“गोट ए बॉडी ऑफ स्टील।” मिष्टी ने मुझे घूरा था। “वॉट आर द मैसिव मसल्स यार।” मिष्टी की आंखों में आश्चर्य खेल रहा था।

मैं रग्बी ग्राऊंउ की घास पर पड़ी कुर्सी पर बैठा था। मेरा शरीर पसीने में तर-बतर था। सामने पड़े स्टूल पर मिष्टी आ कर बैठ गई थी।

आज रग्बी में जीती चैंपियनशिप का सेहरा मेरे सर बंधा था। जमा लोग रॉजर्स जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। बड़े भारी मार्जिन से हम जीते थे। जीत में मेरा योगदान बहुत था, इसीलिए मुझे सराहा जा रहा था। मैं मिष्टी को जानता था। वह हैरीटेज होटल वालों की लड़की थी। उसकी कार निराली थी और चाल भी निराली थी। उसका हल्का दल्का बेजोड़ था। बला की खूबसूरत थी मिष्टी।

मुझे आज पहली बार ही किसी लड़की ने छूआ था।

मैं लड़कियों के मामले में बड़ा ही रिजर्व था। और जहां तक लड़कियों का प्रश्न था वो भी मुझसे दूर भागती थीं। मेरी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं थी। मैं गर्ल फ्रेंड बनाना भी नहीं चाहता था। और मिष्टी जैसी लड़कियों से तो मैं कोसों दूर रहता था। पैसे वाली लड़कियों को चापलूस और तलवे चाटने वाले लड़के चाहिए थे और मेरे जैसे लड़को को वो मुंह ही न लगाती थीं।

मिष्टी के परिवार का व्यापार देश विदेशों तक फैला था। हैरीटेज होटल की ब्रांचें यूरोप से लेकर रूस और भारत तक फैली थीं। बड़ा ही कारोबार था और परिवार भी जाना माना था।

मिष्टी मुझे घूरे जा रही थी लेकिन मैंने अपनी निगाहें दूर रग्बी के गोल पोस्ट पर केंद्रित कर ली थीं। मैं इंतजार में था कि वो मुझे छोड़े और मैं चंपत हो जाऊं।

लेकिन मिष्टी हिली तक नहीं थी। उसने कहा था – “रॉजर्स, तुम एक होनहार युवक हो। तुम्हारा जैसा चरित्र आम लोगों का नहीं है। मुझे भी तुम जैसे ही लोग पसंद आते हैं जो सैल्फ मेड होते हैं, स्वाभिमानी होते हैं और अपने दम पर जीते हैं। लेकिन आजकल का ट्रेंड अलग है, रॉजर्स। लुच्चे .. साले ..।” मिष्टी रुकी थी। उसने पलट कर मेरी आंखों में झांका था, लेकिन मैं तो अभी भी रग्बी के गोल पोस्ट को देखे जा रहा था।

“फिर मिलते हैं रॉजर्स।” कह कर मिष्टी चली गई थी।

मेरे यार दोस्तों ने मेरा जीना हराम कर दिया था – उस दिन के बाद।

“साले तूने तो बाजी मार ली। बन गई तेरी तो जिंदगी। यार, मिष्टी तेरी हो गई तो मान ले – यू विल बी ए मिलीऑनर।”

मैंने तो इस बारे कुछ नहीं सोचा था। पैसों के लिए हमारे परिवार में भूख नहीं थी। हम साधारण अमेरिकन थे, देश भक्त थे और देश के लिए समर्पित थे। मेरे डैडी प्रथम विश्व युद्ध में लड़े थे और पैंश्नर थे। हमारा गुजारा ठाठ से चलता था।

लेकिन मिष्टी ने मुझे ढीला न छोड़ा था। वह मेरे साथ और सहयोग में आ गई थी। स्पोर्ट्स मैन के कोटे से मुझे आर्मी में कमीशन मिल गया था। मिष्टी चुप रही थी। कुछ भी बोली नहीं थी। लेकिन उसे अच्छा न लगा था – ये तो मैं भी जानता था।

और फिर मुझे मिष्टी ने पटा ही लिया था। वी वर हैड ओवर हील इन लव। मुझे भी प्रेम के भूत ने पकड़ लिया था। और मैं भी मिष्टी के प्यार में अंधा हो गया था।

हमारी शादी का खूब लंबा चौड़ा जश्न मना था। मिष्टी के पापा ने मिष्टी को मालामाल कर दिया था। व्यापार में उसके शेयर्स थे और साझा भी था।

मेरे हिस्से में केवल मिष्टी ही आई थी और मैंने भी उसे माथे चढ़ा कर ले लिया था।

जैसे भूखे को भोजन मिल गया हो मिष्टी को पा कर मुझे ऐसा लगा था।

मेरा प्यार अछूता था। मैं बिलकुल नया था प्रेम प्यार के इस खेल में। लेकिन मिष्टी वॉज सुपर्ब। मैंने मन प्राण से मिष्टी को स्वीकार कर लिया था। मैंने मिष्टी के विगत के बारे में कभी कोई प्रश्न नहीं पूछा था। मैंने मान लिया था कि अब मिष्टी मेरे प्रेम की अछूती धरोहर थी। और मैं उसका अकेला स्वामी था। मिष्टी का अंग सौष्ठव गजब का था। न जाने क्यों मैं भंवरे की तरह मिष्टी के अंग विन्यासों में सुध बुध खो देता था। मेरे लिए मिष्टी ही अब सब कुछ थी।

और तब आगमन हुआ था सोफी का।

मैं फूला न समाया था। मैंने पूरे अस्पताल में शोर मचा दिया था कि मेरी बेटी सोफी अनिंद्य सुंदरी हैं। सोफी का कोई जोड़ नहीं है। सोफी ..

“बच्चों के बारे ज्यादा नहीं बोलते।” मिष्टी ने मुझे रोका था। “हमारी बेटी है। हमारा भाग्य है। जैसी भी है हमारे लिए तो सर्वश्रेष्ठ है।”

मैंने मिष्टी की बात मान ली थी। अब मैं और सोफी अकेले में खेलते थे – एक दूसरे के साथ। कैसे प्रेमिल पल थे वो – भारी हो आता है सर रॉजर्स का मन।

और तभी युद्ध के नगाड़े बज उठे थे। मुझे वियतनाम जाने के आदेश हुए थे। मैं बहुत प्रसन्न था। मैं लड़ना चाहता था। मैं जानना चाहता था कि आखिर युद्ध का मैदान होता कैसा है। लेकिन सूचना मिलते ही मिष्टी पागल हो गई थी।

“ये क्या हिमाकत है, रॉजर्स? तुम वियतनाम जा रहे हो?”

“क्यों? जाना नहीं चाहिए? अरे भाई। देश का हक है हम पर।”

“काहे का हक?” गरजी थी मिष्टी। “छोड़ दो नौकरी। हमें किस बात की कमी है रॉजर्स?”

“ये क्या कह रही हो मिष्टी?” मैंने गुहार लगाई थी। “कंट्री इज फर्स्ट।” मैंने मिष्टी के सामने नारा बुलंद किया था। “अगर हम न लड़ेंगे तो कौन लड़ेगा? सोचो मिष्टी ..?”

“सोच लिया।” मिष्टी की आवाज तल्ख थी। “जाओ। लड़ो। मरो। मैं चली।”

“क्या ..?”

“डाइवोर्स!” घोषणा की थी मिष्टी ने।

में हैरान था। मैं परेशान था। मेरे लिए तो सोफी और मिष्टी दोनों ही जन्नत थे। मैं उनके लिए ही तो मरा जीता था। लेकिन मिष्टी की जिद के सामने मैंने हथियार नहीं डाले थे। और मिष्टी मुझे और सोफी को छोड़ चली गई थी।

कमाल की बात ये थी कि सोफी भोली-भोली आंखों से सब कुछ देखती रही थी – मौन और एक दम असंपृक्त। मिष्टी ने भी मुड़ कर सोफी को नहीं देखा था। हां। सोफी को लेकर हमारे बीच जंग जरूर हुई थी।

“रख अपनी बेटी को।” मिष्टी ने मुझे ललकारा था। “तेरी है तो तू ही रख।” उसने मुझे सीधा जवाब दिया था।

सोफी को हॉस्टल में छोड़ मैं वियतनाम की लड़ाई में जा रहा था।

सोफी ने मेरे गले से लिपट कर मुझे प्यार किया था। ओह गॉड। कैसी पवित्र अनुभूति थी। बाप बेटी के अमर रिश्ते पर जैसे सोफी ने मुहर लगा दी थी। सोफी मेरी बेटी थी और मैं उसका पापा था।

मुझे याद है जब मैं सोफी को छोटे-छोटे पत्र लिखने लगा था। बड़ी ही सावधानी के साथ मैं सोफी के लिए प्यारे-प्यारे मासूम शब्द चुनता था। और बड़े-बड़े अक्षरों में उन्हें सजा-सजा कर लिखता था। वो मेरी बेटी के लिए मेरे अमर वाक्य होते थे। सोफी भी मुझे भोले-भोले पत्र लिखती थी। उन पत्रों को पढ़ कर मैं धन्य हो जाता था। युद्ध के उस हू हल्ला के बीचों बीच मैं सोफी के पत्रों को सीने से लगा कर रखता था। और मौका मिलते ही पढ़ने बैठ जाता था।

पापा। आप की बहुत याद आती है। आप कब आ रहे हो – सोफी पूछती तो मैं भावाकुल हो आता। मेरे लौटने की तारीख तो मुझे ही कब पता थी। फिर क्या बताता सोफी को।

और जब मैं लौटा था तो पूरे अमेरिका को पता चल गया था।

मैंने अप्रत्याशित काम किया था अमेरिका के लिए। मेरी चर्चा पत्र पत्रिकाओं में खूब हुई थी। सोफी की आंखों से उजागर होता गर्व मैंने भी देखा था। उसे अपने पापा पर नाज था।

लेकिन मिष्टी नहीं लौटी थी। मैंने ही अकेले में मिष्टी के प्यार के शूल को चुभते पाया था। मैं अभी तक उसे भूला कहां था।

लेकिन सोफी ने कभी मुड़ कर भी मिष्टी के बारे में कुछ नहीं पूछा और न कभी उसकी तलाश की।

Major Kripal Verma Retd.

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading