“नउआ और कउआ – दाेनाें ही साले हरामी हाेते हैं।” नशे में धुत मग्गू कल्लू के कारखाने में आम ताैर पर कहता था ताे पूरी जमात ठहाके मार कर हंसती थी। कल्लू पर छाेड़ा ये तीर ठिकाने ताे लगता लेकिन कल्लू सबके साथ मिल कर ठहाके लगाता रहता। कल्लू भी मानता था कि वाे हरामी ताे था .. लेकिन ..

“आज अकेले में बैठ कर पीते हैं।” मग्गू का सुझाव आया था।

“मैंने ताे पीना कब का छाेड़ दिया।” कल्लू ने प्रतिराेध किया था।

“पीता ताे अब मैं भी नहीं हूँ। लेकिन आज ..” मग्गू ने आँखाें में भर कर कल्लू काे पढ़ा था। उसे लगा था कि उसके गमाें की दवा था कल्लू। पहला चुनाव भी ताे कल्लू ने ही जिताया था उसे। “वाे .. वाे हमारी पुरानी दाेस्ती और वाे कल्लू का कारखाना – आज फिर से खाेल देते हैं। बैठते हैं दाेनाें।” मग्गू ने कल्लू के दाेनाें हाथ अपने हाथाें में लेकर दबाए थे।

और फिर ताे पल छिन में ही कल्लू के कारखाने की कल्पना सच में सामने आ खड़ी हुई थी।

“बिलाेचन शास्त्री के ज्याेतिषि ने भविष्यवाणी की है कि वाे सी एम बनेगा।” मग्गू थाेड़ा नशा तारी हाेते ही खुलने लगा था।

“ताे हमारे स्वामी अनेकानंद घाेषणा करेंगे कि माधव माेची देश का पी एम बनेगा।” कल्लू ने गिलास से शराब का लंबा घूंट भरा था। “देश काे आज एक दलित फेस की जरूरत है।” कल्लू ने बात आगे बढ़ाई थी। “बहुत राज किया है – इन शास्त्रियाें ने। अब नम्बर दलिताें और पिछड़ाें का है।” कल्लू ने मग्गू की आँखाें में सीधा देखा था।

“लेकिन भाई ..” मग्गू तनिक बिदका था।

“काहे का शास्त्री यार।” कल्लू अब पूरे सरूर में था। “घाेषी काे नहीं उखाड़ा था मैंने?” कल्लू ने याद दिलाया था मग्गू काे। “साले की जड़ाें में ऐसा मट्ठा दिया कि फिर कभी उठा ही नहीं।”

दाेनाें दाेस्त खूब हँसे थे। घाेषी की हार का एक बार फिर से जश्न मनाया था दाेनाें ने।

“सच में काेई ऐसा स्वामी है क्या कल्लू?” डरते-डरते मग्गू ने पूछा था।

“है। सच में है स्वामी अनेकानंद।” कल्लू ने छाती ठाेक कर कहा था। “अभी कल – माने कि कल शाम काे तुम्हारे पांच सितारा हाेटल में स्वामी जी पधारेंगे। काशी से आ रहे हैं। पंडित महानंद के शिष्य हें। बड़े विद्वान हैं। कहते हैं कि ललाट देख कर मन की बात बता देते हैं।” रुका था कल्लू।

“ताे फिर .. मैं .. माने कि मुझे ..?”

“तैयारी कराे। उनके लिए एक – एक बढ़िया सा कमरा खुलवा दाे। प्रेस काे बुलाऒ। प्राेग्राम बताएंगे कि स्वामी जी का दरबार लगेगा – पाँच दिन। मनाेकामना पूरी करने का अवसर है। पधारें आप – आपका स्वागत है।” कल्लू रुका था।

“म.. मैं अपना ..?” मग्गू नशे में भी अपना हित चिंतन न भूला था।

“पहले आप का ही ताे भविष्य बताएंगे स्वामी जी।” कल्लू ने मग्गू काे आश्वस्थ किया था। “फाेटाे जब प्रेस में छपेगा ताे उसी पल शास्त्री काे बुखार चढ़ जाएगा।”

“और फिर ..?”

“फिर ताे मैं सब संभाल लूंगा। तुम ताे जानते हाे मुझे मग्गू।” कल्लू ने फिर से छाती ठाेकी थी।

खाना लगा था। दाेनाें मित्राें ने आज भर पेट भाेजन किया था।

“कहाँ रहते हाे?” मग्गू ने प्रश्न किया था।

“सड़क पर रहता हूँ।” कल्लू ने लड़खड़ाते हुए कहा था।

“रुक लाे रात?”

“नहीं।”

“क्याें?”

“मुझे बिस्तर पर नींद नहीं आती, मग्गू। सड़क पर साे लेता हूँ। जब भी मुन्नी की याद सताती है ताे बैठ कर राे लेता हूँ।” कल्लू ने सच उगला था।

“चलाे। मैं छाेड़ देता हूँ – ठिकाने पर।” मग्गू मान गया था।

अपनी कार निकाल, कल्लू काे साथ बिठा मग्गू उसे उसके ठिकाने पर छाेड़ जीत की पूरी उम्मीद के साथ घर लाैट गया था।

आज राम लाल और आनंद घर से चुपचाप चाेराें की तरह निकले थे।

लेकिन बर्फी की नजर से कुछ भी बाहर न था। बर्फी ने माना था कि राम लाल आज उस अनाड़ी आदमी काे अवश्य ही बेच खाएगा। वह रिक्शे में बैठ कर राम लाल के साथ जाते उस आदमी काे हसरत भरी निगाहाें से देखती रही थी।

राम लाल ने जब सर पकड़ कर सड़क पर बैठे कल्लू काे देखा था ताे उसके ताेते उड़ गए थे।

राम लाल काे जच गया था कि कल्लू जरूर ही काेई कबाड़ा कर के बैठा था। उसे बहुत बड़ा काेई अशुभ अनायास दिख गया था। आनंद बाबू के अनेकानंद बनने के उसे आसार नजर न आए थे। वह जान गया था कि कल्लू ..

“क्या हुआ?” राम लाल ने कल्लू से आते ही प्रश्न पूछा था।

“दुनिया इधर से उधर घूम रही है गुरु।” कल्लू ने मरी हुई आवाज में बयान किया था।

“लेकिन हुआ क्या?” राम लाल नाराज हाे गया था।

“ये कि .. ये कि .. पी ली थी। डट कर पी ली थी। और ..”

“पागल। पीने काे किसने कहा था?” राम लाल की आवाज ऊंची थी।

“मग्गू ने। मग्गू ने जिद की थी कि पीएंगे। पहले की तरह पीएंगे और जीएंगे।”

“क्याें ..? सगाई हाे रही थी तेरी ..?”

“हाँ गुरु।” कल्लू की आवाज गमगीन थी। “मुझे मुन्नी याद हाे आई थी। उसी के गम में डूब गया।” कल्लू ने आँखें नचाते हुए कहा था।

राम लाल मान गया था कि कल्लू ने सारा काम बिगाड़ दिया था। उसने साथ खड़े आनंद काे चलती निगाहाें से देखा था। राम लाल का मन हुआ था कि कल्लू में दाे लातें लगा कर अभी चलता करे उसे। और गुमसुम खड़े आनंद काे भी रास्ता दिखा दे।

“जाने देता हूँ – इन्हें।” मन में कहा था राम लाल ने। “बर्फी का ये ठिकाना काैन बुरा है।” उसने मन में कहीं संताेष कर लिया था।

“मग्गू लाइन पर है गुरु।” कल्लू ने उठते हुए कहा था। “पढ़ा दी पट्टी साले काे।” वह तनिक सा हँसा था।

“क्या ..?” चाैंका था राम लाल। “मान गया?” उसने मुड़ कर पूछा था कल्लू से।

“मरता क्या न करता।” कल्लू बताने लगा था। “फंस गया है साला। विलाेचन शास्त्री मुकाबले में है। हारेगा .. अगर ..”

“जीतेगा ..?” राम लाल ने पूछा था।

“हम जिताएंगे गुरु तब जीतेगा।” कल्लू ने छाती ठाेकी थी। “स्वामी अनेकानंद की भविष्य वाणी ..”

“क्या बक रहा है?”

“बक नहीं रहा हूँ गुरु सच कह रहा हूँ। तैयारियां कराे। आज शाम काे आनंद बाबू अनेकानंद – माने स्वामी अनेकानंद मग्गू के फाइव स्टार – मानस माधव इंटरनैशनल में प्रवेश पा जाएंगे। साथ में ही प्रेस आएगा, फाेटाे छपेगा, खबर जाएगी और फिर ..”

राम लाल और आनंद अब दाेनाें ही कल्लू काे नई निगाहाें से देख रहे थे।

तभी कदम आ गया था। वाे आनंद बाबू के नए कपड़ाें का बैग लिए था। राम लाल का तन बदन खिल उठा था।

अलग से एक उत्सव जैसा मनने लगा था। ग्राहक आया कि न आया – अब कदम काे काेई गम न था। चाय बिकी कि नहीं बिकी – राम लाल काे अब फुरसत न थी। कल्लू का दिमाग चाराें दिशाऒं में दाैड़ रहा था। लग्जरी कार – लंबे वाली का बंदाेबस्त उसने स्वयं किया था। कदम भी रुद्राक्ष की मालाएं खरीद लाया था, ताे राम लाल ने आनंद बाबू के कानाें के लिए छाेटी-छाेटी बालियां खरीदी थीं। आनंद बाबू काे लंबी खड़ी गाड़ी में बिठा कर ही उसका मेकअप किया गया था।

“मुझे कुछ आता जाता ताे है नहीं।” आनंद बाबू ने राम लाल से सीधी शिकायत की थी।

“सब आ जाएगा।” राम लाल हँसा था। “जन्म ताे हाेने दाे। प्राण भी पहुँच ही जाएंगे।” उसने आनंद बाबू काे आश्वासन दिया था।

पूरा दिन तैयारियाें में गारत हाे गया था। शाम ढलने लगी थी। राम लाल ने ढ़ाबा बंद करा दिया था। कदम ने चिड़िया का पिंजरा संभाल कर लंबी कार में लाद दिया था। आनंद बाबू की तीमारदारी का जिम्मा कदम काे मिला था।

उस शाम बर्फी ने बड़ी देर तक आनंद और राम लाल के आने की बाट जाेही थी।

देर रात गए उसने बंगले के दरवाजे बंद कर दिए थे।

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मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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