लैरी भारत से लौट आया था। जालिम का फोटो जिसे लैरी साथ ले कर आया था स्काई लार्क के लिए किसी उत्सव से कम न था।

पहली बार जालिम का हाल हुलिया उजागर हुआ था। और पहली बार ही स्काई लार्क के लोगों ने उस फोटोग्राफ को आंखें भर-भर कर देखा था। अभी तक की की सारी कल्पनाएं और कयास धराशायी हो गए थे। अब तो साक्षात जालिम ही उनके सामने था।

“वॉट ए मैग्नैनीमस मैन यार!” सोफी ने राहुल से कहा था। “ठीक निर्णय है। इसे मारना नहीं चाहिए। इसे तो पकड़ कर जिंदा लाने में ही हमारी भलाई है।”

“पर मैं तो इससे दो-दो हाथ जरूर करूंगा।” राहुल ने तनिक विहंस कर कहा था।

“राजपूत हो ना!” सोफी ने भी व्यंग किया था। “बाज नहीं आओगे लड़ाई से?”

वो दोनों खूब हंसे थे। सोफी और राहुल को आज अपना उद्देश्य दिख गया था। उन्हें पता चल गया था कि उन का मिशन मामूली न था। उन्हें एक दुर्दांत शेर को पिंजड़े में बंद करना था – बिना किसी हथियार के।

“कैसे हासिल किया ये फोटो?” सर रॉजर्स ने लैरी से पहला प्रश्न पूछा था।

“सोए पड़े अमेरिका के ऐम्बैसी को जगाना पड़ा, सर।” लैरी ने शिकायत की थी। “उन्हें तो जालिम जैसे किसी खतरे का भान तक न था। देखा तो किसी ने नहीं है जालिम को। अगर कालिया की मदद न मिलती तो मुश्किल था ये मोर्चा।” हंस गया था लैरी। “अब सब लोग सजग हैं और मान गए हैं और जान गए हैं जालिम को।”

“और दिल्ली ..?” सर रॉजर्स ने अहम प्रश्न पूछा था।

“दिल्ली को देख कर तो मुझे बड़ी निराशा हुई सर।” लैरी से रहा न गया था तो बोल पड़ा था। “मैं तो बड़े-बड़े सपने देखा करता था दिल्ली को लेकर। लेकिन जब सामना हुआ तो मैं ..”

“पुराना शहर है, भाई!” तनिक मुसकुराए थे सर रॉजर्स। “बहुत मार खाई है दिल्ली ने। बड़े-बड़े बुरे दिन देखे हैं। लैरी, सच मानो कि ये दिल्ली की ही छाती है जो इतने जुल्म झेलकर भी जिंदा है।” सर रॉजर्स ने अपना मत बताया था। “अमेरिका तो अब आ कर बसा है लैरी। लेकिन दिल्ली तो अनादिकाल से जुड़ी है।”

“ठीक कहते हैं आप सर।” लैरी मान गया था। “मुझे भी इसका आभास हैदराबाद पहुंच कर हुआ सर।”

“वो कैसे?”

“मेरी एक चांस मुलाकात एक ब्राह्मण से हो गई। मैं तो लौटने वाला था। पर वो मुझे सड़क के एक नुक्कड़ पर खड़ा दिख गया। अधनंगा था। माथे पर चंदन का तिलक था। चेहरा भी बड़ा जाज्वल्यमान था। आंखें लासर बीमों जैसी थीं। और आश्चर्य ये सर कि मैं उससे गुलाम अली का पता पूछ बैठा।”

“फिर ..?”

“फिर क्या! उसने सब कुछ बता दिया। कहा वह तो उसका शिष्य है।”

“झूठ बोला होगा लैरी। कोई ठग होगा!”

“नहीं सर। वो तो सच्चा संन्यासी है।” लैरी ने बताया था। “मैं तो पहली बार ..”

“सुना तो मैंने भी था इन संन्यासियों के बारे। विश्व युद्ध रोकने के लिए तब भारत सत्य अहिंसा की सीख दे रहा था और हम इन पर हंस रहे थे।

“क्यों?” लैरी ने पूछा था।

“अरे भाई। लड़ाइयां कहां रुकती हैं।” हंसे थे सर रॉजर्स। “आदमी अगर आदमी है तो वो जरूर ही लड़ेगा। मानेगा जालिम बिना लड़े?” वो पूछ बैठे थे। “क्या मानेगा जालिम सत्य अहिंसा के मंत्र को?”

“वो तो नहीं मानेगा सर!” लैरी भी हंस पड़ा था।

“कभी-कभी मैं भी मानता हूँ लैरी कि शायद भारत का सनातन ही विश्व का भावी भविष्य हो?” सर रॉजर्स ने अपने मनोभाव व्यक्त किए थे। “लेकिन युद्ध की संभावनाएं भी बेहद प्रबल हैं।” उन्होंने कहा था। “जालिम जैसे जड़ लोग हमेशा से रहे हैं और रहेंगे भी।”

“लेकिन आप ने तो जालिम को मारने की भी मनाही कर दी है सर।” लैरी ने पूछा था। “जबकि कितना खतरनाक है ये आदमी।”

“हां, है तो!” मान गए थे सर रॉजर्स। “लेकिन मेरा मनतव्य है लैरी कि बुराई के एक प्रमाण की तरह हम इस जालिम को इस तरह मिटाएं कि फिर कोई जालिम पैदा ही न हो।” हंसे थे सर रॉजर्स। “लेकिन ..”

“इसे तो मार डालने में ही भलाई है, सर।” लैरी ने बेबाक राए दी थी। “ये कभी बदलेगा नहीं।”

लेकिन सोफी की जिद थी कि जालिम को जिंदा ही पकड़ेंगे – मारेंगे नहीं।

मिशन किलर्स एक असंभव अभियान बन गया था।

मुख्य अखबारों के मुखपृष्ठों पर एक बार फिर बतासो और कालिया के फोटो छपे थे और सब में नाना प्रकार की सनसनीखेज खबरें भी छपी थीं।

एक दर्द भरी कहानी लोग भीगी-भीगी आंखों से पढ़ रहे थे। बतासो और कालिया को जेल में मिली वो निर्दयी यातनाएं प्रेस ने खुल कर लिखी थीं। यहां तक बताया गया था कि उन दोनों के प्राईवेट पार्ट्स पर घावों के निशान थे। उन के बदन नीले पड़ गए थे – मार खा-खा कर। उन्हें तरह-तरह की यातनाओं का सामना करना पड़ा था। हर रोज उनको हजारों हजार प्रश्न पूछे जाते थे। जालिम कौन था, कहां था और क्या करता था, यह बार-बार पूछा जाता था।

लेकिन कमाल ये था कि इन दोनों ने जालिम के बारे एक शब्द भी नहीं बोला था।

शायद ये लोग बेगुनाह थे – अखबारों ने अपनी राय लिखी थी। कहते हैं कि किसी कबीले के सदस्य थे ये दोनों। उन्हें शक पर अरैस्ट किया गया था। जालिम तो कोई है ही नहीं। कोई कोरा बातों का भूत है। निरा प्रोपेगेंडा है। इन दोनों निर्दोशों को तो फिजूल में ही सताया गया है। अखबारों ने सिस्टम पर पूरा दोष मढ़ा था।

बरनी का ये तीर भी ठिकाने पर लगा था।

बतासो और कालिया को ये कहानी समझाई गई थी और रटाई गई थी। उन्होंने जालिम को यही सब बताना था और शरीर को उघाड़ कर लगे घाव, पड़े नीलों और निशानों को बार-बार दिखाना था ताकि उनकी बेगुनाही और वफादारी सिद्ध हो जाए।

बरनी ने सर्जन मखीजा को व्यक्तिगत तौर पर समझाया था कि किस तरह उसने बड़ी ही सावधानी से बतासो और कालिया के शरीरों को एक नमूने की तरह घाव, निशान और नील डाल कर तैयार करना था। जालिम कोई साधारण शय न था। उसे कन्विंस करना बच्चों का खेल न था। कालिया और बतासो की ये सलामती का सवाल था।

“तुम्हें जेल से किसने निकाला?” बरनी ने बतासो और कालिया को पूछा था।

“रॉलेंडो ने!” उन दोनों का एक ही जवाब आया था और तुरंत आया था।

“करैक्ट!” बरनी ने प्रसन्न होते हुए कहा था। “कौन है ये रॉलेंडो?” बरनी ने फिर से पूछा था।

“नारको किंग!” बतासो और कालिया ने फिर सही उत्तर दिया था।

“तुम्हें क्यों निकाला जेल से?” बरनी का अगला सवाल था।

“वो आपसे मिलाप करना चाहता है।” उत्तर फिर से सही आया था।

“क्यों?” बरनी ने तुरंत अगला सवाल पूछा था।

“वह चाहता है कि सत्ता आपकी और पत्ता उसका। माने कि वो नशा-नशा खेलेगा दुनिया में लेकिन सत्ता आपकी होगी।” कालिया और बतासो ने उत्तर का ठीक-ठीक बयान किया था।

“बिलकुल सही जवाब है।” बरनी खुश था। “ये सब याद रखना है। गलती बिलकुल नहीं करनी है।” बरनी ने उन दोनों को सचेत किया था। “और क्या रॉलेंडो की कहानी याद है?” उसने पूछ लिया था।

“याद है।” बतासो बोला थी।

“तुम सुनाओ कहानी कालिया!” बरनी का आदेश आया था।

कालिया तनिक सिकुड़ा था। उसकी जुबान मोटी थी। कठिनाई से ही कुछ कह पाता था। लेकिन बरनी नहीं चाहता था कि कालिया से कोई चूक हो जाए।

“सुना दे न! डरता क्यों है।” बतासो ने कालिया को सहारा दिया था। “तीन-तीन बार रटाई थी कल रॉलेंडो की कहानी, भूल गया?” बतासो ने उलाहना मारा था।

“नहीं भूला हूँ।” कालिया गर्जा था। उसने मुड़ कर बतासो को घूरा था। “नशा किंग है। उसके पास हजारों की फौज है। दुनिया भर में उसके लोग फैले हैं। पैसा बहुत है। बड़ा ही खतरनाक आदमी है। देश विदेशों की सरकारें भी उसका पानी भरती हैं। लेकिन अब वो आपका पानी भरेगा – उसने कहा है।” कह कर कालिया ने बरनी की आंखों में देखा था।

“गुड। वैरी गुड।” बरनी खुश हो गया था। “यू आर ग्रेट कालिया।” उसने प्रशंसा की थी कालिया की।

बरनी की बनाई योजना सर रॉजर्स को भी बहुत पसंद आई थी।

“ये दोनों समर कोट कैसे जाएंगे?” अंत में सर रॉजर्स ने बरनी से पूछा था।

“ऊंटों से!” बरनी ने तुरंत उत्तर दिया था।

“एक्सीलैंट।” बरनी का उत्तर सुन कर सर रॉजर्स खुश हो गए थे।

बतासो और कालिया को अचानक ही अपने ऊंट राजू गाजू याद आ गए थे।

Major krapal verma

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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