“धांय, धांय, धांय।” जौहर ने गोलियां चलाई हैं – अनगिनत गोलियां। खूब जम कर खून खराबा हुआ है। “मैं जालिम हूँ।” उसने ऐलान किया है। “मैं दुनिया से जुल्म को खत्म ही करके दम लूंगा।” उसका कहना है। “हिम्मत है तो मुझे मारो।” उसने चुनौती दी है। “अब मैं मारूंगा। कमीनों .. काफिरों .. आओ मुकाबला करो मेरा। दो मुझे फांसी। और करो गुनाह – गुनहगारों।” वह चिल्लाता रहा है।
ये क्या शगूफा है, भाई?
“शगूफा नहीं लैरी ये विचार है।” सर रॉजर्स ने गंभीर आवाज में बताया है। “परमात्मा की पृथ्वी को पवित्र करने का एक विचार।” उन्होंने ठहर कर सोफी और लैरी को देखा है। “बड़ी ही चतुराई के साथ जालिम ने इस जंग का निर्णय लिया है।” वह फिर से एक सोच में डूब जाते हैं।
लैरी और सोफी बच्चों की तरह एक पाठ पढ़ने को आ बैठे हैं। लैरी – जो अब तक अपने आप को जासूसी की कला में दक्ष मान बैठा था, अब निरा अज्ञानी साबित हुआ लगा है। जालिम का रचा मायाजाल उसकी समझ से बाहर ही होता जा रहा है।
और सोफी – जिसे घमंड हो गया था कि वह कभी भी जालिम की गर्दन पकड़ कर मरोड़ डालेगी अब सकते में आ गई है। ये विचार क्या बला है, वह समझ ही नहीं पाती है। यह कौन सा नया दुश्मन है और कौन सा विचित्र हथियार है जिसकी भनक अभी तक किसी को नहीं लगी।
“जालिम – और जालिम पैदा कर रहा है।” सर रॉजर्स बताते हैं। “जैसे कि ये जौहर।” वह उदाहरण देते हैं। “जौहर जैसे किसी भी आदमी के दिमाग में केवल विचार को बिठाने मात्र की बात है। फिर वह स्वयं ही अपना टारगेट चुन लेता है। जौहर एक प्रशिक्षित सैनिक था। जौहर गजब का लड़ाका था। लेकिन जौहर के दिमाग में तब लड़ने का उद्देश्य स्पष्ट नहीं था और अब जालिम ने उसे लड़ने का उद्देश्य दे दिया और वह शहीद बन गया। अब यही विचार आगे बढ़ेगा।” सर रॉजर्स चेतावनी देते हैं।
“रोको इसे।” लैरी चिल्ला सा पड़ता है। “रोका नहीं गया तो हम बरबाद हुए धरे हैं।” वह आंखें नचा कर सोफी को देखता है।
“इस डीन मॉरिस को क्या हुआ डैडी?” सोफी एक दूसरा सवाल पूछती है। “यह कौन सी बला थी? इसे यूनीवर्सिटी के स्टूडेंट्स ने क्यों मार गिराया?”
“शिक्षा के ढकोसले के भीतर यह भी जालिम का उगाया बीज था।” सर रॉजर्स जैसे एक कठिन पहेली का अर्थ बताते हैं। “यह डीन मॉरिस भी स्टूडेंट्स को यौन शोषण का पाठ पढ़ाता था और फिर उन्हें पटा कर ब्लैकमेल करता था।”
“लेकिन क्यों?”
“इसलिए कि हमारी शिक्षा प्रणाली बदनाम हो और उनकी शिक्षा प्रणाली सुनाम हो।” सर रॉजर्स हंसते हैं। “जालिम की शिक्षा ..” वह रुकते हैं।
“वो क्या है?” लैरी पूछता है।
“स्वतंत्र सैक्स। अनलिमिटिड सैक्स। लाइक ..”
“फिर तो वह भी उतना ही अय्याश होगा?” सोफी पूछती है।
“हां, वैसा ही है।” सर रॉजर्स स्वीकारते हैं। “संभोग उसके लिहाज से परमात्मा का बनाया सबसे अच्छा संयोग है। वह कहता है ..”
“करता भी तो होगा?” लैरी पूछ लेता है।
“हां-हां।” सर रॉजर्स मान लेते हैं।
“बस।” लैरी बात को पकड़ लेता है। “यही दरकार है हमें इसे ..” वह सोफी की ओर देखता है।
सोफी की समझ में कुछ नहीं आ रहा है। आज तो वह बिलकुल ही भ्रमित है। उसे तो आशा थी कि उसकी मुठभेड़ जल्द ही जालिम से होने वाली थी। लेकिन अब तो उसे यह जालिम हवा से भी ज्यादा पतला लग रहा था। वह लड़ेगी भी तो किससे?
“ग्रीन को पकड़ा है। जालिम ने ही उसे किडनैप कराया है। लेकिन क्यों?” लैरी प्रश्न करता है।
“जालिम जुल्म खत्म करेगा – उसने तो ऐलान किया है। और ये ग्रीन उसके हिसाब से सबसे बड़ा गुनहगार है।”
“क्यों?” सोफी पूछती है।
“ग्रीन ने अपार धन इकट्ठा कर लिया है। वह बड़ा धनवान है। उसके पास अपार संपत्ति है। लेकिन जालिम के हिसाब से यह एक अन्याय है, जुल्म है।”
यही बात आ कर उन सबके सामने ठहर जाती है। धनवान होना गुनहगार होना कैसे हुआ?
“जालिम जुल्म खत्म करेगा उसने ऐलान किया है।” सर राॅजर्स फिर से बताते हैं। “अब बताओ कि हम इसका क्या जवाब दें?” वह फिर से प्रश्न पूछते हैं।
“हम ताे जालिम काे ही खत्म करेंगे।” साेफी तपाक से कहती है।
“गलत है साेफी। तुम्हारा जवाब गलत है।” सर राॅजर्स टीस कर कहते हैं। “हम यहीं गलती कर रहे हैं। हमारे मिशन का केंद्र यह रहेगा ताे लाेग हमारे साथ क्याें जुड़ेंगे? जब हम उनके रहनुमा जालिम काे ही मारेंगे ताे साेचाे ..? हमारा साेच ही गलत हाे जाता है।” वह एक निचाेड़ सामने रख देते हैं। “पहले अपना ध्येय चुनाे। फिर स्काई लार्क का ध्येय चुनाे।” वह उन दाेनाें काे काम देते हैं। “अब वाे ध्येय चुनाे जाे जन मानस के हित का हाे।” वह उत्तर भी सुझाते हैं।
“लेकिन यह लड़ाई, यह जंग हमारे ध्येय की माेहताज कैसे हुई?” साेफी तुनक कर पूछती है। “डैडी। मेरी ताे समझ में ही नहीं आ रहा है कि ..”
“काॅन्सेप्ट की लड़ाई जीतने के लिए काऊंटर काॅन्सेप्ट ही चाहिए साेफी। गाेला बारूद ताे बाद की बात है।” सर राॅजर्स गंभीर हैं। “हम किसी काे गाेली से क्याें उड़ा दें?” वह साेफी काे घूरते हैं। “कारण बताऒ?” वह पूछते हैं।
सारी की सारी बात में एक पेच पड़ जाता है। सर राॅजर्स धीरे-धीरे अपनी मंजिल की ऒर बढ़ते हैं और साेफी और लैरी आज जासूसी का एक नया पाठ पढ़ते हैं। उन्हें ताे विश्वास ही नहीं हाेता कि सर राॅजर्स जासूसी के बारे इतना कुछ समझते और जानते हैं और ..
“अब क्या करें?” लैरी पूछता है।
“तुम्हारा उत्तर क्या है?” साेफी पूछती है।
“भारत।” दाेनाें एक साथ कहते हैं। “भारत में बाेया है उसने यह बीज और भारत की भुरभुरी मिट्टी में ही उगा है यह आतंक का पाैधा।”
“सर। अगर हम जालिम के गाेला बारूद के सारे जखीराें काे उड़ा दें ताे”? लैरी अपनी राय सामने रखता है। “मुझे पूरी जानकारी है। मेरे पास ..” वह एक गुप्त रहस्य काे उजागर कर देता है।
“हम क्याें उड़ाएं इस जालिम के गाेला बारूद के जखीराें काे लैरी? जालिम के ही आदमी अगर इन्हें उड़ाएं ताे कैसा रहे?” सर राॅजर्स मुसकुराते हैं।
“माने कि जालिम काे जालिम ही मार डाले?” साेफी पूछती है।
“बिलकुल ठीक साेचा है साेफी ने। ये खेल दिमाग का है बच्चाें और ये खेल धीरज का है। ये खेल ..”
“खेल खिलाड़ी का और पैसा मदारी का?” लैरी बात का मकसद समझ कर कहता है।
“हां-हां यही ताे।” सर राॅजर्स भी मान लेते हैं। “पैसा ताे हमेशा ही मदारी का हाेता है और यही मूल है सारी विपत्तियाें का। पैसा ..।” तनिक ठहर कर सर राॅजर्स साेचते हैं। “पैसा ही सब दुखाें का मूल है।” वह तनिक टीस आते हैं। “पैसे की हवस ही ताे आदमी काे ले डूबती है।” वह कह कर चुप हाे जाते हैं।
“पर बुराइयाें का खात्मा करना ताे ..?” लैरी अपना दर्शन सामने रखता है।
“बुराइयां और भलाइयां दाेनाें ही जर्म्स जैसी हैं लैरी।” सर राॅजर्स अपना अनुभव बताते हैं। “ये स्वयं पैदा हाेती हैं और स्वयं मर जाती हैं। सैल्फ लाइफ है इनकी। पर हैं दाेनाें ही लाजवाब। हमें दाेनाें की दरकार हाेती है। समाज का संगठन भी इन्हीं से चलता है।” वह तनिक ठहर कर साेफी और लैरी काे देखते हैं। “अच्छा बुरा सब हाेता रहता है – एक साथ। युद्ध और शांति भी समानांतर चलते रहते हैं। रुकता ताे कुछ भी नहीं है।” वह हंस जाते हैं।
“पर शांति की कल्पना?” लैरी पूछ ही लेता है।
“कल्पना है, लैरी। साे ताे ठीक है। कल्पना ताे किसी की भी की जा सकती है। वास्तव में शांति ताे मन की हाेती है। पर कठिन काम है इस शांति काे पा लेना।” वह स्वीकारते हैं। “मैं आज तक अशांत हूँ और न जाने कब तक ..।”
“क्याें?” लैरी पूछना नहीं भूलता।
“प्रेम का शूल ऐसा लगा कि अब तक निकला ही नहीं। लड़ाई लड़ी, धन कमाया, शाेहरत और इज्जत भी हासिल की। लेकिन लैरी आज भी मैं एक ही चेहरे के साथ बंधा बैठा हूँ, प्रेम के एक साैदे में बिका बैठा हूँ, मैं – आज तक।” सर राॅजर्स टीस कर बताते रहते हैं।
“राॅबर्ट चला गया – अच्छा ही हुआ।” साेफी साेचती है। “रास्ते का राेड़ा था वह।” वह महसूसती है।
लेकिन जैसे ही वह मुड़ कर देखती है, राॅबर्ट उसे पास बैठा दिखाई दे जाता है। साेफी भी हैरान रह जाती है।
मेजर कृपाल वर्मा (रिटायर्ड)