” वाओ! आज तो चिकन आया है.. घर में!”।
” हाँ! पर धीरे बोलो.. इसको सब समझ आता है”।
अपनी कानू की तरफ़ इशारा करते हुए, हमने कहा था।
दरअसल बच्चों का उस दिन बाहर से खाने का कुछ मन हो रहा था, मौसम तो अच्छा हो ही रहा है.. बस! तो पतिदेव काम से लौटते वक्त बच्चों के लिए.. बोनलेस चिकन लेते हुए आए थे।
अब घर में चिकन का डब्बा खुले, और प्यारी कानू को ही पता न चले ऐसा भला हो कैसे सकता था।
चिकन की महक आते ही, कानू ने भी हमारे चारों तरफ़ पूँछ हिला-हिला कर घूमना शुरू कर दिया था। दोनों पंजे हमारे ऊपर रख खड़ी होकर, और अपनी प्यारी नन्ही गोल-गोल आँखे हमारी आँखों में डालकर हमसे जिद्द करते हुए, कहने लगी थी..
” आज तो हम भी इसी सब्जी से अपनी रोटी खाएगें!”।
अब खाना तो कानू हमारे वाला ही खाती है। हमने कानू को बचपन से ही डॉग फ़ूड पर नहीं पाला। थोड़े दिन जब छोटी थी, तो ट्राय कर देखा था.. पर मैडम ने डॉग फ़ूड और साधारण भोजन ख़ुद ही रेजेक्ट कर, हमारी वाले मिर्च मासालो वाले खाने को ही अपने लिए, सेलेक्ट कर डाला था।
खैर! सभी का खाना-पीना अपने पसंदीदा चिकन साथ हो गया था। और प्यारी कानू ने भी उसी बाज़ार के चिकन के साथ चटखारे लेकर आनंद के साथ भोजन फरमाया था।
प्यारी कानू ने एकबार नहीं! दो-दो बार हमसे जिद्द कर इसी सब्जी का आनंद लिया था।
अब बच्चों की तरह कानू भी हमारी लाडली है, और बचपन से ही कुत्ते की तरह न रखते हुए, हमने बच्चे की तरह से ही पाला है.. तो बस! बात तो माननी ही थी।
” अरे! ओ!..हो!.. यह क्या भई!”।
अगले दिन सुबह आँख खुलते ही कमरे में फर्श पर नज़ारा कुछ ही था। कानू ने अपने पूरे बिस्तर पर उल्टी व फर्श को ख़राब कर रखा था। यह सब देख.. याद आया था कि, रात को हमारे गाल पर अपनी गोल छोटी सी प्यारी सी गीली-गीली नाक लगाकर कानू हमसे क्या कहना चाहती थी। देखा! बाहर निकलने के लिए उठाना चाहती थी.. हमें!
पर नींद में बात समझ ही नही आ पाई थी।
कानू को बाहर निकाल सारी साफ़-सफ़ाई कर डाली थी।
” अरे! यह क्या.. कानू को दस्त!।
बाहर निकल कर देखा, तो पाया कि, प्यारी कानू.. दस्तों से परेशान हो गयी थी।
” मुझे ही कानू को इस बाज़ार की सब्जी से दो -दो बार खाना नहीं खिलाना चाहिए था। चलो! कोई बात नहीं!मिट्टी और घास वगैरह खाकर ठीक हो जाएगी। पर कानू की हालत में कोई भी सुधार नज़र नहीं आ रहा था।
” आप ख़ुद डॉक्टर बनना बंद करो! और इसे डॉक्टर के पास लेकर जाओ! अगर काना को कुछ हुआ.. तो देखना!”।
बात तो हमें भी सही लगी थी, और कानू को खोने के डर से और ज़्यादा घबराते हुए, हमने डॉक्टर को दिखाना ठीक समझा था। अब है तो जानवर ही!
” अरे! यह तो लग ही नहीं रही.. बीमार सी!”!
कानू को गाड़ी की पीछे वाली सीट पर उछल-कूद करते मैने सोचा था। और फ़िर अगला नज़ारा देख तो हँसी रुकी ही नहीं थी।
मैडम झट से उछल-कूद करते हुए, आगे वाली सीट पर आराम से जा बैठीं थीं.. नज़ारे देखते हुए, डॉक्टर के पास जा पहुँचे थे।
डॉक्टर साहब ने काफ़ी सारे टेस्ट लिख डाले थे। पर कानू की चंचलता और उस प्यारे से चेहरे पर आत्मविश्वास देखते हुए.. हमने केवल दवाइयां ही खरीदी थीं।
सोचा था.. अगर दवाइयों से आराम न मिला, तो फ़िर टेस्ट करा लेंगें।
” उफ़्फ़!! यह तो मुहँ ही नहीं खोल रही.. गोली कैसे मुहँ में डालें!”।
” अरे! आप भी न! अंडे में मिलाकर दो.. झट से खा लेगी।”
दवाई को अंडे में देने वाली बात समझ तो आ गई थी, पर महारानी जी ने किसी भी तरह से डॉक्टर की दी हुई दवाई नहीं खाई थी। बिना डॉक्टर की दवाई खाए, अपना मन पसंद भोजन खाते हुए.. ही कानू दो-चार में ठीक हो गई थी।
दिमाग़ की तेज़ और चुस्त निकली.. हमारी कानू!
कितना खाना बीमारी में खाना है, और कब आराम करना है.. सभी कुछ जानते हुए.. अपना इलाज खुद से ही कर डाला था।
और हो भी क्यों न! अब ये डॉक्टर वगैरह तो इंसान के ही बनाए हुए हैं। बाकी जीव तो अपना इलाज अपना जीवन प्रकर्ति के अनुरूप स्वयं ही चलाते हैं। न कोई डॉक्टर न कुछ और।
और सही भी यही है। अपने शरीर का और अपना ध्यान हम अपने आप से ही बेहतर रख सकते हैं। हमारी प्रकृति और हमारे वातावरण में वो सभी चीजें मौजूद हैं.. जिनका इस्तेमाल कर हम अपने आप को स्वस्थ बना कर रख सकते हैं।