पर घात लगा कर बैठे मूडी और मखीजा स्पाई फ्रंट ऑपरेशन की 9 तारीख और जालिम के जन आंदोलन की 19 अप्रैल की तारीखों को दिन में कई-कई बार याद करते-करते थकने लगे थे। कुछ हो कर ही न दे रहा था।

मखीजा ने बेस कैंप में बनाई अपनी छोटी साइंटिफिक लैब में अनमोल जानकारियां इकट्ठी कर ली थीं। उसने दीवार पर लगे मानचित्र पर हर खबर को चिन्हित किया हुआ था। सोने के पहाड़ कहां-कहां थे, चांदी की चट्टानें कधर थीं और हीरे जवाहरात की खदाने कहां छुपी थीं – सब कुछ नक्शे पर छपा था। समर कोट में कहां क्या दिखेगा, कब दिखेगा और कैसे दिखेगा – मखीजा ने बड़े ही परिश्रम के साथ सब का एक तोड़ निकाल दिया था। अब मखीजा की आंख से समर कोट का कोई भी कोना ओझल नहीं था। मखीजा मैग्नेट के नाम से मखीजा आपने इस अनुसंधान को नाम दे कर दुनिया के गणमान्य साइंटिस्टों की कतार में खड़ा हो जाना चाहता था।

मूडी ने भी दिन रात एक कर दी थी। समर कोट के चप्पे-चप्पे को उसने टारगेट की शक्ल में बदल दिया था। कोड वर्ड काला घोड़ा आते ही समर कोट पर इतना बारूद बरसना था कि पूरा प्रदेश थर्रा जाता। उसने सबसे पहले जालिम के पकड़े जाने पर उसे कैसे हेलीकॉप्टर से उठाना था और फौरन गायब हो जाना था – इस पर जोर दिया था।

लेकिन मूडी कहीं अपने भीतर उदास था। उसने तो जालिम से मुलाकात की थी। उसने तो जालिम के डील-डौल देख लिए थे। और उसने तो पहचान लिया था कि जालिम असाधारण था और लड़ने में अद्वितीय था। फिर फूल सी कोमल सोफी उसे कैसे बस में कर सकती थी – मूडी की तो कल्पना से भी बाहर था। लेकिन सर रॉजर्स ..

मानता था मूडी कि वो चार थे। बतासो और कालिया उनकी टीम में शामिल थे। लेकिन जालिम उन चारों के लिए अकेला ही भारी था – मूडी खूब समझता था। फिर कैसे सफल होगा ऑपरेशन स्पाई फ्रंट – उसकी तो समझ से ही बाहर था।

“पूअर सोफी।” मूडी ने लंबी सांस छोड़ी थी। “कितनी बहादुर बेटी है सर रॉजर्स की।” उसने याद किया था। “लेकिन .. लेकिन जालिम जैसे बीस्ट को हराना ..?” मूडी समझ ही न पा रहा था। “और अगर अमेरिका हारा तो स्काई लार्क की बड़ी बदनामी होगी। मुंह दिखाने लायक भी न रहेंगे किसी को।” मूडी को अफसोस था।

जालिम का प्रोपेगेंडा भी अजब-गजब था। दुनिया के हर कोने में जा जाकर उसके एजेंटों ने पब्लिक को सूचित किया था कि जालिम का राज पूर्ण स्वराज होगा। न कोई टैक्स होगा और न कोई लाइसेंस। न किसी वीजा की बंदिश होगी और न किसी को पुलिस रोकेगी। चहचहाती चिड़ियाओं की तरह हर नागरिक स्वतंत्र होगा। मालिक होगे सब सही मायनों में।

बेहद लुभावना और अत्यंत काल्पनिक सपना दिखा रहा था जलिम लोगों को और लोग भी थे कि उसकी बातों पर विश्वास करने लगे थे।

“इतनी बड़ी ताकत है अमेरिका सर कि उस जालिम जैसे मच्छर को मसलने में क्या लगेगा?” मूडी को याद है कि उसने सरेआम मांग की थी कि जालिम को सीधे-सीधे युद्ध में घसीट कर ठोका जाए।

“जन शक्ति के उठे तूफान से सीना तान कर नहीं लेट कर लड़ा जाता है, मूडी।” सर रॉजर्स ने हंस कर उत्तर दिया था। “मेरा अनुभव है बेटे कि सही टारगेट के लिए सही हथियार का चुनाव करना कोई भी युद्ध जीतने की पहली शर्त है।”

सर रॉजर्स बड़े थे, अनुभवी थे और एक अजेय जनरल थे। मूडी उनकी बहुत इज्जत करता था।

मखीजा ने मैग्नेट मखीजा के बाद एक और भी खोज की थी।

उसका अनुमान था कि अमेरिका के हाथ समर कोट लगने की हालत में इतना धन माल हाथ लगेगा कि संसार में अमेरिका को और कोई हाथ भी न लगा पाएगा।

Major krapal verma

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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