आनंद कदम के साथ चला गया था। कल्लू चिड़िया के पास बैठा ऊंघ रहा था। चाय की मांग जाेर पकड़ रही थी। राम लाल बेदम हुआ जा रहा था।

लेकिन आज वाे बर्फी के चेहरे काे भूल न पा रहा था। बर्फी ने आज आनंद काे पहली बार देखा था। आनंद ने भी बर्फी काे देखा था। दाेनाें की नजराें काे मिलते हुए उसने पकड़ा था। वाे ताे अब सारा खेल जानता था। वाे जानता था कि आग फूस काे पकड़ती है।

वाे बर्फी का लगता भी क्या था? एक कमाऊ आइटम से आगे वाे था भी काैन? लेकिन बर्फी की चितवन आदमी के मन काे पकड़ती है – वह जानता था। आनंद ताे अनाड़ी था। लेकिन ..

कहां ले जाए – आनंद काे? अनेकानंद बनाने के बाद ताे उसे घर से बाहर निकालना ही हाेगा।

राम लाल ने कल्लू काे आवाज दे कर बुलाया था।

“अनेकानंद काे कहाँ टिकाएगा?” राम लाल ने कल्लू पर सीधा प्रश्न दागा था।

कल्लू चुप था। वह साेच में डूबा था। अब वह राम लाल से आँखें चुरा रहा था।

“मग्गू ..?” राम लाल ने कल्लू काे कुरेदा था।

“हाँ-हाँ गुरु, मग्गू। मैं ताे भाूल ही गया था मग्गू काे।” कल्लू अचानक चिड़िया के पिंजरे की ऒर दाैड़ गया था। उसने पिंजरे के नीचे से आज का अखबार खींचा था और राम लाल के सामने हाजिर हुआ था। कल्लू का चेहरा खिला हुआ था।

“ये रही हमारी मंजिल गुरु।” कल्लू ने अखबार खाेला था। “रैली है – मग्गू की कल।” कल्लू ने अखबार दिखाया था। “साला डूब रहा है।” वह हंसा था। “इस बार शर्तिया हारेगा, गुरु।” कल्लू खुल कर हँसा था। “बताऒ, क्या पट्टी पढ़ाऊं?” कल्लू की मांग थी।

“उसके पास है काेई ठिकाना?” राम लाल सीधा मुद्दे पर आया था।

“है। पाँच सितारा हाेटल है। मच्छी टाेला की मुफ्त की जमीन पर खड़ा कर दिया है – पाँच सितारा। पर वाे चलता नहीं। खाली पड़ा है।”

“बन गया काम कल्लू।” राम लाल खिल उठा था। गिरते-गिरते चाय के भगाैने काे संभाला था उसने। “तू पट्टी पढ़ा साले काे कि एक बार अनेकानंद महाराज का प्रवेश करा दे। हाेटल ही नहीं – चुनाव भी जीतेगा। बता उसे – स्वामी अनेकानंद काशी से पधार रहे हैं। पंडित महानंद ज्याेतिषि के शिष्य हैं। मस्तक देख कर मन का हाल बता देते हैं।”

“बस-बस गुरु। इत्ता ताे बहुत है।” कल्लू जाेराें से हँसा था। “है ताे साला मूरख ही। मान लेगा मेरी बात।”

“और कहना कि स्वामी अनेकानंद के दरबार उसके पाँच सितारा में हफ्ते में पाँच दिन लगेंगे – ताे भीड़ भरने लगेगी।” राम लाल ने अगली याेजना भी बताई थी कल्लू काे। “क्या नाम है हाेटल का?”

“मानस माधव इंटरनैशनल लिखा है अखबार में।” कल्लू ने अखबार पलट कर राम लाल काे दिखाया था। “ये ताे गुरु कुत्ते में ईंट लगी। जाऊं साले के पास?”

“शाम काे जाना आनंद बाबू काे आने दे। देखते हैं – कैसा हुलिया निखरता है।”

“बंदा तो जमता है, गुरु।” कल्लू महा प्रसन्न था। “है तो ईमानदार।” कल्लू ने अपनी राय बताई थी। “बेईमान और बदचलन भी नहीं है।” कल्लू कहता ही जा रहा था।

राम लाल चाय बनाने में व्यस्त था।

लेकिन आज न जाने कैसे बर्फी का मुसकुराता चेहरा उसकी निगाहों के सामने डोल गया था। डर गया था राम लाल।

आनंद आज देर से स्कूल में पहुंचा था।

इंतजार में ऊंघती नीलू ने जब आंखें खोल कर आनंद को देखा था तो दंग रह गई थी। आनंद का नया रूप स्वरूप उसे बेजोड़ लगा था। किसी अच्छे नाई का कमाल था – नीलू ने माना था।

“ये हेयर कट कहां लिया?” नीलू से रहा न गया तो पूछा था।

“छदम फिल्मी हेयर सैलून।” आनंद ने नाम बताया था। “फिल्मी ऐक्टरों का काम करता है।” आनंद ने जानकारी दी थी।

“तो क्या आप फिल्मों में ..?” नीलू का अगला प्रश्न था।

“अरे नहीं भाई!” आनंद तनिक हंसा था। “वो छदम कदम का भाई है। पैसा नहीं लगा।” आनंद ने बयान किया था।

“उपन्यास पढ़ा?” नीलू ने काम की बात पूछी थी।

“हां-हां। किताब तो नहीं उसके लेखक की जीवनी पढ़ी।” आनंद हंस पड़ा था। “अजीब ही आदमी था ये लेखक।” आनंद ने आश्चर्य जाहिर किया था।

“सो कैसे?” नीलू ने भी पूछ लिया था।

“आवारा था। किसी मालिक ने रहम खा कर इसे घर में नौकर रख लिया था। इसने उसकी पत्नी को ही पटा लिया।” जोरों से हंसा था आनंद।

“फिर ..?”

“फिर उसे लेकर भाग गया!” आनंद अब ताली पीट कर हंसा था। “नमक हराम।” आनंद ने गाली दी थी।

लेकिन तभी आनंद की आंखों के सामने एक हसीन सा चेहरा उजागर हुआ था। उसने पहचान लिया था। अचानक ही उसकी निगाहें फिर से आमंत्रित करती उस औरत की निगाहों से जा टकराई थीं।

“भाग चलते हैं ..?” वह बोली थी।

“क .. कहां ..?” आनंद ने हकलाते हुए प्रश्न पूछा था।

फिर आनंद को याद हो आया था कि उस लेखक की जीवनी में लिखा न था कि वो उस मालिक की पत्नी को ले कर कहां चला गया था।

राम लाल ने कल्लू को आनंद को लेने स्कूल भेज दिया था। वह जानता था कि अब से आगे आनंद बाबू एक कमोडिटी बन गए थे। अब आनंद को अकेला नहीं छोड़ना था।

“तुम क्यों आ गए?” आनंद ने हुमक कर कल्लू से पूछा था।

“कदम नहीं पहुंचा न!” कल्लू का उत्तर था। “ये साला कदम नमक हराम है।” कल्लू ने कदम को गाली निकाली थी। “पहले भी ये कई बार ..”

राम लाल ने आनंद को देखा था। फिर उसने पलट कर कल्लू को देखा था। फिर उन दोनों ने एक साथ पलट कर आनंद को देखा था।

“आज की रात ..?” राम लाल ने स्वयं से प्रश्न पूछा था – चुपचाप। कोई उत्तर न आया था तो उसने नजरें कल्लू की ओर घुमाई थीं। “कपड़े ..?” राम लाल का प्रश्न था।

“कल पहुंचेंगे, गुरु।” कल्लू का उत्तर था।

“आज की रात ..?” राम लाल ने अब आनंद को पूछा था।

“ये उपन्यास पढूंगा।” आनंद ने बगल में लगे उपन्यास – डेविड कॉपरफील्ड को राम लाल की निगाहों के सामने तान दिया था। “और फिर मैं तुम्हारी औरत को भगा कर ले जाऊंगा!” आनंद ने चुपचाप मन में कहा था। और मुसकुराया था।

राम लाल ने पहली बार जीवन में उस रात को खुली आंखों से जिया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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