सर रॉजर्स अकेले बैठे थे। उनका मन उदास था। उन्हें लग रहा था कि वो जीवन के जूए में लुट गए थे और सब कुछ हार बैठे थे।

आज यूं सोफी का जालिम से जंग लड़ने का किया संकल्प उन्हें अच्छा भी लगा था और बुरा भी। अच्छा तो इसलिए कि सोफी अमेरिका के लिए लड़ेगी, अमेरिका के दुश्मन जालिम को परास्त करेगी और उनका भी नाम रौशन करेगी। बुरा इसलिए कि सोफी उनके जिगर का एक टुकड़ा थी। उनका परम प्रिय स्वप्न थी, उनके जीने का अकेला आधार थी। और सोफी के सिवा उनका कोई भी न था। लेकिन जो होने जा रहा था उस पर उनका कोई जोर न था।

अचानक ही उन्हें भूली याद की तरह मिष्टी दिखी थी। मिष्टी सेलवान – धनी बाप की घमंडी बेटी। मिष्टी सेलवान – जो कभी मिष्टी रॉजर्स थी उनकी प्रिय पत्नी थी। अचानक ही वह अपनी बेटी का पक्ष लेकर उनसे लड़ने चली आई थी। सर रॉजर्स को बहुत अच्छा लगा था। वह भी चाह गए थे मिष्टी सेलवान उनसे लड़े, जोर शोर से लड़े और सोफी की बांह पकड़ कर घसीट ले जाए – ले जाए कहीं दूर – सब की आंखों के पार किसी अदृष्य में।

“मेरी बेटी को जंग में झोंकने का तुम्हें क्या हक है रॉजर्स?” मिष्टी प्रश्न पूछ रही थी। “अपना जीवन तो बर्बाद कर लिया तुमने अब मेरी बेटी को भी उसी देश भक्ति के दोजख में भेज रहे हो? मैं तुम्हें माफ नहीं करूंगी रॉजर्स। मैं जेल भेजूंगी तुम्हें।”

“भेज दो भेज दो, मुझे जेल भिजवा दो।” सर रॉजर्स बड़बड़ाने लगे थे। “रोक लो सोफी को!” उनका आग्रह था। “ले जाओ उसे अपने साथ। मैं .. मैं” सर रॉजर्स की आंखें गीली हो आई थीं।

“तुम्हीं ने बिगाड़ा है सोफी को। वो तुम्हारे जैसे ही आचरण करती है।”

“मैं क्या करता मिष्टी? अकेला मैं क्या-क्या करता।” सर रॉजर्स गंभीर थे। “सोफी की परवरिश में तुमने साथ कब दिया? कभी मुड़ कर देखा तक नहीं अपनी बेटी को।” सर रॉजर्स ने मिष्टी को उलाहना दिया था। आज वो मिष्टी से जूझ पड़ना चाहते थे। उसे बता देना चाहते थे कि वो कितनी स्वार्थी थी, कितनी लालची थी और कितनी बेरहम।

“बच्चे को संस्कार तो मां ही देती है मिष्टी – ये तो तुम भी जानती हो। सर रॉजर्स आज खुल कर सामने आ गए थे। “लेकिन तुमने तो मां बनने के बाद कभी मुड़ कर भी नहीं देखा इस अपनी बेटी को। तुम्हें तो गुमान था मिष्टी, अपने धनी बाप का, अपने हुस्न का और अपनी लालसाओं का। यू आर ए हाईली सैल्फिश वुमन मिष्टी। मेरा मुंह मत खुलवाओ तुम। मैं जला भुना बैठा हूँ। मैं भूला नहीं हूँ वो .. वो ..” सर रॉजर्स का गला रुंध गया था।

“मैं क्या करती?” पलट कर वार किया था मिष्टी ने। “तुम्हें तो अमेरिका प्यारा था – मैं नहीं।” अब मिष्टी भी जंग में कूद पड़ी थी। “कभी मुड़ कर तुमने मुझे पुकारा? तुम तो चले गए लड़ने वियतनाम में और मैं ..? मैं किस-किस से लड़ती? और किस लिए लड़ती?”

“अपनी बेटी के लिए बलिदान ..?”

“मैं नहीं मानती इन चोंचलों को रॉजर्स, ये तुम जानते हो।” मिष्टी तनिक सी मुसकुराई थी। “मैं तो स्व की पुजारिन हूँ। मुझे मेरा हक चाहिए और मेरी आजादी चाहिए। लेकिन तुम? तुमने तो मेरी बेटी को भी ..?” मिष्टी ने सीधा सर रॉजर्स की आंखों में आंखें डाल कर देखा था। “कम से कम उसे तो एक औरत की तरह जीना सिखाते?”

“मैं सिखाता?” उछले थे सर रॉजर्स। “मैं तो वियतनाम में था – मैं तो जेल में था – मैं तो जीवन और मौत के बीच में लड़ रहा था। और सोफी अकेली थी हॉस्टल में। लेकिन तुम ने कभी मुड़ कर भी नहीं देखा उसे मिष्टी। तुम निर्दयी हो .. तुम .. तुम मां नहीं हो ओर तुम ..?” सर रॉजर्स की जुबान लड़खड़ा गई थी।

लगा था – सर रॉजर्स आज भीतर से खाली हो गए थे। न जाने कब से रुका बैठा था ये गुबार, ये शिकवे शिकायतें और वो अनादर जो मिष्टी की देन था।

सोफी तो जालिम से जंग करने जरूर जाएगी – वो जानते थे। और उसे कोई रोक भी नहीं सकता था। वो मिष्टी को तो कभी याद भी नहीं करती थी। मां नाम की किसी औरत से उसका तो कोई परिचय ही न था।

सोफी तो सच्चे मायनों में अमेरिका का एक वफादार सैनिक थी।

सर रॉजर्स वॉज नॉट एम्यूज्ड।

उन्हें रह-रह कर बरनी पर क्रोध आ रहा था। उन्हें लग रहा था कि बरनी की बनाई अटैक प्लान ठीक नहीं थी। कुछ था जरूर जो मिसिंग था। कहीं कोई लिंक थी जो जुड़ नहीं पाई थी। जासूस तो खाली हाथ जाता है। उसे लड़ना नहीं होता। काम बना कर चल पड़ना होता है। लेकिन बरनी वॉज गैटिंग इन्वॉल्वड।

अगर आज कोई महा प्रसन्न था तो वो थी सोफी।

उसे रह-रह कर राहुल पर प्यार आ रहा था। वह न चाहते हुए भी राहुल के आगोश में जा बैठी थी। वह बार-बार और हर बार राहुल की हो जाती थी। आज उसे राहुल से अच्छा कोई पुरुष दिखाई ही न दे रहा था। उसका मन गाना चाहता था और उसका तन खुशियों के साथ नाच रहा था। उसकी उमंग आसमान से ऊंची थी। राहुल न जाने कहां था? उसे कोफ्त हो रही थी। वह आज राहुल के साथ रंगरेलियां मनाने के लिए पहली बार आतुर हुई थी।

एक औरत के जीवन में पुरुष कितना महत्वपूर्ण होता है – आज सोफी ने महसूसा था।

“योर प्लान सीम्स टू बी हैजी बरनी।” सर रॉजर्स ने सपाट शब्दों में बयान किया था। उनका मन बिदक रहा था। उन्हें बार-बार सोफी की चिंता सता रही थी। “याद रखना बरनी कि हमारे मिशन की सफलता विफलता हमारी ही नहीं – अमेरिका की भी है।”

बरनी तनिक सा मुसकुराया था। वह अपने आप में अलर्ट था। उसे सर रॉजर्स की नाराजगी का भी अनुमान था।

“सर। अभी प्लान का पार्ट टू हमने डिस्कस ही नहीं किया।” बरनी ने सर रॉजर्स को प्रसन्न करना चाहा था।

“लेकिन क्यों? लैट्स डिस्कस राइट नाओ।”

“अभी नहीं सर।” बरनी विनम्र था। “मुझे इंतजार है बतासो और कालिया के लिंकअप का।” उसने खुलासा किया था। “आप जानते हैं कि हमारी सफलता उनकी सफलता पर पूरी तरह निर्भर करती है।

सर रॉजर्स की जैसे नींद खुली थी। उनकी फौरन समझ में आ गया था कि जालिम की पहली जंग तो अकेले कालिया और बतासो के साथ थी।

“कब तक ..?” सर रॉजर्स ने फिर भी प्रश्न पूछा था।

“एनी टाइम नाओ।” बरनी ने उन्हे आश्वस्त किया था।

राहुल ने सर रॉजर्स के हाव भाव से भांप लिया था कि वो कहीं प्रसन्न न थे। सोफी – राहुल ने सीधी समस्या पर उंगली धरी थी। बेटी के बाप भी तो हैं सर रॉजर्स और बेटी को यूं अकेले जंग में उतारना आसान काम था क्या? लेकिन सब कुछ हो रहा था। राहुल भी सोफी को ही तलाश लेना चाहता था। उसने भी सर रॉजर्स से ही सोफी का पता पूछा था।

राहुल आज सर रॉजर्स को बहुत-बहुत अच्छा लगा था। मन खुश था उनका और वो राहुल को आगोश में ले कर प्यार करना चाहते थे। सोफी का सच्चा मित्र कोई था तो राहुल ही था। आज सर रॉजर्स की समझ में आ गया था।

“आप क्यों चिंता मग्न हैं सर?” राहुल ने मुसकुराते हुए पूछा था। “मैं जानता हूँ कि आज आप भी जालिम के भय से आतंकित हैं।” राहुल सहज भाव से कह रहा था। “फिकर ना करें सर। मैं हूँ ना, इस साले जालिम को गर्दन से पकड़ कर आपके पास घसीट लाऊंगा।” राहुल ने ठेठ देसी अंदाज में कहा था।

“हाहाहा।” जोरों से हंसे थे सर रॉजर्स। “यू आर ए जीनियस, राहुल।” उन्होंने लाढ़ से कहा था। “आई लाइक यू।” उन्होंने इजहार किया था।

आज पहली बार राहुल का सर रॉजर्स के साथ एक रिश्ता कायम हुआ था।

“सर, जर्मनी से खबर है।” माइक चला आया था। “मारा गया ऐलान।” उसने सूचना दी थी।

“ओह गोश।” सर रॉजर्स ने अफसोस जाहिर किया था।

“लेकिन हमारा तो काम बन गया सर।” माइक हंसा था। “जालिम का एक बेटा जज बना बैठा है जर्मनी में।”

“क्या ..?” हैरान थे सर रॉजर्स। “अंधे हैं क्या ये लोग?” उन्होंने हैरानी से पूछा था। “हम .. हम .. माइक ..”

“आंखें खोलेंगे यूरोप की सर।” माइक ने बात पूरी की थी। “अब यूरोप तो पूरा हमारी पॉकिट में होगा।” ऐलान था माइक का।

सर रॉजर्स को जैसे होश लौट आया हो – वह हंस गए थे।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading