अंग्रेजी से मगज मारते-मारते आनंद पागल हो गया था तभी कल्लू उसे लेने पहुंच गया था।
“आओ भइया।” कल्लू हंस रहा था। “कैसा पढ़ा ..?” कल्लू ने उसे हुलम कर पूछा था। “ये ससुरी अंग्रेजी भी क्या अनोखी कला है।” उसने हवा में हाथ फेंके थे। “मेरा भी मन था .. पर ..” उसने आनंद की आंखों में झांका था। “काला अक्खर भेंस बराबर।” कल्लू ने टीसते हुए कहा था।
आज कहीं कल्लू को भी अपने अनपढ़ छूटने के शोक ने सताया था।
“कैसा रहा?” राम लाल ने भी आनंद के आते ही पूछा था।
“अंग्रेजी अखबार रोज पढ़ना होगा।” आनंद ने बे रोक टोक अपनी मांग सामने रख दी थी। “खबरें भी अंग्रेजी में सुननी हैं।” वह बताने जताने लगा था। “कल लौटूंगा तो नीलू सुनेगी खबर।” उसने राम लाल का चेहरा पढ़ा था। “अंग्रेजी में ..!” उसने अगला खुलासा किया था।
राम लाल लंबे लमहों तक आनंद को देखता रहा था। उसे लगा था कि उसका अनुमान सही था।
“एक आप ने ये गढ़ जीत लिया न आनंद बाबू तो समझो हो गए सब दुख दूर।” राम लाल ने प्रसन्न हो कर कहा था। “मैं अगर अनपढ़ न रह जाता तो आनंद बाबू .. तो शायद आज?” राम लाल भी आज कहीं दुखी था।
लेकिन आनंद आज भी समझ न पा रहा था कि कल्लू और राम लाल के अपनढ़ रह जाने से कौन सी क्षति हुई थी। दोनों खूब खा कमा रहे थे और मौज मजे में थे। यहां तक कि राम लाल का बंगला और बर्फी ..?
अचानक ही फिर से आनंद नीलू के चेहरे को बर्फी के चेहरे से नापने लगा था। अचानक ही उसकी जंग बर्फी के साथ जा जुड़ी थी। वह राम लाल की खुशी का कारण भी जान लेना चाहता था। वह जान लेना चाहता था कि कल्लू, राम लाल और वो चिड़िया वाला – तीनों मिल कर उस अकेले आनंद से क्या ले लेना चाहते थे?
“साला!” कल्लू रोष में था। “ये तो आज ही उल्टा बोला।” वह अपने दोस्त कदम को बता रहा था। “अंग्रेजी आने के बाद तो ये हाथ भी न रखने देगा।” उसका अनुमान था। “बहुत तेज है।”
“कहां उड़ के जाएगा साला?” कदम ने पिंजड़े में बंद चिड़िया को घूरा था। “पंछी भी तो आसान काबू नहीं आता, कल्लू!” उसने हंस कर कहा था। “ये तो खाता गाता इंसान है, स्याला। हम जैसा ही तो है।”
“बहुत आगे है।” कल्लू ने संभल कर कहा था। “बता देता हूँ, गुरु को।” उसने शपथ जैसी ली थी। “होशियारी से चलें।” उसकी राय थी।
लेकिन राम लाल का अपना अनुमान अलग ही था।
शाम को घर पहुंचते ही राम लाल ने बंगले का काया कल्प कर डाला था। उसने आनंद के कमरे में रेडियो पहुंचाया था, पढ़ने लिखने के लिए टेबल कुर्सी और मेज डलवाई थी। बिजली की रोशनी बढ़ाने के लिए दूसरा बल्ब भी लगवाया था। और .. और हां – उसके कमरे के खिड़की दरवाजों पर पर्दे भी लगवा दिए थे। यह सब राम लाल ने अपनी देख रेख में कराया था।
“लीजिए आनंद बाबू।” राम लाल ने प्रसन्न हो कर कहा था। “अब आप का कोई काम न रुकेगा।” वह हंस रहा था। “सुबह अंग्रेजी का अखबार भी आन पहुंचेगा।” उसने सूचना दी थी। “मन से सीख लो इस काम को ..।” कह कर वह बंगले में घुसता ही चला गया था।
एक बार फिर से आनंद ने राम लाल को पढ़ना चाहा था – नापना चाहा था। लेकिन वह कोई अनुमान न लगा पा रहा था।
“द कंट्री इज गोइंग टू हैव इलैक्शन्स।” आनंद रेडियो पर अंग्रेजी में खबरें सुन रहा था। “द इलैक्शन्स ..” और अब आनंद की समझ से बहुत कुछ बाहर छूट रहा था। वह चाह कर भी खबर को पूरी तरह पकड़ न पा रहा था।
न जाने क्या था और कैसे था कि आनंद को नीलू का डर सताने लगा था।
“क्या बताएगा ..?” वह बड़बड़ा रहा था। “साला, पल्ले ही कुछ नहीं पड़ता।” वह अपने आप को कोस रहा था।
और फिर न जाने कैसे नीलू को भूल वह बंगले में कहीं छुपी बर्फी को तलाशने लगा था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड