बंबई शहर के ऊपर अचानक ही चुनावों का बुखार चढ़ गया था।

चुनाव लड़ने के लिए सूरमाओं का चुनाव होने लगा था। नए पुरानों का नाम और काम सामने आने लगा था। पिछले पांच सालों में किसने क्या-क्या किया लोगों के बीच चर्चा चल पड़ी थी। किसे टिकिट मिलेगी और कौन किनारे लग जाएगा खुल कर चर्चाएं चल रही थीं।

पार्टियों ने अपने-अपने घोषणा पत्र तैयार कर लिए थे। इस बार पार्टी क्या कुछ नया करेगी – बताया जा रहा था। पिछली बार पार्टी ने लोगों को निराश किया था, यह खुल कर सामने आ रहा था। कौन जीतेगा इस बार, कयास लगाए जा रहे थे।

अचानक ही प्रेस बोल पड़ा था। अखबारों में छपे स्वामी अनेकानंद के फोटो और कथित चमत्कारों के साथ माधव मोची का नाम अचानक ही आ जुड़ा था। हालांकि लोग जानते थे कि मग्गू ने क्या कुछ किया था और किस तरह उसका बेटा मानस फिल्में बना-बना कर पब्लिक के पैसे को खाता-उड़ाता रहा था। लेकिन खुल कर विरोध में कोई नहीं आ रहा था। हां, बिलोचन शास्त्री को एक बड़ा झटका लगा था – जब उन्हें पता चला था कि मग्गू का पुराना परम मित्र कल्लू नाई उससे फिर आ मिला है।

“खुलवा दो पुराना केस नेता जी।” बिलोचन शास्त्री के नीतिकार कमला पुरोहित ने सुझाव दिया था। “मुन्नी को लेकर नहीं भागा था ये? केस अभी तक बंद पड़ा है।”

“सी एम के साथ अकेले में बैठता है – मग्गू, कमला।” टीस कर कहा था बिलोचन शास्त्री ने। “बहुत गहरी जड़ें हैं, भाई।”

“तो उखाड़ फेंकते हैं।” बिलोचन शास्त्री का भतीजा गर्जा था। “गोली मार देते हैं साले को।” उसकी आवाज में रोष था।

“अरे रे। नहीं-नहीं बबलू बेटे।” बिलोचन शास्त्री ने घबराते हुए कहा था। “हिंसा नहीं।” उन्होंने बबलू को वर्जा था। “चुनाव लड़ते हैं। फैसला जनता को करने दो।”

“फिर तो कल्लू खींच देगा कांटा, काका।” रामू पनवाड़ी ने सचेत किया था, बिलोचन शास्त्री को।

“हार जीत तो ऊपर वाले के हाथ में है रामू।” बिलोचन शास्त्री ने खुले आसमान को देखा था।

लोगों ने बिलोचन शास्त्री को डरपोक बताया था और उनकी जीत पर यह पहला प्रश्न चिन्ह लगा था।

“हो सकता है कल्लू कि इस बार पार्टी टिकट ही न दे।” मग्गू ने हवा का रुख देख कर कल्लू को सचेत किया था।

“ना दे।” उछला था कल्लू। “रक्खे अपनी टिकट अपनी जेब में।” कल्लू मुसकुराया था। “हम निर्दलीय लड़ेंगे।” कल्लू ने घोषणा की थी। “और चुनाव भी जीतेंगे।” उसने छाती ठोक कर कहा था।

मग्गू कल्लू को नई निगाहों से देखता रहा था। कल्लू के पास हर समस्या का हल था – मग्गू मान रहा था। लेकिन कहीं अपने गहरे में बैठा वह जानता था कि उसने पब्लिक के लिए कुछ किया दिया नहीं था। कारण था – मानस। फिल्मों के चक्कर में पड़े मानस ने उसे बुरी तरह से बदनाम कर दिया था। कई लड़कियों के साथ शादी का वायदा कर उसने धोखा दिया था। मग्गू की इज्जत धूल में मिल गई थी – वह जानता था।

“अब देर मत करो मग्गू।” कल्लू ने धीमे से मग्गू के कान में कहा था। “स्वामी जी से आशीर्वाद ले लो। भीड़ हर रोज बढ़ रही है। पिछड़ गए तो ..”

“तू कर न कुछ।” मग्गू ने कल्लू को कंधा मारा था। “तेरा स्वामी है।” हंसा था मग्गू। “संया भए कोतवाल तो ..?”

“हां-हां। फिर डर काहे का?” कल्लू भी जोरों से हंसा था। “हाहाहा। करता हूँ गोट फिट।” कल्लू ने गरम जोशी से मग्गू से हाथ मिलाया था। “लेकिन ..”

“उसकी फिकर मत कर। जो तू कहेगा ..”

दोनों दोस्त जी जान से सफलता के सोपान चढ़ने की तैयारियां करने लगे थे।

मानस भी इस मौके का फायदा उठाना चाहता था। उसने अपने सभी कलाकारों को निमंत्रण दिया था कि वो जी जान से माधव मोची को चुनाव जिताने में सहयोग करें। जाकर बताएं लोगों को कि माधव मोची तो गरीब नवाज था, गरीबों का मसीहा था और खुद भी गरीब था। उसने भी कभी सड़क पर सो कर रातें गुजारी थीं और वह जानता है कि गरीबी कैसे-कैसे घाव देती है।

“इतवार को माधव मोची की संस्कार सभा है, आनंद बाबू।” कदम सूचना दे रहा था। “गुरु ने कहा है कि ठीक-ठाक तैयारी कर लें। कोई चूक नहीं होनी चाहिए।” कदम ने आनंद को सचेत किया था।

आनंद की निगाहें कदम पर जा टिकी थीं। उसे याद आया था कि किस तरह से कदम चिड़िया के बताए भविष्य से धन कमाता था और अब उसकी सेवा चाकरी में लगा था।

“तुम्हारी चिड़िया का क्या रहा, कदम?” आनंद ने एक सहज प्रश्न पूछा था।

“मामा के पास है।” कदम ने भी सीधा उत्तर दिया था।

“लेकिन क्यों?”

“मामा ने ही तो दिलाई थी चिड़िया।” कदम बताने लगा था। “उनके गांव में ये चिड़िया का धंधा चलता है। चिड़िया पकड़ते हैं, चिड़िया पालते हैं और फिर हुनर सिखाते हैं। पिंजरा भी वहीं बनते हैं। बांस के जंगल हैं न वहां। बेचते हैं बना कर चिड़िया का पिंजरा।”

“कितने की खरीदी थी चिड़िया?”

“मैंने नहीं खरीदी थी आनंद बाबू। मां मुझे अपने गांव साथ ले गई थी। मैं पढ़ाई लिखाई में तो कमजोर ही था, मां ने मामा से कह कर मुझे ये हुनर सिखवाया था। और एक चिड़िया और पिंजरा दिलवा कर मुझे रवाना कर दिया था। चल पड़ा काम।” हंसा था कदम।

“कितना कमा लिया?” आनंद ने पूछा था।

“मामा जानता है। जो भी कमाया उसके पास जमा है। पैसा शादी के लिए है। अब मामा ने मेरी शादी तय कर दी है – चुनावों के बाद। कदम तनिक शर्मा गया था। “लड़की बहुत सुंदर है। पढ़ी लिखी भी है। मामा ने उन लोगों को बता दिया है कि मैं अब पांच सितारा होटल में नौकरी करता हूँ। बस, मान गए वो लोग।” कदम बहुत प्रसन्न था।

आनंद को एक जोर का धक्का लगा था। फरेब – पग-पग पर फरेब। सफेद झूठ .. और मक्कारी। अचानक उसे बर्फी का चेहरा दिख गया था। औरत – काले मूढ़ की औरत – किसी करिश्मा से कम नहीं होती – आनंद को अचानक मां का कहा याद हो आया था। किसी औरत को छूने से पहले बेटे अपनी सामर्थ्य कूत लेना। अगर औरत को धोका दिया तो ..

“कदम का क्या होगा?” अचानक आनंद ने मुड़ कर कदम के भोले चेहरे को पढ़ा था। “मां जाने .. मामा जाने ..!” उत्तर स्वयं आनंद ने ही दिया था। वह मुसकुराता रहा था।

राम लाल को तो मरने तक की फुरसत नहीं थी।

जब से होटल में स्वामी अनेकानंद का पदार्पण हुआ था और बंबई से ले कर पूरे भारत में खबर फैली थी तभी से बंद पड़े होटल के पांचों फोन एक साथ बज उठे थे। एक के बाद एक फरमाइश आ रही थी। हर पल, हर क्षण एक ही फरमाइश गूंज रही थी – मैं, मेरा भविष्य जानना चाहता हूँ। राम लाल सुनता और मुसकुरा देता। उसे आज अपना विगत पास बैठा दिख गया था। जब वह गुरु जी की सेवा में था और लोगों को उनका भविष्य कह सुनाता था – आज वही वक्त उसके पास आ कर खड़ा हो गया था।

भविष्य क्या है? ईमानदारी से कहें तो राम लाल स्वयं भी भविष्य को नहीं जानता। वरना तो यों बर्फी के साथ क्यों पड़ा रहता – निरुद्देश्य। और वह जानता भी कहां था कि एक दिन अचानक एक आनंद उसके सामने आ खड़ा होगा। और उसके सोचे सपने जाग उठेंगे – एकाएक।

और उसे क्या पता था कि एक पांच सितारा होटल – मानस माधव इंटरनैशनल उसके इंतजार में खाली खड़ा है।

“बर्फी को कैसा लगेगा जब उस पता चलेगा कि ..?” राम लाल ने पलट कर सोचा था। “वह तो खुश है कि उसने राम लाल की कमाई समेट ली।” राम लाल मुसकुराया था। “पागल।” उसने प्रत्यक्ष में कहा था। “इस भविष्य का ही तो पता ही नहीं लगता कि अब वह कौन से पत्ते खोलेगा।” राम लाल के अनुभव ने बताया था।

“और आनंद बाबू ..?” राम लाल ने स्वयं से ही फिर पूछा था। “कोई नहीं जानता।” राम लाल ने स्पष्ट कहा था।

और आनंद अकेले में सोच रहा था कि वो माधव मोची को क्या बताएगा?

वह तो खुद अपना भविष्य नहीं जानता था।

Major krapal verma

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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