माइक ब्लाडी बोस्टक से डबल माइंड ले कर लौटा था।

उसके दिमाग के अंतिम छोर पर उसे अभी भी रूस, चीन और वियतनाम के झंडे लहराते दिखाई दे रहे थे। उसे दुनिया भर से आती सतरंगी भीड़ डरा रही थी। उसे छोटे-छोटे पैरों से रेंग कर आती रिवॉल्यूशन दिखाई दे रही थी। वह देख रहा था कि किस तरह एक सम्मिलित साजिश अकेले अमेरिका के खिलाफ हवा में उठ खड़ी हुई थी। लोगों के होंठों पर धरा वो मौन भविष्य में होने वाले किसी भयंकर विस्फोट की सूचना दे रहा था।

“क्या बताऊं सर रॉजर्स को?” माइक ने स्वयं से प्रश्न पूछा था।

“हिट दैम हार्ड।” अचानक ही माइक का दिमाग बोला था। “बताओ चल कर सर रॉजर्स को कि बंद करें फॉरन एड। क्यों उलीच रहा है अमेरिका अपनी अर्जित कमाई को उन लोगों के लिए जो उसके विरुद्ध हैं? हमारा जूता और हमारा ही सर। बंद कर दें यह मानवता का ढोंग। गरीब अमीर के लिए क्यों लड़ेगा?” माइक का पहला सुझाव था।

डरते-डरते माइक स्काई लार्क के ऑफिस में घुसा था।

“बरनी सर तो चले गए।” माइक को घुसते ही सूचना मिली थी।

“कहां गए?” माइक ने चौंक कर पूछा था।

“नौकरी छोड़ गए।”

“क्यों? क्या हुआ ..?”

माइक के प्रश्न का उत्तर ऑफिस में बैठी चुप्पी ने दिया था।

माइक दहला गया था। उसे अहसास हुआ था कि कुछ था – कुछ ऐसा था जो अशुभ था और स्काई लार्क में घट गया था। उसे गए भी तो बहुत वक्त लग गया था। और फिर बरनी तो लखनऊ वाले मिशन पर था।

बरनी और माइक साथ-साथ सरकारी नौकरी में आए थे। दोनों की प्रगाढ़ दोस्ती थी। दोनों ही हार्ड वर्कर थे और देश के वफादार कर्मचारी थे। बरनी तो ..

“जरूर कुछ लखनऊ में घटा होगा।” माइक ने अंदाजा लगाया था। “लेकिन ऐसा क्या हुआ होगा जो बरनी ..?”

“तुम्हारा नम्बर भी आ सकता है माइक।” उसके भीतर से आवाज आई थी। “अमेरिका का बुरा वक्त है जो बरनी जैसे लोगों को साइड लाइन किया जा रहा है।”

माइक का मन डबल था कि उलटे पैरों लौट चले। सर रॉजर्स से मुलाकात होगी तो बरनी का संदर्भ बीच में जरूर आएगा। और अगर वो भावुक हो गया और अगर सर रॉजर्स के साथ बात बिगड़ गई तो? आज पहली बार ही था जब माइक का सर रॉजर्स के ऊपर से भरोसा टूटा था। इतने बड़े अनुभवी आदमी से इतनी बड़ी गलती हो जाएगी – माइक सोच भी नहीं सकता था।

“तो क्या उसे लौट चलना चाहिए?” दूसरा प्रश्न दिमाग में आया था। “पहले बरनी से मिलो। उसे पूछो कि हुआ क्या था? फिर उसके साथ मशविरा करो और तय करो कि ..”

ब्लाडी बोस्टक से लाया मसौदा उसे अब बहुत भारी लगने लगा था।

“फॉर अमेरिकाज सेक!” माइक के मन प्राण में एक अजीब सा भूडोल भर आया था। “अमेरिका के साथ गद्दारी नहीं।” उसे उसके स्वयं ने वरजा था।

“सर रॉजर्स आपका इंतजार कर रहे हैं, माइक सर।” माइक को किसी ने जगा दिया था।

माइक की जैसे नींद खुली थी। उसने जो ख्वाब देखा था, वो गायब हो गया था। और अब सच माइक के सामने आ खड़ा हुआ था। माइक ने अपने आप को संगठित किया था। वह बरनी की बात भूल गया था। उसे ब्लाडी बोस्टक का पूरा प्रसंग याद हो आया था। वह अब जीवंत था। वह अब सतर्क था। वह अब सच्चा अमेरिकन था और अमेरिका के लिए समर्पित था।

अपने भीतर के भय को सात तालों के भीतर बंद कर माइक सर रॉजर्स से मिलने चला गया था – निडर, निर्भीक और सचेत।

मूडी ने मर्दन हल्ली की खोज कर ली थी।

मर्दन हल्ली पंजिम शहर के उत्तर में गहरे जंगलों के बीचों बीच मंदोबी नदी के पूर्वी किनारे पर बसा एक उजड़ा बिगड़ा गांव था। कभी इस गांव का बाशिंदा पीटर जॉन्स एक नामी गिरामी आदमी था। बड़ा धनवान था। वह ड्रग्स का कैरियर था। एक ऐसा कैरियर जिसे दुनिया जहान के नए पुराने रास्ते याद थे, और उसे कभी पुलिस पकड़ नहीं पाई थी।

पीटर जॉन्स अब इस दुनिया में नहीं था। उसकी मृत्यु का कारण ड्रग्स का ओवर डोज ही था। वह धंधा करते-करते स्वयं भी र्डग्स का आदी हो गया था। उसकी पत्नी मरियम जॉन्स मर्दन हल्ली में अपने दो बच्चे – एक बेटा और एक बेटी के साथ पीटर जॉन्स के बनाए महल नुमा घर में रहती थी। उसके बुरे दिन चल रहे थे। वह डॉमैस्टिक हैल्प थी, और कई घरों में काम करती थी। उसके घर का ऊपर का हिस्सा अभी-अभी खाली हुआ था। मूडी ने उसे किराए पर ले लिया था।

घर के दरवाजे पर जब लोगों ने एडीसी रोलेंडो का नाम लिखा पढ़ा था तो सभी को आश्चर्य हुआ था।

खबर फैल गई थी कि कोई रोलेंडो था – न्यू किंग ऑफ नारकॉटिक्स और उसका एडीसी मर्दन हल्ली में रहने चला आया था। छत्तीस हजार टन माल की डिमांड थी, रोलेंडो की। पेमेंट कहीं भी किसी भी करेंसी में होना था। ऐजेंटों की आवश्यकता थी। ऐसे ऐजेंट चाहिए थे जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काम कर सकें।

चूंकि मर्दन हल्ली ऐजेंटों का अड्डा रहा था, और कुछ नए, पुराने ऐजेंट्स अभी भी सक्रिय थे, चारों ओर ये सूचना उन के बीच आग की तरह फैल गई थी।

मूडी ने एक पुराने मॉडल की लम्बी चौड़ी कार किराए पर मंगवा ली थी। उसका ड्राइवर कुट्टी इलाके का अच्छा जानकार था। उसे ड्रग्स के ठिकानों का भी पता था। मूडी को अब कहीं भी आने जाने में कोई कठिनाई नहीं थी। वह कार में बैठ कर एक नई शानोशौकत के साथ ऐजेंट्स से मिलने जाने लगा था। कुछ दिन के बाद ऐजेंट्स उसके पास खुद आने लगे थे। खूब मेला लगने लगा था। मूडी उन ऐजेंट्स में से एक ऐसा ऐजेंट तलाश लेना चाहता था जो अपने बलबूते पर समर कोट पहुंच जाए, और जालिम को रॉलेंडो का संदेश पहुंचाए।

मरियम जॉन्स ने सारे घरों का काम छोड़ कर केवल ऐडीसी रॉलेंडो का काम पकड़ लिया था।

काम बहुत था। लेकिन ऐडीसी रॉलेंडो मुंह मांगा पैसा देता था। अब मरियम जॉन्स को कोई आपत्ति नहीं थी। यहां तक कि ऐडीसी रोलेंडो उसके दोनों बच्चों से प्यार करता था और उनका भी खर्च उठाता था। मरियम जॉन्स बेहद प्रसन्न थी।

कुछ ही दिनों में ऐडीसी रॉलेंडो की ख्याति इलाके में चारों ओर फैल गई थी।

देश विदेश से ड्रग पैडलर ऐडीसी रोलेंडो के पास पहुंच रहे थे। कठिनाई केवल एक ही थी कि ऐडीसी रोलेंडो छोटे मोटे सौदे नहीं करता था। उसे तो मोटे ठिकाने चाहिए थे और मोटा ही ऐडवांस पेमेंट चाहिए था।

लेकिन हां, ऐजेंटों के लिए ऐडीसी रोलेंडो ने मोटा कमीशन तय कर दिया था।

कार ड्राइवर कुट्टी के साथ एक दिन एक व्यक्ति जिस का नाम रघुनाथन था, ऐडीसी रोलेंडो से मिलने आया था।

रघुनाथन इंटरनैशनल ऐजेंट था। वह इस खेल में बहुत पुराना था। उसका ठौर ठिकाना कहां था – कोई नहीं जानता था। लेकिन इतना सब जानते थे कि रघुनाथन ड्रग्स के खेल का बड़ा खिलाड़ी था। वह बड़ी स्टेक्स पर खेलता था और मोटा माल कमाता था।

“क्या दोगे ..?” रघुनाथन ने अन्य औपचारिकताओं के बाद सीधा सवाल पूछा था।

“जो मांगोगे वही।” ऐडीसी रोलेंडो ने भी खुला ऑफर दिया था।

“काम ..?” रघुनाथन ने दूसरा प्रश्न भी पूछ लिया था।

“जो मुझे चाहिए।” हंस गया था ऐडीसी रोलेंडो। “मैं तो मौत का सौदागर हूँ। इस पार या उस पार। आई डोन्ट केयर फॉर पुलिस और प्रशासन।” उसने रघुनाथन की आंखों में देखा था। “पूरी सुरक्षा मिलेगी, तुम्हें।” ऐडीसी रॉलेंडो ने वायदा किया था।

“मैं भी परियों के पर कतर कर ला दूंगा।” रघुनाथन ने भी अपने पत्ते फेंक दिए थे।

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मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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