लंदन के ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी में शूटिंग के लिए पहले दिन पहुंचे थे तो प्रतिष्ठा और मानस दोनों नर्वस थे।
अगर कोई होश में था तो वो था राधू रंगीला।
फिल्म की कहानी राधू रंगीला के सिवा किसी को पता नहीं थी। वह चाहता नहीं था कि फिल्म की कहानी रिलीज होने से पहले किसी को पता चले। प्रेम कहानी थी। अगर डिबिया से बाहर आ गई तो सुगंध की तरह उड़ जाएगी – राधू रंगीला ये जानता था।
इतिवार का दिन था। छुट्टी थी। सब खाली-खाली पड़ा था। लाइब्रेरी में शूटिंग होनी थी। वह खुली थी। बाकी के शॉट राधू ने पहले ही कैमरे में कैद कर लिए थे। आज तो कहानी के क्लाईमैक्स की शूटिंग थी। प्रतिष्ठा और मानस के शॉट थे – साथ-साथ। दो प्रेमियों की ये पहली मुलाकात थी। बस इतना ही बताया था राधू रंगीला ने।
प्रतिष्ठा का परिधान एक स्वतंत्र और स्वेच्छाचारी युवती का था। बाल और गाल दोनों ही बेजोड़ नगीनों की तरह दहक रहे थे। आंखें ठहरी-ठहरी, झुकी-झुकी और सांसें रुकी-रुकी थीं। मानस का मेकअप एक दमदार, बेधड़क और बेफिक्र युवा का था। उसे जैसे अपने तन मन की सुध ही न थी। वह जवानी के नशे में बेहोश था।
दृश्य छोटा था। बहुत छोटा था। प्रतिष्ठा को लगा था कि डायरेक्टर राधू रंगीला कोई पागल आदमी था। यूं ही समय बर्बाद कर रहा था, प्रतिष्ठा को लग रहा था।
लेकिन मानस को अपने पुराने अनुभवों से पता था कि राधू रंगीला वॉज टॉकिंग सैंस। प्रेम की व्याख्या करना इतना आसान न था – मानस जानता था।
“तुमने … इधर से चलकर उधर को जाना है। यहां तक बस।” राधू ने प्रतिष्ठा को लेकर शॉट शूरू किया था। “हां ठीक।” शॉट के बाद बोला था राधू। “अब उधर उस दिशा में उस बुक शैल्फ के पास जा कर ठहरो।” राधू का आदेश था। प्रतिष्ठा को बड़ा ही अटपटा लग रहा था।
“मानस। चल कर बुक शैल्फ तक आ जाओ।” राधू का हुक्म आया था।
मानस चल कर बुक शैल्फ के पास पहुंचा था। सामने प्रतिष्ठा खड़ी थी।
“दोनों एक साथ उधर उस बुक को छूना है।” राधू ने आदेश दिया था।
प्रतिष्ठा ने उस बुक को निगाह भर कर देखा था। लिखा था – गीतांजली बाई रबीन्द्रनाथ टैगोर। मन खिल गया था प्रतिष्ठा का।
उन दोनों ने एक साथ बुक शैल्फ में लगी गीतांजली को छूआ था। एक दूसरे का स्पर्श उंगलियों से किया था। फिर मुड़ कर निगाहें भर-भर कर एक दूसरे को देखा था, परखा था और फिर दोनों ने एक साथ कहा था – आप?
“कट।” राधू गरजा था।
सब कुछ वहीं ठहर गया था।
“अब मुड़ना है। तुमको इधर जाना है और मानस को उधर।” राधू ने बताया था।
दोनों कलाकारों ने राधू की आज्ञा का पालन किया था।
हालांकि प्रतिष्ठा पूछना चाहती थी कि ये क्या बदतमीजी थी, ये क्या था? कौन सी फिल्म बन रही थी? कहीं ऐसा तो न था कि …
“अब दोनों का लराई यहां से शुरू होगा।” राधू रंगीला हंस कर बता रहा था। “दर्शक देखेगा कि दोनों में जीतेगा कौन? हुस्न या इश्क?” उसने शूटिंग समाप्त करते हुए कहा था।
प्रतिष्ठा हैरान थी। प्रतिष्ठा परेशान थी। उसे न तो कहीं हुस्न दिखा था और न ही कहीं इश्क नजर आया था।
लेकिन मानस की प्यार भरी निगाहों ने उसे सब कुछ समझा दिया था।
राधू रंगीला की टीम आज फिर ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी में शूटिंग के लिए पहुंची थी। आज छुट्टी का दिन न था। आज भारी चहल पहल थी। राधू रंगीला ने पहले मानस को अकेले-अकेले अपनी बिछुड़ गई प्रेमिका को उस भीड़ भरे माहौल में तलाश करने को कहा था।
“जो इस भीड़ में खो गई है उसे ढूंढना है तुम्हें।” राधू रंगीला ने कहा था। “कैमरे लगे हैं। ढूंढो। पागलों की तरह।” हंसा था राधू। “अपनी हुस्न परी को खोजो।”
और मानस ने बिलकुल बावले हुए देवदास की तरह अपनी खो गई प्रेमिका को उस भीड़ भरे माहौल में तलाशा था। हर कोना तलाशा था। हर चेहरे को निहारा था। हर दिशा में देखा था। चेहरे पर धरी प्रेम की चाह भी अजब गजब थी।
यूनीवर्सिटी के लोग सहयोग में जुटे थे। भारतीय सिनेमा का अपना अलग ही प्रभाव था। युवक युवतियां बड़े चाव से मानस के सामने आते जाते रहे थे। लेकिन मानस को निराशा ही हाथ लगी थी। सर पकड़ कर वह ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी के द्वार पर बैठा दिखा था।
और अब प्रतिष्ठा की बारी थी।
“बिलकुल लैला मजनूं की कहानी की लैला ने मजनूं को तलाशना है।” राधू रंगीला ने चुहल की थी। “देखो प्रतिष्ठा। प्यार भी किसी नशे से कम नहीं होता। ये भी आदमी को पागल बना देता है।
“बैस्ट ऑफ लक।” मानस ने चुहल की थी। “तलाशो …!” वह हंस गया था।
प्रतिष्ठा की नजर में कुछ-कुछ मंजर समाया था। लगा था – राधू रंगीला कुछ अलग और अनूठा करना चाहता था।
प्रतिष्ठा को लगा था कि वह वास्तव में ही एक पगला गई प्रेमिका थी।
प्रतिष्ठा की प्रेमी को खोजती निगाहों ने गजब ढाए थे। प्रतिष्ठा ने जो – जिस तरह के किरदार को व्यक्त किया था वह बेजोड़ था।
यहां तक कि यूनिवर्सिटी के दर्शक बने युवा युवतियों ने तालियां बजाई थीं।
तलाश में निराश हो कर हारी थकी प्रतिष्ठा को लाइब्रेरी में उसी शैल्फ को छूते दिखाया था जहां गीतांजली धरी थी।
“आप …?” प्रतिष्ठा ने वही पुराना संवाद बोला था। लेकिन इस बार उसका गला भर आया था और आंखें सजल थीं।
“कट।” राधू ने आदेश दिए थे। “एक्सिलेंट।” राधू का रिमार्क था।
आज की शूटिंग समाप्त हुई थी। पैक अप था।
क्रू के सभी लोग कैंटीन में बैठ चाय पी रहे थे। स्टूडेंट्स की भीड़ आस पास उमड़ आई थी। मानस और प्रतिष्ठा को सभी ललचाई निगाहों से देख रहे थे।
चाय पीते-पीते प्रतिष्ठा ने आंखें उठा कर मानस को देखा था।
कमाल हुआ था। न जाने कैसे उसने आज मानस का प्रेमी पक्ष देख लिया था। प्रेमिका की तलाश में डोलते मानस के दिमाग में शायद वही थी – ऐसा आभास हुआ था प्रतिष्ठा को।
और जब वह प्रेमी की तलाश में स्वयं भटकी थी तब भी उसके दिमाग में केवल मानस और मानस ही था।
“फिल्म सुपर हिट होनी चाहिए।” प्रतिष्ठा का अपना अनुमान था।
“मुझे पता था प्रतिष्ठा – यू आर ए बार्न कलाकार।” मानस प्रतिष्ठा की प्रशंसा कर रहा था।
“और तुमने पटा ही लिया मुझे।” प्रतिष्ठा जोरों से हंसी थी।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड