दो -दिन और रात -मिलें तो कैसे ?

पारुल पैलेस में एक नया युग आकर बस गया लगा था !

“कौन लोग थे ?” प्रश्न था -जो आस-पास डोलने लगा था . अनुमान में आंकड़े थे और अफवाहें भी …जो लोगों के पास आ-जा रहीं थीं . घोड़ेवाले -राजन जी को तो लोग कुछ जानते -पहचानते थे . …पर पारुल का अता-पता किसी के भी पास नहीं था . अनुमान ही थे .लेकिन विभ्रम भी था .सेठ धन्ना मल की बेटी कहाँ थी -लोग पूछ लेना चाहते थे .

नाश्ते की मेज सजी थी .राजन ने वर्कले कंपनी को घर चलाने का ठेका दे दिया था .सर्विस से ले कर सौदा-शुल्फ़ खरीदने तक का जिम्मा था – उन का . पारुल सारे घरेलू दायित्वों से मुक्त थी . वह राजन के मन की मालिका थी …पर राजन पारुल का मालिक नहीं था !

“नाश्ते के……बाद गुड …..?” पारुल पूछ रही थी .

“हाँ ! मेरा आइडिया है . खा कर देखो .” राजन हंस रहा था .”ठेठ देशी है .” उस ने सूचना दी थी .

पारुल ने उड़ती निगाहों से राजन को घूरा था .जैसे कहा था -ठीक तुम्हारी ही तरह ! और वह मुस्कुरा दी थी .

“शाम की मीटिंग के लिए मुझे क्या करना होगा ….?” पारुल ने पूछा था .

“यूं ….विल …जस्ट ग्रेस द …..ओकेजन …..!!” राजन ने मधुर स्वर में कहा था . “आप की तो मात्र….उपस्थिति ही माहौल बदल देगी .” राजन के स्वर चापलूस थे .”सब काम वर्कले वाले करेंगे .” उस ने हंस कर कहा था .

“मैं खा-खा कर मोटी हो जाऊंगी , राजू !” पारुल ने औपचारिकता तोड़ते हुए कहा था .

“वही तो मैं चाहता हूँ .” राजन का उत्तर था .”मैं तो चाहता हूँ कि ….”

“मुझे सर पर ….मत चढा लेना……?” हंसी थी – पारुल. खूब हंसी थी .

राजन प्रसन्न था ……मुग्ध था …..और पारुल के साथ हंस रहा था !

पारुल की आँखों में एक और नया -नवेला-सा सपना आ कर ठहर गया था .वह उसे छूना न चाहती थी .हिलाना न चाहती थी . वह चाहती थी कि वो सपना उस की आँखों के सामने सदियों तक ज्यों-का-त्यों खड़ा ही रहे …ठहरा ही रहे ……

राजन भी बेहद खुश था ….प्रसन्न था …..बहुत प्रसन्न …!उसे अपना ये स्वयं बसाया साम्राज्य बहुत ही भा गया था .अपने विगत की पीठ पर बैठा राजन भविष्य के तलवे सहला रहा था .चाह रहा था कि अपनी मंजिल की ओर पारुल के साथ वह आहिस्ता-आहिस्ता सर्केगा …चलेगा …और वहां पहुंचेगा जहां वो होगा …बे-ताज का बादशाह …पत्तों का जादूगर …और अजेय -राजन !और …लोग …..

तालियाँ राजन के जहन में फिर से बजने लगीं थीं .उसे तालियों की गडगडाहट सुनना अछा लगता था .लोग उसे चाहें …सराहें …उस की प्रशंसा करें ….उसे बहुत भला लगता था .

“शाम की मीटिंग का एजेंडा क्या है ?” पारुल ने उस का सोच तोडा था .

“कुछ ख़ास नहीं !” सहज था ,राजन .”मैंने घोड़ों को बेच …पत्तों से मुलाक़ात करनी है . मैं चाहता हूँ कि …जो भी माल-मुनाफ़ा मिले ….उसे ….”‘

“औने -पौने ….क्यों ….?” पारुल ने पूछा था .

“न जाने क्यों मेरा मन खट्टा हो गया है ! न जाने …क्यों …मात्र घोड़ों को देखते ही …मुझे उबकाइयां आने लगाती हैं .” राजन कहता ही जा रहा था .”कभी-कभी तो मैं …..”

अब आश्चर्य चकित पारुल राजन को घूर रही थी !

और राजन एक लम्बे सोच के साथ उन पलांशों में अपने विगत के साथ जा जूझा था .न जाने कैसे -अचानक ही उसे सेठ धन्ना मल का अस्तबल याद हो आया था . फिर वही छीतर था ….और सेठ सुलेमान था ! घोड़ों की लीद ढोता -राजन मारे बदबू के बे-दम होता जा रहा था .सेठ सुलेमान से उसे डर लगता था. छीतर भी उसे खूब ही तंग करता था .और ….और …वो मच्छर …जो रात भर उसे सोने तक न देते थे …? कर्नल जेम्स का सौहार्द तो उसे अच्छा लगता ….और फिर उस का जॉकी बनना …और फिर ….सावित्री …..

“सब को काट दूंगा ……! इस जीवन का अर्थ तो अलग से ही आकूँगा . नो …होर्स …नो रेस …नो-नो ….., नो सावित्री !”स्वयं से ही कहता जा रहा था -राजन .”वही…..लास वेगास का चमत्कार पूर्ण …जीवन ..वही ठाठ -बाट …और वही ….चमक-दमक ….!!!”

“मैंने महीलाल को बुलाया है .” पारुल ने शान्ति भंग की थी .

“पर मैं …मंगलीक पर कुछ भी नहीं छोडूंगा !” राजन ने अपना निर्णय कह सुनाया .”वह सावित्री का चमचा है ! वह सेठ धन्ना मल के दिए दहेज़ में मिला था . वह सावित्री से भी …..”

“और मुझ से भी ….. ?”पारुल पूछने लगी थी .

“ओह,नो ! आप से कुछ भी अलग नहीं होगा …..!” राजन ने कहा था .

पर पारुल को शक हुआ था कि …राजन उस से भी झूठ बोल रहा था !!

मीटिंग में बैठे महीलाल को पारुल ने ध्यान से देखा था .आज वह बहुत ही अलग-थलग लग रहा था .उस ने काम-कोटि की दरबारी पोशाक पहनी थी. उस के चहरे पर एक नूर था ….एक गुरूर था …गुमान था और वो पहले वाली गुरवत के पड़ाव गायब थे …! जंच रहा था -महीलाल !!

“और सब कैसा चल रहा है ,महीलाल ….?” पारुल ने एक औपचारिक प्रश्न पूछा था .वह जानती थी कि महीलाल अवश्य ही धनाभाव का रोना रोप्येगा .अवश्य ही उसे नई -नई मुसीबतों के नाम गिनाएगा .

“सब कुशल है, महारानी जी !!” दमदार आवाज़ में कहा था – महीलाल ने .”सोना तो सोना ही हो गई ….” उस ने पहेली बुझाई थी . “मानस -महान ….और ब्रह्मपुत्र – वरदान बन गई है !” अब वह हंस रहा था . “आप आ कर देखेंगी …तो दंग रह जांयगी .” वह प्रसन्न था .”इस कंपनी ने तो काम-कोटि की काया ही पलट दी ,महारानी जी !!”

पारुल की प्रसन्नता का ठिकाना न था .’सोना झील का …सोना हो जाना ..’ एक आश्चर्य जनक सूचना ही तो थी . ज़रूर -ज़रूर ही महारानी सोना की आत्मा का अंत आ गया होगा ? उस का भूत भी मर गया होगा ….और ….हाँ-हाँ ….! सेकिया …वह सांप …भुजंग काला -सांप …और वो सांपिने …भी …आते-जाते लोगों के पैरों तले …रुंद चुकी होंगी …मर चुकी होंगी …? अब तो वह बे-खटके काम-कोटि पर राज करेगी …..

“खरीदलो बाबू साहब, घोड़े !” राजन बम्बई से आई पार्टी को पटा रहा था .”इन घोड़ों ने सेठ धन्नामल के डूबते जहाज़ को बचा लिया था .एक ही रेस में इत्ता धन कमाया कि …पौ -बारह !! पैसों का पेड़ लग जाएगा -आप के आँगन में .” हंसा था ,राजन .

“पर पैसे बहुत मांग रहे हैं,आप !” बिसारिया बोला था .

“जो उचित समझो ,दे दो !निकालो नोट !!” राजन मूड में था .”नोटों के दर्शन होने पर सौदे का मूड बनता है .” वह हंस रहा था .

बिसारिया ने टेबिल पर नोटों का ढेर लगा दिया था .

“गिन लो !कम नहीं हैं ,राजन साहब !’ उस ने सादगी से कहा .”सौदा …मेरा ….!!”

शुरू होने के देर थी कि एक के बाद दूसरा सौदा होता ही चला गया .लन्दन का फ़ार्म खजूरिया ने मुंह बोले दामों पर खरीद लिया था .और सऊदी का कारोबार शेख दामी ने समेट लिया .फ़्रांस की पार्टी ने भी मुंह का माँगा दिया और कलकत्ता का सब बम्बई वालों ने ले लिया !!

राजन ने देखा था कि नोटों का ढेर लग गया था .मनों में माल आया था .लेकिन राजन के मांथे की चिंता-रेखाएं कुछ और ही कहानी कह रहीं थीं. उसे मनों में नहीं …टनों में माल चाहिए था . विचित्र लोक के निर्माण के लिए तो ….इंद्र का ऐश्वर्य चाहिए था – राजन को !!

“एक फेवर चाहूंगा ,राजन सहाब !” बिसारिया बोला था .”कलकत्ता की एरी न्यूज़ एजेंसी …आप खरीदलें !कौड़ियों में मैं आप को करोड़ों का माल दे दूंगा !” वह हंसा था .”आप ….”

“मैं …..मैं ….न्यूज़ एजेन्सी …”

“मैं खरीद लेती हूँ !” पारुल ने कहा था .”ये लीजिए ….चैक …! रकम भरलें ….!!” पारुल उठ गई थी.

राजन दंग रह गया था .उसे पारुल का बदला ये पैंतरा तनिक खबरदार कर गया था .वह सतर्क हुआ लगा था .व्यापारियों ने अपने-अपने बस्ते समेट लिए थे .लेकिन राजन की तीसरी आँख खुल गई थी .

“आप …..मेरा मतलब रानी साहिबा …आप इस न्यूज़ एजेंसी को ले कर ….क्या करेंगी ….?” राजन ने औपचारिक प्रश्न पूछा था .

“विचित्र लोक की पब्लिसिटी ….!!” हंस कर कहा था , पारुल ने .”तुम तो …रात भर विचित्र लोक में मगन रहोगे …तो मैं दिन भर तुम्हारी जीत-हार का …गुणगान करूंगी !” पारुल ने राजन को समझाया था .

पर फिर …दो दिन और रात …..मिलेंगे कैसे ….?

वह दोनों ही सोचते रहे थे ………..

क्रमशः ………..

मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!


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