रात का अवसान था। बर्फी ने राम लाल को गहरी नींद से झकझोर कर जगा दिया था। आंखें मलता राम लाल कई पलों तक कुछ समझ ही न पाया था।
“उठो।” बर्फी ने धीमी आवाज में कहा था। “उसके कमरे की लाइट जल रही है।” बर्फी बता रही थी। “जाकर देखो।” उसने हुक्म दागा था और चली गई थी।
राम लाल के कमरे के बाद दरवाजे के उस पार आनंद का कमरा था। राम लाल के कमरे से पहले बच्चों के कमरे थे, फिर बर्फी का बैडरूम था। रामने किचन और स्टोर रूम था। बर्फी के बैडरूम के साथ बैठक थी। यहां परिवार उठता बैठता था और कभी कभार कोई आत्मीय या संबंधी आ बैठता था।
राम लाल उठा था। आनंद के कमरे तक गया था। कमरे की लाइटें जल रही थीं। उसने दरवाजे पर कान लगा कर भीतर की टोह ली थी।
“ब्रदर्स एंड सिस्टर्स।” राम लाल को सुनाई दिया था। उसके बाद क्या था अंग्रेजी में राम लाल समझ न पाया था। आवाज तो आनंद बाबू की ही थी। राम लाल लंबे पलों तक उस आती आवाज का पीछा करता रहा था। लेकिन उस के पल्ले कुछ पड़ा नहीं था। तभी उसने सोचा कि कमरे की घंटी बजाए। लेकिन तभी लाइट बुझ गई थी।
शायद अब आनंद बाबू सो गए थे – राम लाल ने अनुमान लगाया था। लेकिन उसके बाद राम लाल सो न पाया था।
“अंग्रेजी सिखा कर गलती तो नहीं की?” बार-बार एक ही प्रश्न राम लाल स्वयं से पूछ रहा था, लेकिन उत्तर न आ रहा था।
हर दिन की तरह राम लाल ने आवाज दे कर बगीचे में टहलते आनंद बाबू को बुलाया था। चाय आ गई थी।
“सोए नहीं – रात?” राम लाल ने सोचा समझा प्रश्न किया था।
“सोया!” आनंद ने कहा था। “पर .. देर रात।”
“क्यों?”
“वो नीलू ने होम वर्क दिया है। मेरी आवाज को टेप किया है। स्वामी विवेकानंद की स्पीच है – अंग्रेजी में। उन्होंने 1893 में शिकागो की विश्व धर्म संसद में जमा विद्वानों को भारत के बारे बताया था।”
“फायदा?” राम लाल ने फिर प्रश्न किया था।
“मुझे देखना है – कि मेरे उच्चारण कितने गलत हैं।” आनंद ने बताया था। “नीलू कहती है उच्चारण ठीक नहीं होगा तो आदमी गंवार लगता है। हाहाहा। अजीब मुसीबत है जी। अंग्रेजी – पैमाना बन गई है आदमी की नाप का।”
“सीख लोगे तो सोना बन जाओगे आनंद बाबू।” राम लाल ने आशीर्वाद जैसा दिया था।
“जुबान को बहुत तोड़ना मोड़ना पड़ता है।” हंसते हुए आनंद बता रहा था। “फिर भाव भंगिमा का भी ध्यान रखना होता है। स्कूल कॉलेज में तो रट-पिट कर काम चला दिया। लेकिन अब आ कर फस गया।”
“क्या विवेकानंद बोलते थे अंग्रेजी?” राम लाल ने प्रश्न पूछा था।
“प्रकांड विद्वान थे। जब शिकागो की विश्व धर्म संसद में बोले थे तो लोग कुर्सियों से खड़े हो गए थे। तालियां बजती रही थीं – बहुत देर तक।” आनंद बड़े उत्साह के साथ स्वामी जी के बारे बताने लगा था।
“आप भी तो बन सकते हैं – विवेकानंद?” राम लाल ने अटपटा प्रश्न पूछ लिया था।
आनंद देर तक राम लाल का मुंह ताकता रहा था। उसकी समझ में न आ रहा था कि राम लाल मजाक कर रहा था या कि सच में ही प्रश्न पूछ रहा था। स्कूल में तो उसका मन था कि वो विवेकानंद जैसा ही विद्वान बनेगा। कॉलेज के दिनों में भी उसने साधना की थी कि वो दयानंद जैसा ब्रह्मचारी और विवेकानंद जैसा वेदांती बने। लेकिन परिवार को तो पैसों की दरकार थी। मां बूढ़ी हो रही थीं और बिल्लू, छोटा भाई बहुत छोटा था। ढाई बीघा की जमींदारी में कुछ मिलता नहीं था। मां – दो-तीन घरों में काम करती थी। उसकी पढ़ाई का खर्चा बड़ी मुश्किल से निकाल पाती थी।
“काम कर-कर के मैं नहीं मरूंगी बेटे।” आनंद मां की आवाजें सुन रहा था। “तू पढ़ाई मत छोड़।” उनका आदेश था।
कैसे सन्यास ले लेता वो?
“घर पैसे भेज दिए?” आनंद ने मुड़ कर प्रश्न पूछा था। राम लाल के प्रश्न का उत्तर न दिया था।
“हां। ये रही रसीद।” राम लाल ने आनंद को पांच सौ रुपये के मनी ऑडर की रसीद थमाई थी। “कल्लू नहीं भूलता।” राम लाल हंसा था।
“मैं क्या बनूंगा – मैं नहीं जानता।” एक लंबी उच्छवास छोड़ आनंद ने राम लाल के पूछे प्रश्न का उत्तर दिया था।
“मैं जानता हूँ।” राम लाल कहना चाहता था – लेकिन चुप ही बना रहा था।
राम लाल की निगाहों के सामने साक्षात विवेकानंद बना आनंद आ खड़ा हुआ था। ईश्वर ने आज उसे फिर से वरदान दे दिया था।
“फ्रांसिस के सामने अंग्रेजी बोलता हूँ तो वो खिल्ली उड़ाता है।” आनंद अपनी व्यथा बताने लगा था। “कहता है – अंग्रेजी बोलते तुम अंग्रेज नहीं देसी लगते हो।” हाहाहा। आनंद खुल कर हंसा था। “मन तो होता है कि – मुंह तोड़ दूं लेकिन ..”
“अरे नहीं।” राम लाल कुनका था। “कहीं झगड़ा मत कर लेना आनंद बाबू।” उसने हिदायत दी थी। “बड़ी मुश्किल से जुगाड़ बैठा है।” उसने बताया था।
रिक्शा आ गया था। काम पर जाने का टैम हो गया था।
“सुनो।” जाते-जाते राम लाल ने बर्फी की आवाज सुनी थी। “इसे निकालो यहां से।” उसने आनंद के बारे कहा था। “मेरे बच्चे बिगड़ेंगे।” उसकी शिकायत थी।
राम लाल को अचानक ध्यान आया था कि उनके तीनों बच्चे कॉन्वेंट में पढ़ते थे और बर्फी उन्हें एक अमानत की तरह सहेज कर रखती थी।
काम पर जाते राम लाल और आनंद दोनों चुप थे। रिक्शा अबाध गति से चलता चला जा रहा था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड