रजिया सुल्तान बनी सोफी को बिंदा बेगम चकित निगाहों से कई पलों तक देखती रही थी।

“हाय अल्लाह। क्या हुस्न है?” बिंदा बेगम के मुंह से अनायास ही निकला था। “नजर न लग जाए।” उन्होंने सोफी की नजर उतारी थी। “घुड़सवारी आती है?” बिंदा बेगम ने पहला प्रश्न पूछा था।

“आती है।” सोफी ने सहज उत्तर दिया था।

बिंदा बेगम की निगाहों के सामने जंग करती रजिया सुल्तान साक्षात आ कर खड़ी हो गई थी।

“क्या करोगी मंटो का?” बिंदा ने पूछा था। “कत्ल करोगी ..”

“नहीं। अर .. नहीं पता।” सोफी तनिक घ्बरा गई थी।

“कौन थी रजिया सुल्तान – पता है?”

“नहीं पता।”

“इल्तुमश – जो दिल्ली के वायसराय कुतुबुद्दीन का जर खरीद गुलाम था अपनी काबिलीयत के दम पर गद्दी नशीन हुआ था। उसके चार बेटे और एक बेटी रजिया थी। बेटे काबिल नहीं थे इसलिए इल्तुमश ने मरते वक्त अपनी वसीयत रजिया के नाम कर दी थी। लेकिन दरबारियों ने इल्तुमश के अइयाश छोटे बेटे को गद्दी पर बिठाया और उसकी मां ने खूब धन माल समेटा। तब दिल्ली के गण मान्य सरदारों ने रजिया को गद्दी पर बिठाया और सुल्तान बनाया।

रजिया बहादुर थी, काबिल थी, अच्छी सैनिक थी और बढ़िया व्यवस्थापक थी। रजिया का प्यार जलालुद्दी यामूटी से हो गया था – जो एक गुलाम ही था। सर हिन्द के गवर्नर अल्टीनियो को ये पसंद न आया था और उसने दिल्ली पर चढ़ाई कर दी थी। जलालुद्दी मारा गया था और रजिया को बंदी बना लिया था। रजिया ने चाल चली थी और अल्टीनियो से शादी कर ली थी। लेकिन रजिया पकड़ी गई थी और उसे कत्ल कर दिया था।

रजिया ने तीन साल और कुछ दिन साशन किया था।

रजिया को लगा था जैसे अभी-अभी रजिया सुल्तान की रूह उसके अंदर प्रवेश पा गई थी। वो अपने प्रेमी राहुल को बचाने भाग रही थी। वो जालिम से जंग कर रही थी। वो जालिम से शादी कर रही थी और .. और जालिम .. उसे ..

“देखा! आदमी कभी भी औरत को सर पर बिठाना नहीं चाहता।” बिंदा ने सोफी का मौन तोड़ा था। “औरत आदमी के लिए मौज मस्ती मनाने का साधन है। वह नहीं चाहता कि ..!” बिंदा ने मुड़ कर सोफी को देखा था। “तुम्हारी तो तुम जानो क्रिस्टी लेकिन मेरी कहानी तो रजिया की कहानी से भी कई गुना गमगीन है।” बिंदा की आवाज रुलाई में टूट गई थी। “मैं तो अभागन ही रही।” उसने कहीं दूर देखा था।

औरत चाहे कुछ भी हो – अच्छी घुड़सवार हो, सैनिक हो, व्यवस्थापक हो या फिर शासक ही क्यों न हो, औरत ही रहती है – सोफी महसूस रही थी। पुरुष ही प्रधान है। औरत बेशक जालिम को परास्त कर दे लेकिन राज तो जालिम का ही रहेगा। हर आदमी जालिम ही तो है।

“आप ..?” सोफी ने मुड़ कर बिंदा बेगम की आंसुओं से भरी आंखों को देखा था। “क्या हुआ?” उसने पूछा था।

“फिर कभी सुनाऊंगी।” बिंदा ने आंसू पोंछ दिए थे। “तुम्हे क्या लेना देना।” बिंदा ने जैसे उसे उलाहना दिया था। “जिन लड़कियों के मां बाप समर्थ नहीं होते उन्हें सरे आम लूट लिया जाता है।” टीस कर कहा था बिंदा ने। “मैं भी एक वैसी ही अबला और बे सहारा लड़की हूँ।” बिंदा भावुक थी। उसने कई पलों तक सोफी की आंखों में देखा था। “आई एम ए हिंदू गर्ल।” बिंदा बेगम ने कटु सत्य को उगला था। “लेकिन ..” वह फिर से रोने-रोने को थी।

सोफी का भीतर बाहर बुरी तरह से हिल गया था।

लगा – आज पहली बार उसका भारत से परिचय हो रहा था। जो कुछ वह अभी तक सुनती आई थी आज उसका प्रमाण पा कर वह अंदर तक हिल गई थी। बिंदा बेगम के ठाठ-बाट देख कर कोई अंदाजा भी न लगा सकता था कि इस हवेली में मंसूर अली ने एक अबला हिन्दू लड़की को कैद करके रक्खा हुआ था।

अगर बिंदा बेगम ..?

मंसूर अली और जालिम अचानक एक साथ आ खड़े हुए थे। दोनों पुरुष थे। दोनों कातिल और कमीने थे। दोनों को मौत ही मिलनी चाहिए थी, लेकिन दोनों ही ऐशों आराम के बीचों बीच जी रहे थे।

क्या करे औरत – सोफी और बिंदा की समझ से बाहर था इसका उत्तर।

सर रॉजर्स को समर कोट एक सदमे की तरह सामने बैठा-बैठा मुंह चिढ़ा रहा था।

उन्हें पता ही नहीं था कि ये जालिम और समर कोट इस तरह उनके गले की हड्डी बन जाएंगे। उन्हें तो बड़ी उम्मीद थी कि उनकी टीम इसे आसानी से फतह कर लेगी। लेकिन अब तो अमेरिका ही खतरे में आ गया लगा था। कुल छह माह का समय था। अगर वो लटक गए और कुछ न कर पाए तो जालिम अमेरिका पर काबिज हो जाएगा। क्या मुंह दिखाएंगे वो टैड को? और अगर अमेरिका का भविष्य ..

घोर निराशा से घिरे सर रॉजर्स के पास कहीं मुंह छुपाने के लिए कहीं जगह नहीं बची थी।

“सर, बरनी सर आ गए हैं।” माइक ने संदेश दिया था। “आइए। आपका इंतजार है। हम सब तो मिल चुके हैं।” उसने बताया था।

अनमने से सर रॉजर्स सीट से उठे थे और माइक के साथ चले गए थे।

निगाहों से बरनी के साथ पहला मुकाबला हुआ था। बरनी प्रसन्न दिखा था। सर रॉजर्स भी सहज हो गए थे। मूडी की बगल में बैठा एक नया चेहरा दिखा था। उसे सर रॉजर्स ने पहले कभी नहीं देखा था। उन्हें समझ लगी थी कि शायद वह समर कोट की ही कोई दवा था।

“ये क्या है भाई कि सब दिखता है और कुछ दिखता भी नहीं है।” सर रॉजर्स ने प्रश्न पूछा था। “ये ब्लडी समर कोट मेरे लिए मुसीबत की जड़ बन गया है।”

सामने बैठे लोगों ने एक दूसरे को देखा था। कौन उत्तर देता तय नहीं हो पाया था।

“सर हमारे बीच ये माखीजा बैठे हैं – इन्हीं ने कालिया का कोड तैयार किया था। ये वैज्ञानिक हैं। हम इन्हीं से प्रर्थना करते हैं कि समर कोट की कहानी पर रौशनी डालें।” माइक ने प्रस्ताव रक्खा था।

सब लोगों ने मखीजा को एक साथ देखा था। मखीजा सीट से उठा था और माइक के सामने आ खड़ा हुआ था। सर रॉजर्स को अच्छा लगा था कि कोई तो था जो उस मुसीबत बने समर कोट के कांटे को निकाल सकता था।

“ये कोई इल्यूजन जैसा है।” मखीजा बताने लगा था। “जैसे कि रेगिस्तान में हमें दूर पानी दिखता है पर पानी होता नहीं। इसे मृग मरीचिका कहते हैं। उसी तरह समर कोट में भी शायद वैसा ही कुछ हो।”

“रघुनाथन के बयानों से तो जाहिर है कि ये कुछ बड़ा ही खेल है सर।” मूडी ने अपनी बात सामने रक्खी थी।

“सर, मेरी प्लान बिलकुल अलग है।” बरनी बोला था। “मखीजा ने कलिया कोड तैयार किया है। कलिया कोड को हम किलो वन बुलाते हैं। इसमें मूडी किलो टू है। अब रघुनाथन को किलो थ्री बना कर फिर से समर कोट भेजते हैं। रघुनाथन कालिया के संपर्क में आ जाएगा तो मूडी का काम बन जाएगा। और मखीजा रघुनाथन के किलो थ्री की मदद से समर कोट में प्रवेश करेगा और अपना कैंप स्थपित करेगा। अब ये समर कोट में रह कर सारी छान बीन और जानकारी जुटाएगा और समस्या का समाधान सुझाएगा।” बरनी ने बारी-बारी सभी को खोजी निगाहों से देखा था।

सब चुप थे। किसी ने कोई आपत्ति नहीं उठाई थी।

“तुम क्या कहते हो माइक?” सर रॉजर्स ने प्रश्न पूछा था।

“सर, वर्केबल प्लान है।” माइक ने अपनी राय दी थी। “और फिर मेरा प्रस्ताव है कि बरनी सर इस प्लान में स्वयं कंट्रोल का काम करें और बाकी सारे स्टेशन्स को संभालें।” माइक ने मखीजा की ओर देखा था। “आप भी अब और स्टेशन्स बनाना चाहें तो बना लें।”

“सुझाव बिलकुल सही है।” सर रॉजर्स तुरंत मान गए थे। “बरनी, यू प्लीज टेक ओवर मिशन समर कोट।” उन्होंने बरनी से आग्रह किया था। “एंड आई एम सॉरी फॉर द ..”

“सर, आपका आदेश मुझे मान्य है। मैं आपकी बहुत इज्जत करता हूँ। आप तो अमेरिका के फादर फिगर हैं।”

मीटिंग में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई थी और सब के दिल को छू गई थी।

सर रॉजर्स एक बड़ी मुसीबत से छूट गए थे और उठ कर बरनी से गले मिले थे।

सुबह का भूला शाम को घर लौट आया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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