आनंद अकेला होटल के कमरे की भव्यता को निहार रहा था – सराह रहा था। उसे अचानक एहसास हुआ था कि वो बंद कमरा कदम की चिड़िया का पिंजरा जैसा ही था। उसमें कदम की चिड़िया बंद रहती थी तो इसमें राम लाल की चिड़िया बंद थी। अब आनंद को बंबई के बाहर होते दंगो-पंगों से कुछ लेना देना नहीं था। उसे तो अब केवल मालिक के इशारे पर कार्ड उठा कर पिंजरे से बाहर फेंकना भर था।
अचानक कमरे की घंटी बजी थी तो आनंद बमक पड़ा था।
कल्लू को आया देख आनंद चौकन्न हो गया था। कुछ होने वाला था – वह समझ गया था।
“आज शाम को मग्गू का संस्कार करना है आनंद बाबू।” कल्लू ने बम जैसा फोड़ा था। “समझदारी से काम लीजिए।” कल्लू ने आनंद को चेताया था।
“लेकिन .. लेकिन मैं .. मुझे तो ..” आनंद डर गया था।
“घबराइए मत आनंद बाबू।” कल्लू तनिक सा मुसकुराया था। “ये साला मग्गू है कुछ नहीं।” कल्लू की आवाज चुटीली थी। “मैं भी तो इसी मच्छी टोला का कदीमी नाई हूँ।” कल्लू ने डरे सहमे आनंद को निरीह निगाहों से देखा था। “ये साला, आनंद बाबू मच्छी टोला के नुक्कड़ पर बैठ लोगों के जूते गांठता था।” कल्लू बताने लगा था। “मेरे कारखाने में – माने कि ‘कल्लू के कारखाने’ में – मतलब कि मेरी नाई की दुकान में ये भी उठता बैठता था। पीने पाने का खूब दौर चलता था – उन दिनों। कभी कभार तो पी कर रात भर वहीं पड़ा रहता था, साला।” हंस रहा था कल्लू। “मैंने ही इसे नेता बनाया।” कल्लू ने शेखी बघारी थी। “सच में आनंद बाबू। ये मेरा दिया ही खा रहा है। था कुछ नहीं। पर किस्मत देखो इसकी और मुझे देखो। न जाने कौन ऊपर बैठा है आनंद बाबू कि अजब गजब करता रहता है। मुझे देखो। बरबाद हुआ दर-दर डोला। गुरु की शरण में न आता तो राम जाने ..।”
“अब तो मैं भी गुरु की शरण में आ गया हूँ, न जाने क्यों?” आनंद ने स्वयं से कहा था और मन को पक्का किया था।
“चुनाव के बारे ही बताना है इसे। अब की बार हारने का चांस है। मुकाबले में बिलोचन शास्त्री है। लेकिन आप ने तो गप्पन के छप्पन इसे सी एम से लेकर पी एम बनने तक का आशीर्वाद दे डालना है। फिर मेरा काम रहा। मैंने वो ढोल बजाने हैं आनंद बाबू ..”
आनंद आज फिर से कल्लू को नई निगाहों से देख रहा था।
“गुरु तो कहता है कि झूठ नहीं बोलना।” अब आनंद कल्लू से झगड़ पड़ना चाहता था। लेकिन चुप ही बना रहा था।
“जिंदगी जुआ है, आनंद बाबू।” कल्लू ने आनंद का संकोच तोड़ा था। “मैंने तो खुली आंखों लोगों को हारते-जीतते देखा है। न गिरने में देर लगती है – न ऊपर चढ़ने में।” हंस रहा था कल्लू। “खेल कोई भी हो उसने खेलना है और जूता हम खाते हैं।” कल्लू ने अपना जीवन दर्शन बताया था।
कदम कपड़े लेकर आ गया था।
“शाम के लिए तैयार होना है आनंद बाबू।” कदम ने आते ही हुकुम चलाया था। “गुरु कहते हैं कि मस्तक पर बड़ा सा चंदन का टीका लगाना है और गालों पर ..”
“स्वांग होना है क्या?” आनंद उखड़ गया था। “यार। मैं कोई ..”
“आनंद बाबू।” कल्लू बीच में कूदा था। “जैसा नाम वैसा काम। आप पब्लिक के लिए तो बाल ब्रह्मचारी स्वामी अनेकानंद हैं। अब आप को उसी तरह से दिखना भी तो होगा।” कल्लू मुसकुराया था। “पब्लिक की नजर बहुत तेज होती है आनंद बाबू। तनिक सी भूल ले बैठती है कभी-कभी। मैं तो नाई हूँ। जानता हूँ कि तनिक सा भी उस्तरा चूका तो घाव दे जाता है।”
“लेकिन मेरा मन नहीं मानता कल्लू।” आनंद की आवाज में रोष था।
तभी राम लाल कमरे में चला आया था।
“मन की नहीं आनंद बाबू ये तो गुन और ज्ञान की बातें हैं।” हंसते हुए राम लाल ने कहा था। “तुम चलो काम पर कल्लू और कदम तुम बाहर आए मेकअप मैन को ले आओ। मैंने उसे समझा दिया है। हर रोज वही मेकअप किया करेगा।” राम लाल का आदेश था।
आनंद और राम लाल अब दोनों अकेले थे – होटल के उस बंद कमरे में।
“आज से आप बाल ब्रह्मचारी स्वामी अनेकानंद हुए। अब आपको सभी प्रणाम करेंगे।” राम लाल का स्वर गुरु गंभीर था। “आप जो कहेंगे – वही सत्य वचन। शंका नहीं। जो भी दिल दिमाग का सोच जुबान पर आए – वही सत्य है। वही कहना है। परिणाम क्या होगा – आप को इससे कोई लेना देना नहीं।”
“चिड़िया की तरह ..?” आनंद कहना चाहता था पर चुप रहा था।
“एक ट्रिक है – जिसे आप ने सीख लेना है। अभी – आज ही। ये ट्रिक मुझे मेरे गुरु जी से मिली थी। मैं इसका प्रयोग न कर पाया क्यों कि ..”
“शापित हैं आप।”
“हां। मैंने ही कहा था आपसे। लेकिन आप श्रेष्ठ हैं। जो कुछ आप कहेंगे और उसके बाद ये ट्रिक प्रयोग में लाएंगे तो मानो चमत्कार होगा।” राम लाल ने निश्चय पूर्वक कहा था।
“क्या है – वो ट्रिक?” आनंद ने पूछा था।
“ये देखिए। ये मिनी मूर्तियां तीन देवों की हैं – लक्ष्मी, गणेश और हनुमान।” राम लाल ने जेब से निकाल आनंद को तीन मिनी मूर्तियां दिखाई थीं। बहुत छोटी-छोटी मूर्तियां थीं। “अंत में आशीर्वाद के तौर पर आप ने अपने भक्त को इन तीन में से एक मूर्ति देनी है। यह आप भक्त को देख कर निर्णय लेंगे। लक्ष्मी जिसे चाहिए उसे लक्ष्मी की मूर्ति दें, भक्ति जिसे चाहिए तो गणेश जी की मूर्ति और जो बलशाली बनना चाहता हो उसे हनुमान जी की मूर्ति दे दें। साथ में ये देखिए छोटा मिनी भभूति का पैकिट है। इसे अंगूठे और कलमे वाली उंगली के बीच मसल कर आहिस्ता से तोड़ दें और भभूति को भक्त की हथेली पर उलट दें। उसे बताएं कि भभूति को उसने माथे चढ़ाना है और मन में मिले देव का ध्यान करना है। भक्त के मनोरथ पूरे होंगे।” राम लाल ने अब मुड़ कर राम लाल की आंखों में देखा था।
“इसमें सच क्या है?” आनंद ने पूछा था।
“कुछ भी नहीं। ट्रिक है। लेकिन है सच्ची, सटीक, कारगर और लाभकारी।” हंसा था राम लाल। “इसे पा कर हर भक्त चिंता मुक्त हो जाता है। आश्वस्त हो जाता है कि उसके मनोरथ सिद्ध होंगे।”
“लेकिन राम लाल जी मैं इन सब बातों को नहीं मानता।” हिम्मत जुटा कर आनंद बोला था। “मैं ये कदम की चिड़िया का काम नहीं करूंगा।” आनंद साफ नाट गया था।
राम लाल सकते में आ गया था। उसका डर सच होने जा रहा था। सारा खेल ही बिगड़ने वाला था। लेकिन उसने धीरज से काम लिया था।
“क्या आपने किसी को गुरु गनाया है?” राम लाल ने आनंद से लीक से हट कर प्रश्न पूछा था।
“नहीं। मेरा कोई गुरु नहीं है।” सपाट उत्तर था आनंद का।
“मुझे अपना गुरु बना लें?” राम लाल का आग्रह था। “एकलव्य ने किसे गुरु बनाया था?” राम लाल ने आनंद को सुझाया था। “गुरु कोई भी हो सकता है। पत्थर का टुकड़ा हो, कोई पीपल का पेड़ हो या कोई भी ऐसा चिन्ह हो जिसमें आदमी की आस्था हो। फल मिलेगा आनंद बाबू।”
“लेकिन ..”
“बस। जैसे ही आप हां कहेंगे ये शंका समाप्त हो जाएगी, जैसे ही आप मेरे चरण छू कर आशीर्वाद मांगेंगे आपको अभीष्ट की प्राप्ति हो जाएगी। गुरु एक भरोसा है आनंद बाबू – और कुछ नहीं।”
आनंद ने राम लाल को अपांग देखा था। वह उठा था। उसने राम लाल के चरण स्पर्श किए थे और हाथ जोड़ कर विनम्रता पूर्वक दीक्षा मांगी थी।
“आज से आप बाल ब्रह्मचारी स्वामी अनेकानंद हुए। गुरु का आशीर्वाद हमेशा आपके साथ रहेगा – आनंद बाबू। शंका कभी नहीं करनी।” मुसकुरा रहा था राम लाल।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड