कमरे में जब ट्रे भर कर नाश्ता आया था तो सोफी का मन खिल उठा था। उसे जोर की भूख लगी थी। उसने बिना विलंब किए नाश्ता निबटाया था। वह जानती थी कि गुलाम अली आने ही वाला था।
गुलाम अली की भी नींद जल्दी ही खुल गई थी। उसने भी आज अपने सपने को साकार होते खुली आंखों देख लिया था। रजिया सुल्तान गोल्ड माइन थी – वह समझ गया था।
“आनंद में हैं ..?” गुलाम अली ने विनम्रता पूर्वक रजिया सुल्तान से पूछा था।
“जी।” सोफी ने मधुर मुसकुराहट के साथ उत्तर दिया था।
“मेरे घर लोगों का बहुत आना जाना लगा रहता है। ये आपके लिए सेफ नहीं है। मैंने गोलकुंडा रिजॉर्ट्स में आपके लिए एकोमोडेशन बुक कर दी है।” गुलाम अली ने सूचना दी थी। “आइए चलते हैं।” उसने आग्रह किया था।
सोफी प्रसन्न थी। उसका पहला तीर ठीक ठिकाने लगा था। गुलाम अली गोली खा गया था। उसे हंसी आने को थी। जासूसी कितना विचित्र खेल था – वह फिर आज उसे खेलने चल पड़ी थी। उसे न जाने क्यों इस तरह के साहसिक और जोखिम भरे काम करने में अपार आनंद आता था।
गोलकुंडा रिजॉर्ट्स को देख सोफी का मन बाग-बाग हो उठा था।
“क्यों उठा ले जाना चाहता था आपको मंसूर?” गुलाम अली ने सोफी को डाइरैक्ट प्रश्न पूछा था। वह अपनी गोट पक्की कर लेना चाहता था।
उत्तर देने से पहले सोफी ने एक छोटी तैयारी की थी। उसकी आंखें डबडबाई थीं और फिर आंसुओं से भर आई थीं। उसकी आवाज गमगीन थी। एक दुख था जो साक्षात खड़ा हो गुलाम अली से बतियाने लगा था।
“मेरे पापा .. पंडित थे .. पुरोहित थे .. कथावाचक थे।” रजिया बिंदू की कहानी को दोहरा रही थी। “मां बीमार हुई। पापा का सारा पैसा खर्च हो गया। मंसूर ने मदद की। पैसा दिया। लेकिन मां मरने के बाद मुझे ..” रो पड़ी थी सोफी। वह जारो कतार हो कर रो रही थी। “मैंने हिस्ट्री में एम ए किया फिर पीएचडी की और .. सर्विस ..” सोफी की जुबान अटक गई थी।
दोनों के बीच बहुत देर तक चुप्पी डोलती रही थी।
“मैंने बुर्का पहना और भाग ली। रजिया सुल्तान पर पीएचडी की है इसलिए आप को अपना नाम भी रजिया सुल्तान बताया। मैं बिंदू हूँ।”
“अब आप रजिया सुल्तान के नाम से ही विख्यात होंगी।” गुलाम अली मुसकुराया था। “दुख भरे दिन गए।” उसने आश्वासन दिया था। “मॉल में मैंने आपकी ड्रेस बनाने को कह दिया है। नाप लेने आएगा कोई।” गुलाम अली बेहद प्रसन्न था।
“आपने मेरी इतनी मदद ..?” सोफी ने संभल कर प्रश्न पूछा था। वह तनिक शर्माई थी। उसने आभार जताया था। उसका स्वर विनम्र और मीठा था।
“हमें एक दूसरे की मदद करनी चाहिए।” गुलाम अली बोला था। “आज आपको मदद चाहिए तो मैं कर रहा हूँ। कल को मुझे मदद की दरकार होगी तो फिर आप ..?” हंसा था गुलाम अली। उसे रजिया सुल्तान से बातें करना अच्छा लग रहा था।
गुलाम अली के चले जाने के बाद भी रजिया को पता था कि उसकी एक आंख उसी पर टिकी थी। वह किसी भी कीमत पर अब रजिया सुल्तान को खोना न चाहता था। अब वह जरूर चाहेगा कि रजिया सुल्तान का सौदा जालिम से करे। वह सौदागर था। वह जानता था कि नकली माल को कैसे असली बना कर बेचा जाता है।
और जालिम ..? क्या खरीदेगा रजिया सुल्तान को जालिम?
“ये तुम्हारी अग्नि परीक्षा होगी सोफी।” उसका अंतर बोला था। “अब तुम्हें अपने हाव भाव, बोल चाल और चाल चल गत से ले कर नयनाभिराम तक से जालिम पर वार करना होगा। तुम्हें पूरी सामर्थ्य लगा कर उसे रिझाना है, भुलाना है और .. और पागल बना कर – बिंदा बेगम की कही बातें उसे याद थीं।
औरत एक अमोघ अस्त्र है – यह तो अब सोफी मान बैठी थी।
कठोर से कठोर और कितना भी जालिम जल्लाद हो आदमी औरत चाहे तो उसे मोम बना ले और अपने जूड़े में खोंस ले।
सोफी उल्लसित थी। जालिम के सामने पेश होने की घड़ी अब ज्यादा दूर न थी।
7 तारीख – जालिम के दिल्ली आने के बाद हाट बाजाराें में हल्ला पड़ गया था।
हाकिम साहब काे मरने तक की फुरसत नहीं थी। उनके चाराें ऒर एजेंटाें की फौज शहद की मक्खियाें की तरह कांखाें में शहद सा मीठा माल छुपाए भिनभिना रहे थे। हर काेई अपना माल खपा देना चाहता था। लेकिन रास्ता हाकिम साहब के हुकुम से गुजरता था।
और हाकिम साहब थे कि सबसे पहले अपनी गाेट फिट कर लेना चाहते थे।
खुश-खुश मूड में बैठे जालिम के सामने हाकिम साहब नएला काे बगल में लिए हाजिर हुए थे। पुराने अनुभवी आदमी थे – हाकिम साहब। जीवन में उन्हाेंने बहुत कुछ खाेया पाया था, बहुत कुछ खरीदा बेचा था और न जाने कितना खाेया था और कितना पाया था। कमाई गंवाई की ताे बात ही अलग थी पर बड़े और महान लाेगाें से हमेशा से उनके अच्छे रसूक रहे थे। और अब वाे जालिम काे हर कीमत पर जीत लेना चाहते थे।
“हुजूर, एक नायाब ताेहफा नजर में आया ताे मैं उसे आपके लिए सहेज लाया।” हाकिम साहब का स्वर विनम्र था। वाे जालिम के सामने झुके थे और जुहार बजाई थी। बगल में खड़े नएला ने भी गलती नहीं की थी और जालिम काे लंबी सलाम ठाेकी थी।
जालिम ने हाकिम साहब और नएला काे एक साथ कई पलाें तक देखा था।
नएला की जालिम के साथ नजरें मिली थीं। क्या साला तीन स्टाेरी आदमी है – राहुल साेचे जा रहा था। इस साले रावण काे काैन मारेगा – उसका स्वयं से प्रश्न था। फिर उसे याद आया था कि इसे ताे मारना था ही नहीं। इसे जिंदा पकड़ कर ..
“ये नएला चैफ है जनाब।” हाकिम साहब आजिजि के साथ बाेले थे। “दुबई में जाे सात सितारा हाेटल है वहीं काम करता था।” हाकिम साहब ने नएला का परिचय दिया था। “नएला उन उस्ताद अमीर खान का पड-पाेता है जाे शहंशाह जहांगीर के किचिन की शाेभा बढ़ाते थे।” हाकिम साहब ने नएला का भाव बढ़ा दिया था।
“क्या-क्या पकाते हाे भाई?” जालिम ने हंसते हुए पूछा था।
राहुल काे पता था कि यही वक्त था जब जालिम काे लपेटा जा सकता था।
“शहंशाह जहांगीर के किचिन की दाे ही डिश मशहूर हैं जनाब।” नएला ने उत्तर दिया था। “बारह तरह की बिरयानी पकती थी, हुजूर। और जब बिरयानी पकती थी ताे उसकी महक हर किसी काे माेह लेती थी।”
“और दूसरी डिश?” जालिम प्रसन्न दिखा था।
“कढ़ाई काेरमा।” नएला ने तुरंत उत्तर दिया था।
“और आप क्या पकाते हैं?”
“राेगन जाेश दरबारी।” नएला हाजिर जवाब था। “आज आप के लिए यही पकाया है हुजूर। खाएंगे ताे ..”
“शहंशाह जहांगीर काे क्या पसंद था?” जालिम ने अटपटा प्रश्न पूछ लिया था।
हाकिम साहब का चेहरा उतर गया था। नएला की जुबान पर भी अचानक बाजरा की खिचड़ी आ चढ़ी थी। लेकिन नएला संभल गया था।
“राेस्ट ऑफ ए जंगली फाउल।” नएला ने इस बार अंग्रेजी में उत्तर दिया था।
जालिम की आंखाें में नएला के लिए एक आदर और आभार उग आया लगा था।
“आप हमें कब खिलाऒगे?” जालिम का अगला प्रश्न था।
“जनाब। कल ताे आप हैदराबाद जाएंगे?” हाकिम साहब ने याद दिलाया था।
“हाँ – ताे? हम नएला काे साथ ले जाएंगे।” मुसकुराया था जालिम। “अब से नएला हमारा हुआ हाकिम साहब।”
“जनाब। हमारा ताे बिजनिस ही चाैपट ..”
“मूंह मांगा देंगे भाई।” जालिम हंस रहा था। “ये हीरा ताे हम लेकर ही रहेंगे।” जालिम ने नएला काे खरीद लिया था।
राहुल का अंतरमन झूम-झूम उठा था, स्पाई फ्रंट जीतेगा – उसने अब अंदाजा लगाया था।
जालिम काे भी हैदराबाद आता राेलेंडाे दिखा था। उसे दिखे थे अपने ग्यारह राजकुमार और राजकुमारियां और 19 अप्रेल से ब्रिटेन में हाेता सम्मेलन। संसार के शासक का ताज भी तैयार हाे चुका था।
दिल्ली के एजेंट्स इस बार माल नहीं बेच पाए थे।
जालिम सत्ता का अंतिम साेपान भी चढ़ गया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड