“कुछ उखड़ी हुई हो ..?” लैरी ने मुझे आते ही पूछा है।
“हां! रॉबर्ट से झगड़ा हुआ है। झूठ बोलना मुझे बुरा लगता है।”
“क्यों?” लैरी हंस रहा है। “ही इज सच ए डीसेंट बॉय!”
“गोआ जाने की जिद को लेकर बैठ गया है।” मैं शिकायत करती हूँ।
“जाओ-जाओ!” लैरी मजाक जैसा करता है। “जालिम का क्या है? कब तक है – कौन जाने?”
“नहीं!” मैं तनिक बिगड़ी हूँ। “रॉबर्ट जैसे कायर मर्द के साथ गोआ जा कर भी मैं क्या करूंगी?” मैं अपनी बात बताती हूँ।
लैरी आगे बात नहीं बढ़ता। वह चला जाता है। मैं भी अपना चौपट हुआ मूड संभालती हूँ। सोचती हूँ – आज कुछ सफलता ले कर ही रहूंगी। आज जरूर ही जालिम का हुलिया पा लूंगी और उसका पता ठिकाना भी खोज लूंगी।
पता नहीं मुझे क्या जल्दी है कि मैं जालिम तक पहुँचने के लिए बेताब हूँ।
“ये देखो। धड़ाका।” रस्टी मुझे अखबार दिखाता है। “इजराइल में ..! ए बिग बैंग।” वह बुरा सा मुंह बनाता है। “वैरी-वैरी डिवास्टेटिंग।” वह कहता है। “ये जालिम का जलवा है शायद।” वह अपना मत पेश करता है।
“नहीं हो सकता।” मैं साफ नाट जाती हूँ। “जालिम इज ऑन दि डिफरेंट ट्रेल।” मैं उसे बताती हूँ। “ये सब तो पॉलिटिकल है।”
“और जालिम क्या है?” वह पूछ बैठा है।
“क्रिमिनल!” मैं संक्षेप में कहती हूँ। “जालिम तो राक्षस है। उसके तो लड़ने के हथियार ही अलग हैं।” मैं अपनी दी दलील पर खुश हो कर मुसकुराती हूँ।
अकेली अपनी डैस्क पर बैठ कर मैं एक बार फिर से रॉबर्ट से जा उलझती हूँ। रॉबर्ट अब मुझे अपने मिशन का सबसे बड़ा दुश्मन दिखता है।
“लो! तुम्हारा दुश्मन भी मर गया।” बरनी आ कर मेरी डैस्क पर बैठ गया है। “राष्ट्रपति का तो बहुत चहेता था – यह शक्स।” बरनी आंखें नचाता है। “पूअर चैप।” कह कर वो मेरी ओर घूरता है।
“किसकी बात कर रहे हो?”
“जानी ग्रिप।” बरनी मुंह बिचकाता है। “द ग्रेट डिस्को डांसर। एंड द ग्रेट-ग्रेट ..!” वह गाना जैसा गाता रहता है।
“क्या ..?” मैं भी उछल पड़ती हूँ। “जानी ग्रिप ..? यू मीन डिस्को किंग?” मैं फिर से पूछ लेती हूँ।
“जी हां! मर गया। या कहूँ कि मार दिया गया। पीटर्सबर्ग रूस में उसके होटल के कमरे में दिन दहाड़े उसकी हत्या हो गई। बेरहमी से मारा है किसी ने।”
“कौन हो सकता है?”
“अभी तक कुछ अता-पता नहीं। गजब का कांड है। मारने वाले का अभी तक कोई सुराग नहीं। मरने वाले ने खूब जंग की थी लेकिन ..!”
“कोई क्यों मारेगा उसे? उसने किसी का क्या बिगाड़ा होगा?” मैं अफसोस जाहिर करती हूँ। “वह तो एक गवइया था .. एक ..”
“खतरनाक भी तो था?” बरनी हंसा है। “बहुत ही खतरनाक था वो।” बरनी उंगलियां घुमाता है। “यूरोप, अमरीका और रूस सबका चहेता गायक – जो चाहता था कि इन तीनों को मित्र बना दे .. तीनों को एक सूत्र में पिरो दे।” बरनी कहता ही चला जाता है। “मर गया .. न ..?”
जानी ग्रिप का चेहरा मेरी आंखों के सामने घूम जाता है। मेरी आंखों में आंसू भर आते हैं। मैं अब रो लेना चाहती हूँ। मुझे अच्छाई-सच्चाई का अंत आ गया लगता है। लगता है – आतंक अब सब कुछ खत्म करके ही दम लेगा। इससे पहले कि हम जालिम तक पहुंचें वह हमें ही लील जाएगा।
कल की सी बात ही तो लगती है जब मैं फ्रांस में जानी ग्रिप से जाकर मिली थी।
“स्वागत है – सोफिया रीड!” उसने हंस कर कहा था। “तुम आओगी, मुझे विश्वास था।”
मैंने उसका संवाद सुना था। उसकी आवाज में जादू था। उसका चेहरा माेहरा तो कोई खास नहीं था, पर हां हाव भाव से वह बहुत प्रभावित करता था। मेरी निगाहें उसमें कुछ खोजने लगी थीं। शायद एक प्रकार की तलाश थी मुझे।
“क्यों ..?” मैंने सोफे पर बैठते हुए पूछा था। “मुझे क्यों आना चाहिए था।”
“सुंदर हो – बहुत सुंदर हो।” वह हंसा था। “और थोड़ा नाच सीखने के बाद तो तुम आग का गोला बन जाओगी सोफिया रीड।” वह मुसकुरा रहा था।
मैं उसे समझने की कोशिश कर रही थी। शायद वह मुझे भ्रमित कर लेना चाहता था। पर मैं सावधान थी। लेकिन वह जादूगर था। लड़कियां उस पर जान देती थीं। जब वह गाता था तो गजब हो जाता था। और फिर उसका नाच .. और फिर उसका ..
“आवाज मैं दूंगा सोफी और गीत को जुबान तुम देना सोफिया रीड!” वह कहता ही गया था। “दुनिया को मस्त कर देंगे हम दोनों। हमारे प्रेम गीतों का जादू जब बढ़ चढ़ कर बोलेगा तो ..?” वह रुका था। “और जब तुम्हारे इन कोमल लाल-लाल होंठों से प्रेम रस टपकेगा तो ..?”
“प्रलय हो जाएगी ..!” मैं भभक उठी थी। “कोरी बकवास करते हो तुम।” मैं उठ खड़ी हुई थी। “बहकाओ मत जानी!” मैंने उसे डांट सा दिया था।
वह सकते में आ गया था। वह मुझे समझ ही न पाया था। मैं चली आई थी।
पता नहीं मुझे यह प्रेम प्रलाप बुरा क्यों लगता है?
“कुत्ते की मौत मरा साला। कुछ करके मरता तो ..” बरनी उठ कर जा रहा है।
“मरा हाथी है यह, बरनी!” लैरी कहता है। “ठहरो। इस जानी की मौत से कोई क्लू पकड़ते हैं। जरूर इसमें कोई रहस्य है।” वह मेरी ओर देखता है।
“रहस्य ..?” मैं तुनक कर पूछती हूँ। जानी की मौत का सदमा अब भी मेरे दिल पर बैठा है।
“हां, रहस्य!” लैरी कहता है। “सोचो साेफी, इसे मार कर किसे फायदा है?”
“जालिम को तो नहीं ही होगा!” बरनी दो टूक कहता है।
“होगा! क्यों नहीं होगा?” लैरी अड़ जाता है। “रूस, यूरोप और अमेरिका – इन तीनों का भाई चारा, तीनों का एक होना – किसे अखरेगा? सोचो?”
“जालिम को तो जरूर अखरेगा!” मैं लैरी का समर्थन करती हूँ। “इस बात में तो दम है। और यह तय है कि जालिम जरूर ही इन तीनों ठिकानों पर नहीं है। और यह भी तय हो जाता है कि यह चीन, भारत, पाकिस्तान या फिर अफगानिस्तान में कहीं है।”
“नहीं है।” बरनी टांग मारता है। “बिलकुल नहीं है।” वह स्पष्ट कहता है। “उसका नाम जालिम है और वह है भी जालिम। जहां वह बैठा होगा .. वहां ..”
“चिड़िया भी पर नहीं मारती होगी।” मैं भी अपनी राय दे देती हूँ।
“यस।” बरनी बात को संभालता है। “मेरा शक यमन पर है। यमन आज कल सुर्खियों में छा गया है। हो सकता है कि ..”
“नहीं हो सकता।” लैरी जोरों से हंसता है। “जालिम का गिरोह अलग है। जैसे कि जानी का हत्यारा कोई इन आतंकवादियों में से नहीं है। मैंने खबर मिला ली है। पूरे नेटवर्क में कहीं भी कोई शक नहीं जाता।” वह मुझे घूरता है।
जालिम अब फिर हमारी पकड़ से बाहर होता जा रहा है। हम किसी भी एक मुद्दे पर सहमत नहीं हो पा रहे हैं। मेरा मन तो वैसे भी जानी ग्रिप की हत्या की खबर सुन कर खट्टा हो गया है। यह नहीं कि मुझे उससे कोई खास लगाव था, पर हां वह एक अच्छा गवइया और नर्तक तो था ही।
“भारत की भीड़ में अगर उसे कहीं खोजें तो कैसा रहेगा?” बरनी एक नई बात सामने रखता है। “भारत के बंज व्यापार में कहीं उसके पैर पड़ने की परछाइयां मुझे कभी-कभी नजर आती हैं। वह भारत में ही कहीं है। चाहे जिस रूप स्वरूप में हो पर है जरूर!”
“तो मैं भारत चली जाती हूँ।” मैंने तुरंत प्रस्ताव सामने रख दिया है।
“यू मीन .. गोआ एन्ड विद रॉबर्ट?” लैरी ताली पीट कर हंसा है।
हम सब भी खिलखिला कर हंस पड़ते हैं। बात मजाक में बह जाती है।
लेकिन जालिम नहीं हिलता। ठीक मेरे दिमाग के बीचों बीच कहीं बैठा ही रहता है।