आज 19 तारीख मंगलवार था। स्वामी अनेकानंद के दरबार में चार बजे शाम का समय निश्चित हुआ था।

एक अनुभवी पार्टी कार्यकर्ता की तरह बबलू ने मुकम्मल बंदोबस्त किए थे। पार्टी के सारे कार्य कर्ता, अध्यक्ष और उपाध्यक्षों पर सूचना थी कि आज विलोचन शास्त्री के घर से जुलूस 12 बजे निकलेगा और चार बजते-बजते माधव मानस इंटरनैशनल पहुंचेगा।

करीब चार किलोमीटर में जुलूस का फैलाव था।

पुलिस और प्रेस हाजिर था। पार्टी के सभी पदाधिकारी पहुंचे हुए थे। विलोचन शास्त्री और उनकी पत्नी सीता देवी उनकी कार में विराजमान थे। कार पर समाज पार्टी का झंडा फहरा रहा था। बाकी की गाड़ियां भी झंडों और पोस्टरों से सजी वजी थीं। आखिरी गाड़ी में बैंड बाजा था। बीच की एक गाड़ी में कमला पुरोहित का माइक लगा था। कमला पुरोहित पार्टी के प्रवक्ता थे। अच्छा बोलते थे। राजनीति पर कमला पुरोहित की पकड़ थी।

“शास्त्री परिवार का देश की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।” कमला पुरोहित का व्याख्यान जारी हुआ था। “इनके पिता सुलोचन शास्त्री गांधी जी के परम भक्त थे। वो तीन बार जेल गए थे। शेष जीवन उन्होंने साबरमति आश्रम में गांधी जी की सेवा में बिताया था। और हमारे विलोचन शास्त्री का समाज सेवा का कीर्तिमान तो सर्वोपरि है। बंबई में ऐसा कोई नहीं जो ये नहीं जानता कि विलोचन शास्त्री ने बंबई का कायाकल्प किया था।”

तालियां बजी थीं। नारे लगे थे – विलोचन शास्त्री जिंदाबाद। विलोचन शास्त्री की जय।

बंबई में भूचाल जैसा भर गया था। पुलिस ने जैसे तैसे ट्रैफिक और पब्लिक को संभाला था। पब्लिक में विलोचन शास्त्री का खूब यशोगान हुआ था। विलोचन शास्त्री का नाम फिर से नया हो गया था।

स्वामी अनेकानंद जी के भोजन और विश्राम का समय था।

“शिकार आ रहा है।” कल्लू दौड़ता भागता आया था और स्वामी जी को सूचना दी थी। “चार बजे का समय है। नेता है। विलोचन शास्त्री नाम है। मग्गू के खिलाफ चुनाव में खड़ा है। पछाड़ना है इसे।” कल्लू ने राज खोला था।

“क्यों?” आनंद ने प्रश्न पूछा था।

“हम जिसका खाते हैं, उसी के तो गीत गाएंगे।” कल्लू ने सीधी बात की थी। “मग्गू के इस फाइव स्टार में मुफ्त रहते हैं हम आनंद बाबू। वक्त है – हलाल करने का।” कल्लू तनिक हंसा था। “चित्त मारना है साले को।” कल्लू ने आनंद की आंखों को पढ़ा था। “मुझे भी तो इसी शास्त्री ने बर्बाद किया था, आनंद बाबू।” गमगीन हो आया था कल्लू। “पुलिस पर दवाब बना कर इसी ने …”

आनंद सकते में आ गया था।

उसे आज फिर एहसास हुआ था कि राम लाल, कल्लू और कदम ने उसे जाल में फांस लिया था।

“भाग लो आनंद।” उसका मन आज फिर बोला था। “निकलो इस सच झूठ के जंगल से।”

“लेकिन कहां?” स्वयं से ही पूछा था आनंद ने। “एक हजार हर माह घर जाता है। सोचो …? बुरा क्या है? राम लाल का दर्शन गलत कहां है? जितने भी लोग आते हैं, सब खुश हो कर जाते हैं। कुछ का तो भला होता ही होगा।”

“करना क्या है?” आनंद ने धीमे से पूछा था कल्लू को।

“ऐसी पट्टी पढ़ाओ साले को कि …” रुका था कल्लू। “गणेश जी की प्रतिमा पकड़ा देना और बोल देना कुछ अग्गड़ बग्गड़। हाहाहा। पागल हो जाए ऐसा कुछ। टैम हो गया है। मैं भागता हूँ।” कल्लू चला गया था।

एक नई चुनौती आ खड़ी हुई थी, आनंद के सामने।

“कौन सा गणित लगाए?” उसने अपने आप से पूछा था। “न सांप मरे न लाठी टूटे।” उसे उत्तर मिला था। “कुछ ऐसा गढ़ो आनंद जो उस व्यक्ति में शामिल हो। जो वो हो वही कहो। होगा तो वही जो राम रचि राखा है।” आनंद हंस गया था।

आनंद को पूर्ण विश्वास हो गया था कि दुनिया को चलाने वाला वास्तव में ही कोई और था – ईश्वर ही था।

विलाेचन शास्त्री चरण छूने झुके थे ताे आनंद ने राेक दिया था।

“आप पिता तुल्य हैं। मुझे आपके चरण छूने चाहिए।” स्वामी जी ने विलाेचन शास्त्री के चरण छूए थे।

“आप धन्य हैं। प्रभु के सच्चे सेवक हैं।” विलाेचन शास्त्री ने उन्हें आशीर्वाद दिया था।

दाेनाें की निगाहें कई निमिष के लिए मिलती रही थीं। सच्चाई अच्छाई के मिलन से आस पास भी आलाेकित हाे जाता है।

“ललाट पर लिखा है – तपस्वी हैं आप। लेकिन आपकी तपस्या में विघ्न आने का अंदेशा है। काेई बहुत अपना ही विश्वासघात कर सकता है।” स्वामी जी ने चिंता व्यक्त की थी। विलाेचन शास्त्री भी सचेत हुए थे। कई बहुत अपनाें के नाम एकाएक उनके जेहन में आए गए थे।

राजनीति का खेल घात प्रतिघात का खेल ही ताे है। शास्त्री जी भी जानते थे कि यहाँ आँख बचते ही सीट चली जाती है। ताक में बैठे हाेते हैं नेता गण। काैन किसकी खाट कब पलट दे, भराेसा नहीं हाेता।

“उपाय ..?” विलाेचन शास्त्री ने तुरंत पूछा था।

“उपाय भी है।” तनिक विहंसे थे स्वामी जी। फिर अपने दाएं हाथ काे हवा में लहराया था। गणेश जी की प्रतिमा विलाेचन शास्त्री की हथेली पर रख दी थी। इसके उपरांत चुटकी मसलते हुए विभूति से प्रतिमा काे नहला सा दिया था। “विभूति मस्तक पर धारण करें।” स्वामी जी ने उन्हें आदेश दिया था। “प्रतिमा काे हमेशा अपने सिरहाने रख कर साेएं।” स्वामी जी ने राय दी थी। “विघ्न हरण गणेश जी वरदानी शिव के पुत्र हैं। इनके हाेते काेई अशुभ नहीं घटेगा।” स्वामी जी ने आश्वासन दिया था।

“आप के गुरु काैन हैं?” विलाेचन शास्त्री ने अचानक ही प्रश्न पूछ लिया था।

अब स्वामी जी भी खबरदार हुए थे। कल्लू और राम लाल का बताया उत्तर उन्हाेंने न दिया था। वह जानते थे – खतरा था। विलाेचन शास्त्री आम आदमी न थे। वाे जिज्ञासू थे। मनस्वी थे। और खेले खाए राजनेता थे। काशी उनके लिए अनजान न था। गुरु का नाम बताने पर ताे गजब भी हाे सकता था।

“हमारे गुरु हम स्वयं हैं।” स्वामी जी ने गंभीर हाेते हुए कहा था। “हम संन्यासी हैं। अतः हम संपूर्ण हैं। माया माेह से परे, धन मान से दूर और दुनियादारी से अलग – हम परमेश्वर के दूत हैं।” मुसकुराए थे स्वामी जी।

“आप की शिक्षा ..?” विलाेचन शास्त्री फिर से प्रश्न पूछ बैठे थे।

“स्वयं शिक्षित हैं। प्रभु की प्रेरणा ही हमारे ज्ञान का स्राेत है। हमें हर किसी के ललाट पर लिखा दिख जाता है।” स्वामी तनिक हंसे थे। “आप भी ताे स्वयं प्रकाशित हैं।” उन्हाेंने विलाेचन शास्त्री की आँखाें में देखा था।

विलाेचन शास्त्री बहुत प्रसन्न हुए थे। उन्हें स्वामी अनेकानंद जी के चरित्र में काेई खाेट नजर न आया था।

“मेरे लिए आपका आदेश?” जाते-जाते विलाेचन शास्त्री ने पूछा था।

“देश का कल्याण। विश्व का कल्याण।” मुसकुराते हुए कहा था स्वामी जी ने।

“जाे आज्ञा।” सादर कहा था विलाेचन शास्त्री ने और सर झुका कर नमन किया था।

विलाेचन शास्त्री चले गए थे। लेकिन स्वामी अनेकानंद काे आंदाेलित कर दिया था उन्हाेंने। कमाल ही था कि राम लाल, कल्लू और कदम ने उसे एक हजार रुपये का लालच दे कर फसा लिया था। और न जाने ये लाेग कितनी-कितनी कमाई कर रहे थे?

आनंद ने आज महसूसा था कि प्रकृति, परमेश्वर और धरती कहीं बहुत ज्यादा समर्थ थे वरना ताे राम लाल, कल्लू और कदम न जाने क्या-क्या कर गुजरते।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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