कंट्री क्लब में सर रॉजर्स के साथ बैठे टैड का चेहरा चिंता रेखाओं से भरा था।
दोनों देश के वरिष्ठ नेता थे। दोनों ने ही संघर्ष किया था – अमेरिका फर्स्ट के नारे को लेकर। टैड तो अभी भी उसी नारे के नीचे बैठ अमेरिका के लिए जी जान से लड़ रहा था। लेकिन अब लड़ाई का रुख मुख अलग ही होता जा रहा था। अब हथियारों से कम और बातों से ज्यादा लड़ाई हो रही थी।
“खबरें अच्छी नहीं आ रही हैं, सर।” विस्की के गिलास से एक लंबा घूंट खींच कर टैड बोला था। “मैं डर रहा हूँ कि कहीं ..।” उसने सर रॉजर्स की आंखों को पढ़ा था।
“डर तो मैं भी रहा हूँ टैड।” सर रॉजर्स ने स्वीकार किया था। “लेकिन .. लेकिन लड़ने के अलावा और विकल्प बचा क्या है?”
“लेकिन सर इन स्लीपिंग सैल्स के साथ कैसे लड़ा जाए?” टैड मुद्दे पर आ गया था। “बड़ी ही भ्रामक और चिंताजनक सूचनाएं आ रही हैं। खास कर चीन, भारत, ईरान और मिडिल ईस्ट। और जहां तक कि यूरोप भी सही नहीं है। स्लीपिंग सैल्स हर जगह सक्रिय हैं।” टैड ने धीमें से कहा था।
सर रॉजर्स चुप थे। लेकिन वो महसूस रहे थे कि समय 9 दिसंबर और 19 मार्च का अनुमान सही था। चार छह महीने ही थे, अमेरिका के पास, जालिम का जुल्म ..?
“अमेरिका धनवान हो गया है – ये जैसे पहली बार दुनिया को पता लगा हो, ऐसा लग रहा है। ये जो स्लीपिंग सैल्स के बैड ऐलीमेंट्स हैं, ये घर-घर जा कर जन-जन को समझाने में लगे हैं कि कैसे अमेरिका हथियार बेच-बेच कर धनवान बन गया है। लोग मरें या जिएं – अमेरिका के ठेंगे पर।” मुसकुराया था टैड। “अरे भाई आप का सांप अमेरिका अपने गले में क्यों डाले? तुम नहीं संभल सकते तो बराबरी पर आने की जिद क्यों?”
“कम्यूनिस्टों ने ये प्रपंच फैलाया है।” सर रॉजर्स ने बीमारी का नाम बताया था। “ये साम्यवाद के जर्मस कभी मरते नहीं हैं टैड।”
“फिर कैसे लड़ें इनसे?” टैड पूछ रहा था।
सर रॉजर्स गंभीर थे। वह टैड को अभी जालिम के साथ होने वाली जंग के बारे कुछ नहीं बताना चाहते थे और नियुक्त समय की सूचना को भी गुप्त रखना चाहते थे। अभी तक उनके पास कोई पुष्ट आधार न था, जो जालिम को परास्त करने में सक्षम था। अभी तक तो जालिम अमेरिका से बहुत आगे था।
“एक बात मैं तुमसे जरूर कहूँगा टैड।” सर रॉजर्स गंभीर थे। “मैं चाहता हूँ कि तुम बरनी को उन सैनिक अड्डों पर जाने की इजाजत दे दो जहां अमेरिका को सबसे ज्यादा खतरा है।”
“क्यों सर?”
“इसलिए कि .. इसलिए कि ..” सर रॉजर्स अब सतर्क थे। वह ज्यादा कुछ बयान करना नहीं चाहते थे।
“कल को हमें जरूरत पड़ी तो हमें मदद मिल जाएगी।” सर रॉजर्स ने बात गोल मोल कर दी थी। “ये स्लीपिंग सैल्स का फोड़ा फूटेगा तो जहर सारी दुनिया में फैलेगा।” सर रॉजर्स बताने लगे थे। “एक तरह की जन क्रांति होगी यह। याद है भारत में क्या हुआ था?”
“हां। याद है। मैं भारत में ही था तब, सर।” तनिक हंसा था टैड। “बच ही गए थे सर वरना तो ..?”
“वो जो हमने खरीद लिए थे, लोकल लोग – हमारे बहुत काम आए थे।” सर रॉजर्स ने भी याद दिलाया था।
“यू मीन, खरीद फरोख्त करेगा – अमेरिका?” टैड ने बात समझ कर पूछा था।
“क्यों नहीं। और बरनी अमेरिका के सैनिकों की मदद ले कर एक नए मिशन का आविष्कार करेगा, जहां ..”
“तो सब गुपचुप हो रहा है?” टैड ने हंस कर पूछा था।
“हां, हवा न लगे हमारे किसी भी मिशन की – ध्यान रखना।” सर रॉजर्स ने टैड से बात तय की थी।
“ध्यान रहेगा सर।” टैड ने हामी भरी थी। “ये तो देश के लिए है। हम कुछ भी करेंगे – टु सेव अमेरिका।” टैड ने जय घोष किया था।
कंट्री क्लब से लौटने के बाद सर रॉजर्स के दिमाग में तूफान उठने लगे थे।
“ऑल ओवर द ग्लोब अगर एक साथ जन सैलाब उठ खड़ा हुआ तो ..?” सर रॉजर्स को चककर आने को थे। “बांट लेंगे धन और धरती।” उन्हें पसीने छूटने लगे थे। “पुश्तों की, की अमेरिका की कमाई मुफ्त में लुट जाएगी।” वह समझ रहे थे। “इतने लोगों को मौत के घाट उतारना तो असंभव ही था। बेकार में ही बनाकर रक्खे हुए थे – इतने हथियार।” वो झींकने लगे थे।
आशा किरण की तरह उन्हें एक ही सितारा आसमान पर उगा दिखा था – और वो था बरनी।
सर रॉजर्स ने फौरन ही बरनी को बुला भेजा था।
एक गोल-मटोल पहाड़ की चोटी पर मखीजा ने अपना कैंप लगाया था।
मखीजा और उसकी टीम समर कोट के लिए अजनबी थी। अभी तक वाे वही सब देख पा रहे थे जो उन्हें पहले दिन दिखा था।
पहाड़ की चोटी पर अपने छोटे स्टूल के ऊपर बैठा मखीजा विचार मग्न था। उसकी दृष्टि भिन्न तरह से समर कोट को देख परख रही थी। एक वैज्ञानिक की तरह वह देख रहा था कि पहाड़ों पर उगे जंगल भी दुनिया के और जंगलों से भिन्न थे। समर कोट की मिट्टी भी अलग थी और पत्थर भी भिन्न थे। यहां तक कि समर कोट में बहती बयार भी असाधारण थी।
मखीजा का उपजाऊ दिमाग उन सारी विविधताओं से जंग रोप बैठा था – जो अपनी दुनिया में कहीं नहीं थीं।
“सिस्टमैटिक खोज करूंगा।” मखीजा ने स्वयं से वायदा किया था। “कितना कुछ है यहां खोजने के लिए कि मैं अमर हो जाउंगा। मेरा नाम हर की खोज पर लिखा होगा – वह मान कर चल रहा था।
पहाड़ों पर घूमने फिरने के बाद मखीजा ने अनुभव किया था जैसे पहाड़ अंदर से पोले थे। कुछ था पहाड़ों के पेट में जरूर। उसका मन आया था कि पहाड़ों की खुदाई आरंभ करा दे। लेकिन वह डर गया था। अगर कोई बवाल खोज बैठा तो वह अवश्य ही मारा जाएगा। अचानक उसने महसूसा था कि वो तो किसी से मिले कोड पर बात भी नहीं कर सकता था। अन्य सभी स्टेशन उससे बात कर सकते थे – लेकिन वो नहीं।
मखीजा की दृष्टि चकरा गई थी। उसका दिमाग घूम गया था।
“मखीजा साहब, देखिये हम जंगल से क्या खोज कर लाए हैं।” मखीजा के साथी प्रसन्न हो कर लाई सौगात दिखा रहे थे।
मखीजा ने देखा था – लाल और पीले कुछ फल थे जो बड़े सुंदर थे और लग रहा था कि खाने में भी खूब मीठे होंगे।
“खबरदार! चख मत लेना इन्हें।” मखीजा ने साथियों को वरजा था। “किसी पक्षी ने क्यों नहीं चोंच बोरी?” मखीजा ने प्रश्न किया था। “हो सकता है – ये ..”
लोग भी डर गए थे। वो भी मान गए थे कि ये फल किसी पक्षी ने खाए क्यों नहीं थे?
“इनकी भी खोज करनी होगी।” मखीजा ने निर्णय लिया था। वह प्रसन्न था। जीवन में पहली बार उसके पास इतना सब खोजने को था जो कभी वह सोच ही न पाया था। अब तक तो कुछ खोजने को था ही नहीं। सब कुछ पश्चिम के वैज्ञानिकों ने खोज निकाला था। लेकिन उसकी किस्मत उसे समर कोट आ कर खोजों के लिए खजाना मिल गया था।
अचानक मखीजा को ध्यान आया था कि आखिर उसे खोजना क्या था?
“इल्यूजन का तोड़!” उत्तर दिमाग में स्वत: ही चला आया था।
“और तुम कर क्या रहे हो?” उसने स्वयं से पूछा था।
अब मखीजा को सर रॉजर्स का डर सताने लगा था।
उसने अभी तक इल्यूजन के बारे कुछ सोचा ही न था। सोचता भी तो क्या सोचता? समर कोट में तो एक सन्नाटा ही भरा था। न कोई आदमी था, न कोई पशु-पक्षी। खोज करे तो कैसे करे? साथ आए लोग सहायक थे – वैज्ञानिक नहीं थे। वैज्ञानिकों का दिमाग ही होता है जो जड़ से मूल को निकाल लेता है। साधारण आदमी के लिए तो हवा, हवा है, पेड़, पेड़ है और आदमी, आदमी है। लेकिन वैज्ञानिक ..
मखीजा ने कोड पर रघुनाथन से बात करनी चाही थी। लेकिन बात नहीं हुई थी। वह भी जैसे पाताल लोक में समा गया था – ऐसा लगा था।
घोर निराशा में पहाड़ पर पागलों की तरह इधर-उधर दौड़ता भागता मखीजा पागल हो गया लगा था।
“अमेरिका हार जाएगा समर कोट से।” मखीजा सोचे जा रहा था। “और अगर अमेरिका हारा तो ..?”
सारा दोष मखीजा के सर मढ़ देंगे ये चालाक अमरीकन – मखीजा ये जानता था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड