मानस माधव इंटरनैशनल, पांच सितारा होटल लकदक रोशनी में नहाया खड़ा था।

बैंड बाजा बज रहा था। प्रेस के लोग पहुंच गए थे। भीड़ जुड़ती जा रही थी। स्वामी अनेकानंद के आने का इंतजार था।

तभी एक लंबी चौड़ी विदेशी कार आती दिखी थी। स्वामी जी आ रहे थे। कार धीमी रफ्तार पर चल रही थी। लोगों की आंखें आती कार पर लगी थी।

कार होटल की पोर्टिको में आ कर रुकी थी। ड्राइवर ने कार का दरवाजा स्वामी जी के लिए खोला था। कार से पहले कल्लू बाहर निकला था, फिर बड़ी सावधानी से स्वामी जी बाहर आए थे और उनके पीछे कदम था।

राम लाल कार की अगली सीट पर बैठा था और बैठा ही रहा था।

मानस और मग्गू स्वामी जी के स्वागत के लिए आगे आए थे। उन्होंने बारी-बारी स्वामी जी के चरण छूए थे। स्वामी जी ने दोनों को सुखी भव का आशीर्वाद दिया था। प्रेस रिपोर्टरों ने घटना को कैमरों में बड़े जतन से कैद किया था। जब भीड़ आगे बढ़ी थी तो स्वामी जी को कल्लू ने आगे आने को कहा था।

“स्वामी जी, लोग कहते हैं आप काशी से पधारे हैं?” एक प्रेस वाले आदमी ने पूछा था।

“जी हां। काशी से ही पधारे हैं। पंडित महानंद के शिष्य हैं। ललाट देख कर मन की बात बता देते हैं।” उत्तर कल्लू ने दिया था।

जमा भीड़ स्वामी जी के दर्शन पाने के लिए सब्र खो बैठी थी।

मग्गू ने एक विशाल फूल माला स्वामी जी के गले में डाल उनका भव्य स्वागत किया था। भीड़ ने जम कर तालियां बजाई थीं। स्वामी जी अमर रहें का नारा कदम ने बुलंद किया था। लोग जोरों से बहुत देर तक स्वामी जी के नारे लगाते रहे थे।

राम लाल अभी भी कार की अगली सीट पर एक अडिग भव्यता के साथ बैठा रहा था।

अब होटल का मैनेजर स्वामी जी को उनके निश्चित किए निवास की ओर आहिस्ता-आहिस्ता लिए जा रहा था। भीड़ छटने लगी थी।

राम लाल ने स्वामी जी के सामने वाले कमरे को अपने लिए खुलवाया था। कल्लू और कदम दोनों एक पीछे के कमरे में ठहरे थे। होटल के स्टाफ के अलावा कदम को स्वामी जी की देख रेख के लिए राम लाल ने नियुक्त किया था।

होटल के मैनेजर सुपारी लाल को मानस ने अलग से आदेश दिए थे। उसने ताकीद की थी कि स्वामी अनेकानंद को हर मायनों में पूरा खयाल रक्खा जाएगा। उनकी हर फरमाइश और हर ख्वाइश पूरी की जाएगी।

स्वामी जी के लिए शुद्ध शाकाहारी भोजन बना था और कदम की देख रेख में उन्हें खाना खिलाया गया था।

स्वामी अनेकानंद अब अपना कमरा बंद कर सोने को थे, तभी कमरे की घंटी बजी थी। स्वामी जी उछल पड़े थे। उन्हें शक तो था कि यह कोई प्रपंच था – राम लाल का और कभी भी कुछ भी हो सकता था।

दरवाजा खोलने पर राम लाल ही दिखा था।

“कैसे हैं स्वामी जी?” राम लाल ने हंसते हुए प्रश्न पूछा था।

“कहां फसा दिया आपने?” आनंद सकुचाते हुए पूछ रहा था। “ये सब ..?”

“क्यों ..? अच्छा नहीं लग रहा ये होटल का आलीशान कमरा और ये सुविधाएं और ये स्वागत। सभी ने तो चरण छूए हैं आपके।” मुसकुराया था राम लाल।

“लेकिन .. लेकिन मैं तो ..”

“स्वामी अनेकानंद हैं – अब आप। ललाट देख कर मन की बात बता देते हैं।” राम लाल ने आनंद को उसका नया परिचय दिया था।

“लेकिन राम लाल जी – मैं तो निपट गंवार हूं।” आनंद घबराया हुआ था।

“धीरज धरो और ध्यान से सुनो मेरी बात।” राम लाल अचानक गंभीर हो आया था। “आनंद बाबू, कुछ चीजें लिखी नहीं होती – पर होती हैं। पढ़ी नहीं जातीं पर कही जाती हैं। मैं आज आपको बताउंगा वो जो न लिखा जाएगा और न ही पढ़ा जाएगा।” राम लाल प्रसन्न था।

“ऐसा क्या है राम लाल जी?” आनंद उत्सुक हो आया था।

“तत्व ज्ञान।” राम लाल बताने लगा था। “ये तदबीर से आता है और आदमी की तकदीर बदल देता है। और इसे लेने देने की क्षमता सभी प्राणियों में होती है लेकिन ये प्रत्यक्ष में किसी को भी दिखती नहीं है। सब कुछ है यहां और कुछ भी नहीं है।” राम लाल ने हाथ झाड़े थे।

“मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है।” आनंद ने अपनी बात बता दी थी।

“यो समझिए आनंद बाबू कि दुआओं, आशीर्वादों और दी गई शुभकामनाओं की पावर होती है। सच में होती है आनंद बाबू।” राम लाल ने बात पर जोर दिया था। “और ये प्रत्यक्ष में फलती फूलती भी है। इनका असर सीधा दिमाग पर होता है। इनका कनैक्शन दिल से होता है। ये शरीर को भी छूती हैं। लेकिन हर व्यक्ति का अर्जित ज्ञान अलग होता है।” राम लाल की आवाज गंभीर थी। उसका चेहरा तेजोमय था। उसकी आंखों में एक नई रोशनी थी।

आनंद मंत्र मुग्ध हुआ अब राम लाल की बातें ध्यान से सुन रहा था।

“आत्मा बोलती है।” राम लाल फिर से बताने लगा था। “मन सुनता है। तन उत्तर में हुलस आता है। गम और खुशी की तरंगें उठती हैं। ये दिखती नहीं हैं लेकिन बोलती हैं। जुबान पर चढ़ कर बोलती हैं।”

“नजर तो कुछ नहीं आता?” आनंद बीच में बोल पड़ा था।

“नजर भी होती है आनंद बाबू।” राम लाल तनिक सा मुसकुराया था। “ये नजर भी बहुत पावरफुल होती है आनंद बाबू। जिसे लग जाए उसका चौड़ा करके मानती है। और हां, वो जो भस्म करने वाली बात हम सुनते हैं – वो भी सच है। किसी के कहने भर से कैसा भी अशुभ घट सकता है।” राम लाल ने मुड़ कर आनंद की प्रतिक्रिया पढ़ी थी।

आनंद अभी भी भ्रमित था। उसे राम लाल की कही बातों पर आश्चर्य हो रहा था।

“और आनंद बाबू हमारी आंतरिक शक्ति भी बहुत ही शक्तिशाली है। ये पहाड़ों तक को धकेल देती है। समुंदरों को सुखा देती है।” रुका था राम लाल।

“लेकिन .. लेकिन आप तो ..?” आनंद ने संभावित प्रश्न पूछ ही लिया था। वह तो अब जानता था कि राम लाल था तो कुछ नहीं।

“गुरु जी ने मुझे भी यही सब दिया था, आनंद बाबू।” राम लाल टीस आया था। “लेकिन मैं इसे धारण नहीं कर पाया।” सच उगला था राम लाल ने।

“लेकिन क्यों?” आनंद पूछ ही बैठा था।

“मैं श्रापित हूँ।” राम लाल ने बेधड़क कहा था। “पूर्व जन्म के संस्कार साथ आए हैं।” राम लाल ने आनंद को आंखों में देखा था। “मेरा चौखटा देख रहे हैं न आप?” राम लाल ने पूछा था। “यह जो उजागर हुआ है ये मुझे मिला मेरा दोश है।”

“मैं कैसे मान लूं राम लाल जी कि ..”

“इस तरह मानें कि हर आदमी के चेहरे पर लिखे होते हैं उसके गुण दोष। लेकिन आदमी अपना चेहरा देख नहीं पाता, इसीलिए कुछ पढ़ नहीं पाता।” हंस रहा था राम लाल। “आप का चेहरा ..”

“क्या लिखा है?” आनंद ने पूछा था।

“लिखा है – श्रेष्ठ संस्कारी पुरुष!”

“क्या मतलब हुआ?”

“यही कि आप की दृष्टि पवित्र है। जो देखती है – सच देखती है। अत: आप जो भी देखें – कह दें। सच होगा।”

“लेकिन ..?”

“लेकिन कुछ नहीं आनंद बाबू। न कुछ सच है, न कुछ झूठ है। होता तो वही है जो ..”

“राम रचि राखा – होता है।” आनंद ने मुसकुराते हुए कहा था।

“जी हां, वही होता है।” राम लाल खुशी से उछल पड़ा था।

आज आनंद अनेकानंद के चोले में प्रवेश कर गया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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