कयास लगाया जा रहा है कि चंगेज खां से भी चौगुना है यह जालिम।
यूरोप पूरा डरा हुआ है। कब कहां बम विस्फोट हो जाए – कौन जाने। गिरजा घरों में बैठे लोग परमात्मा की पूजा तक नहीं कर पा रहे हैं। व्यापारी वर्ग बुरी तरह से डर गया है। सरकारें भी तिनके तरह कांप रही हैं। औद्योगिक ठिकानों को बचाने के लिए सतत प्रयत्न रत सरकारें समझ ही नहीं पा रही हैं कि यह जालिम आखिर चाहता क्या है?
बुलैट ट्रेन जैसे ही पास हुई तीन किलोमीटर लंबी पटरी उड़ गई – सूचना मेरे सामने आ कर मेरी डैस्क पर बैठ जाती है। “चीन की सरकार ..?” क्या करे सरकार – मैं सोचती ही रहती हूँ।
“ब्रीफकेस बॉम्ब न्यूक्लियर प्लांट से बरामद हुआ है। आश्चर्य तो यह है कि यह खतरनाक बॉम्ब वहां पहुंचा कैसे?” लैरी खड़ा-खड़ा मेरा मुंह तक रहा है। अब मैं क्या बताऊं उसे? “अगर यह चल जाता तो ..?” लैरी पूछ रहा है?
“तो क्या पूरा देश तबाह हो जाता?” मैं भी यही पूछ रही हूँ।
“हां!” वह कहता है। “और सुनो! खबर है कि भारत के भाखड़ा डैम को उड़ाने की तैयारी पूरी हो चुकी है। दिल्ली शहर सत्रह फीट पानी के नीचे! कैन यू इमैजिन?”
“ओह गौश!” मेरी तो सांसे ही रुक जाती हैं।
रॉबर्ट का आग्रह अचानक मुझे जगा सा देता है। उसकी मंत्र पूत वाणी मुझे बहकाने लगती है। मेरा ध्यान डैस्क से उचट गया है। ज्यादा संकट को कभी-कभी मेरा मन झेल नहीं पाता और इसी तरह बिदक कर भाग जाता है।
“गोआ चलते हैं।” रॉबर्ट की आवाजें मैं सुनने लगती हूँ। “छोड़ो ये जासूसी का लफड़ा। तुम्हें क्या लेना-देना है यार?” रॉबर्ट मुझे समझाता रहा था।
“लेकिन .. रॉबर्ट ..”
“सच कहता हूँ सूफी! मैं गोआ गया हूँ। इतनी चटक धूप निकलती है इन दिनों कि काया कल्प कर देती है। इत्ता सुख – आई टैल यू ..”
लेकिन कहां मानी मैंने रॉबर्ट की बात। जालिम को जानने की जिज्ञासा मुझे बांह पकड़ कर यहां ले आई है। अब डैस्क पर बैठी-बैठी मैं अनगिनत और अप्रिय सूचनाओं के इंतजार में सूख रही हूँ।
जालिम कौन है, कहां है और क्या है – यह तमाम प्रश्न अब भी मुझसे उत्तर मांग रहे हैं। भूखे बने बैठे हैं – मेरे पास। अब इनका क्या करूं?
मैं उठकर बरनी के पास आ बैठी हूँ। बरनी भी बहुत व्यस्त है। वह पिछले सत्रह घंटों से केवल एक ही प्रश्न से जूझ रहा है। मुझे आया देख कर तनिक सा, बिलकुल तनिक सा मुसकुराया है। मैं सांस रोक कर बैठ गई हूँ। मुझे उम्मीद है कि बरनी जरूर कुछ न कुछ खोज कर लेगा। बरनी ने ही तो रूसी जासूसों के गिरोह को गिरफ्तार कराया था। उनके कर्नल एक्स को इतनी चतुराई से खरीद लिया था कि किसी को सूंघ ही न लगी थी और हमारा काम बन गया था। बरनी इज ए जीनियस – दैट वी नो।
“जालिम किसी पाताल के पैंदे में जा बैठा लगता है।” बरनी बीच में बोला है। “लेकिन मुझे अब सुराग मिलने ही वाला है।” वह मेरी ओर आंखें उठा कर देख लेता है।
“यू मीन – यूरेका, यूरेका?” मैं मजाक सा कुछ कर जाती हूँ।
“यस-यस! लाइक दैट ..!” कह कर वह फिर काम में जुट गया है।
मैं खाली डैस्क पर लौट आती हूँ।
“गौट हिज बैंक एकाउंट्स!” लैरी जोर से पुकारता है। “बाई गॉड वॉट ए क्लैवर किंग ही इज! सारे के सारे मैनेज्ड एकाउंट् हैं। और पैसा ..? बेशुमार पैसा है इस शक्स के पास। लाइक ए – पैरलल इकोनॉमी इन दी वर्लड, इसे कैसे काबू किया जा सकता है?” वह मेरी ओर देखता है। “इंपॉसिबल।” वह हाथ झाड़ता है और चला जाता है।
मैं अब अपने आप को कोसने लगती हूँ।
क्यों न मैं ही कुछ ऐसा कर डालूं – जो इस जालिम के दांत खट्टे कर दे? क्यों न मैं इसे उठूं और गले से पकड़ लूं और पूछ लूं – कहो, क्या चाहते हो? कुत्ते की मौत या फिर ..? नहीं-नहीं – मौत के अलावा जालिम को और कुछ देना ही फिजूल है – मैं एक निर्णय करती हूँ। इस तरह के खतरनाक दरिंदों को मौत के सिवा और कोई रिआयत देनी ही नहीं चाहिए। इन्हें तो मरने से पहले एक घूंट पानी के लिए भी नहीं पूछना चाहिए। एक निर्दयी मौत के हकदार ही होते हैं ऐसे लोग।
“क्रिसमस का मजा मिट्टी कर दिया इस जालिम ने।” रॉबर्ट कोस रहा है। “गोआ चलते तो ..?” वो शिकायत करता है।
लेकिन मैं अब रॉबर्ट की बात ही नहीं सुनती।
मैं अपनी धुन में मस्त हूँ। मैं जालिम का मानसिक चित्र तैयार करने में तल्लीन हूँ। मैं उसका रंग रूप, कद काठ, आंख-नाक और शील स्वभाव सब कुछ अभी से सोच लेना चाहती हूँ। मुझे लगता ही नहीं कि यह व्यक्ति कोई गोरा चिट्टा आदमी होगा। मैं समझती हूँ – जरूर ही कोई काला कलूटा, बड़ी-बड़ी मूछों वाला और मोटी-मोटी काली आंखों वाला यह एक राक्षस होगा – जो हर रोज सौ-पचास खून तो अवश्य ही करता होगा और फिर ..
शराब तो जरूर ही पीता होगा – जालिम।
“इजराइल की खुफिया एजेंसी ने एक को पकड़ा है। शायद जालिम ही हो या शायद उसके गैंग का कोई हो। शायद कुछ ऐसा ही हो जो ..” लैरी प्रसन्न हो कर कह रहा है। “अभी-अभी सूचना पहुंची है। उसका चित्र भी पहुंचने वाला है। यू जस्ट वेट।” वह मुसकुराया है।
मैं उस पकड़े जासूस का चित्र देखने के लिए उत्सुक हूँ। मैं देख लेना चाहती हूँ कि आखिरकार वह है कैसा?
“हो ही नहीं सकता ये जालिम!” लैरी मुझे चित्र दिखा कर कहता है। “ये नकली है कोई। फिजूल का आदमी है।” वह नाक सिकोड़ता है। “दे आर फूल्स।” वह गाल फुला कर कहता है। “अरे, जासूस भी कोई गाजर मूली हुआ क्या? और वो भी जालिम?”
“फिर क्या है ये जालिम?” मैं भी पूछ लेती हूँ।
“ये तो तुम्हीं सोचो।” वह कह कर चला गया है।
अब मैं क्या सोचूं? चलो, सोचती हूँ कि जालिम जरूर ही एक पहुंचा हुआ ..! छोड़ो-छोड़ो। यह विचार तो आगे चलता ही नहीं। सभी हारते जा रहे हैं जालिम से। फिर मैं भी क्या सोच सकती हूँ। और मैं ही क्यों सोचूं? क्यों न सबको छोड़-छाड़ कर गोआ चली जाऊं? रॉबर्ट तो बहुत प्रसन्न हो जाएगा।
फिर अचानक ही मुझे रॉबर्ट पर ही रोष हो आता है।
रॉबर्ट कितना स्वार्थी है? वह अपने स्वार्थ से आगे कुछ भी नहीं सोचता। उसे तो केवल मैं और मेरा वैभव दिखाई देता है। उसे देश का हित अहित नहीं दिखाई देता। वह जालिम जैसे पचड़ों में नहीं पड़ना चाहता। वह चाहता है मुझे, फिर जो होगा सो होगा। वाई वरी दैन? लेकिन मैं उसकी इन दलीलों से सहमत नहीं हो पाती हूँ। क्यों? मैं नहीं जानती।
मैं सिर्फ यह जानती हूँ कि अब जालिम मेरे दिमाग का एक ऐसा घोड़ा बन चुका है जिसे तलाश कर मुझे खत्म करना ही होगा। वरना तो मैं और मेरी आत्मा कभी चैन से जी ही नहीं पाएंगे। रॉबर्ट कुछ भी करे, कुछ भी सोचे और कहीं भी जाए, लेकिन मैं अब जालिम को छोड़ कर कहीं भी न जा पाऊंगी।
सोते जागते अब जालिम मेरा पीछा करने लगा है। एक चुनौती की तरह बार-बार ताल ठोक कर मेरे सामने आ जाता है और मुझे ललकारने लगता है। हर बार मैं उसे भूल जाना चाहती हूँ लेकिन वह अब मुझे नहीं भूलता। अब तो वह मेरे साथ संवाद भी बोलने लगा है। और तो और वह मेरा नाम तक जान गया है। न जाने कैसे उसने मेरा मन टटोल लिया है। वह चाहता है कि मैं अब हर कीमत पर उस तक चल कर जाऊं और उसकी संगत करूं।
लेकिन कैसे ..?
“खरीद लो जालिम को।” मैं अपनी ही आवाज सुनती हूँ। “जालिम घाटे का सौदा नहीं होगा।” मैं एक निर्णय जैसा ही ले लेती हूँ।
धन मेरे पास है। पापा कभी मुझे रोकेंगे नहीं, मैं यह जानती हूँ। काम भी देश हित से ज्यादा विश्व हित जैसा है।
पापा तो उलटे प्रसन्न होंगे कि मैं अपने जीवन को एक अर्थ दे रही हूँ और अपनी मां की तरह व्यर्थ में ही नहीं जी रही हूँ।