क्या रॉबर्ट का सर रॉजर्स के साथ राइडिंग पर जाना कोई अर्थ रखता है?

सोफी को यह बहुत बुरा लगा है। वह अकेली है, निपट अकेली। जैसे कि अपने कुछ नापाक इरादों के साथ वह अकेली आ बैठी हो। कोई गुनाह करके छुप रही हो। या कि कोई गलत बात हो कर उसके गले में टंगी हो। या कि कोई ऐसा अपराध उसने किया हो जो ..

तभी शायद सर रॉजर्स आज रॉबर्ट के साथ घुड़सवारी पर चले गए हैं। वरना तो आज तक कभी ऐसा हुआ ही नहीं कि .. वह ..

सोफी को सब याद है। उसे याद है कि सर रॉजर्स ने ही तो उसे घुड़सवारी सिखाई थी। कितने लाढ़ से – कितने प्यार से और कितने उत्साह से उन्होंने उसे यह हुनर सिखाया था। वह अपनी बेटी को सब कुछ स्वयं सिखा देना चाहते थे। वह चाहते थे कि ..

लेकिन आज वह निपट अकेली बैठी है।

अचानक ही सोफी को अपनी मां याद हो आती है। उसे मां की खूब याद है। मां का दिव्य रूप स्वरूप वह भूली कहां है? मां बेटी का तो रिश्ता ही गजब का होता है। मां के साथ जिए वो कच्चे-कच्चे पल आज अचानक ही सोफी को कुरेदने लगते हैं। काश! अगर आज मां उसके साथ होती तो .. वह भी यों अकेली न छूट जाती।

सोफी को मां की शादी की यादें आ आ कर सताने लगती हैं।

सर रॉजर्स के वियतनाम की लड़ाई पर जाने के बाद से ही मां और लॉर्ड मैरिट के किस्से हवा में बिखरने लगे थे। आए दिन उन दोनों की चर्चा होने लगी थी। हॉस्टल में उसकी सहेलियां उसे प्रश्न पूछ-पूछ कर जब बेदम कर देतीं तो वह मां को खूब कोसती थी। उसे अच्छा कहां लगता था? वह सर रॉजर्स का आग्रही चेहरा उसे याद हो आता था। “न जाओ मुझे और सोफी को छोड़ कर ..!” सर रॉजर्स ने विनय की थी। “सोफी ..?” उन का गला रुंध गया था। “मैं निर्णय ले चुकी हूँ रॉजर्स!” मां का स्वर कठोर था। वह चली गई थी।

मां ने उसे अपनी शादी पर बुलाया तो था लेकिन वह गई नहीं थी। तब सर रॉजर्स के लापता होने की खबरें अखबारों में छपी थीं। वो जिंदा थे या कि ..

और एक मां थी कि लॉर्ड मैरिट के साथ शादी संजो रही थीं। शादी उन्होंने की। उनकी शादी के फोटो छपे देश विदेशों तक उनकी शादी की चर्चा हुई। उसने भी देखा था उनकी शादी के फोटो को। न जाने क्यों एक घृणा के सिवा सोफी के मन में कुछ और न उगा था। उसे तो उस फोटो को देख उबकाइयां आने लगी थीं। बूढ़े उस व्यक्ति लॉर्ड मैरिट के साथ मां ने न जाने क्या देख कर शादी कर ली थी? और फिर वह मरा भी तो विधवा हुई मां फिर से अकेली थीं। लेकिन अब उनके नए बॉए फ्रेंड की चर्चा चल पड़ी थी।

वियतनाम से सर रॉजर्स लौटे थे तो देश ने उन्हें सम्मानित किया था। लेकिन मां उनसे मिलने तक न आई थीं। अपने बॉय फ्रेंड के साथ ..

“नॉनसेंस!” सोफी खींजती है। “ये बॉय फ्रेंड्स ..” उसे फिर से रॉबर्ट पर क्रोध हो आता है।

अचानक ही फोन की घंटी बजती है। किसी का फोन है। सोफी का एकांत टूटा है। उसका सोच भी टूटा है। वह फोन उठाने के लिए लौटी है। लैरी है। वह जान लेती है। ओह गॉड! वह तो उसे ही फोन करने वाली थी – वह सोचती है। वह कहने वाली थी कि भूल जाओ स्काई लार्क को। भूल जाओ वह सब कुछ जो ..? लेकिन ..

“हैलो सोफी?” लैरी की दमदार आवाज गूंजती है। “हाओ यू ..?” वो औपचारिकता वश पूछता है।

“फाइन!” सोफी अपनी आवाज को संभाल कर बोलती है। “आ गया मूडी?” वह यू ही पूछ लेती है। लेकिन वॉलिशिया के अपने ध्वस्त हुए सपने को वह आज हाथ तक नहीं लगाती।

सोफी आज किसी भी सपने को पास नहीं बैठने देती है। वह असंपृक्त है। वह तो नाराज है। वह नहीं चाहती कि ..

“माइक .. यॉर बॉस, ओ यस – माई बॉस ऑलसो मैदान में कूद पड़ा है।” लैरी बताने लगता है।

“क्या मतलब?” सोफी चौंकती है। “माइक को तो निकाल दिया था न?”

“तभी तो” लैरी हंसा है। “फ्राई पार्क कंपनी बना ली है उसने भी।” लैरी सूचना देता है। “छह पार्टनर हैं, और अब जालिम का सौदा खरीदने मैदान में कूद पड़ा है। और भी कई लोग हैं जो जालिम से जुड़े हैं और कई संस्थाएं भी हैं जो जालिम का सौदा खरीद लेना चाहती हैं। लोग तो जालिम के नाम पर धन लगाना चाहते हैं।” लैरी मुकम्मल सूचना देता है।

“तो फिर हम तो ..” सोफी निराश स्वर में पूछती है। “इसका मतलब कि हम तो जालिम को ..?”

“निराश मत होओ सोफी। लैरी कच्ची गोली नहीं खेलता।” लैरी तनिक हंसा है। “स्काई लार्क तैयार है। सारे पेपर्स तैयार हैं। मैंने भी अपनी बिड लगा दी है। मैंने तमाम फॉरमैलिटीज पूरी कर दी हैं। बस, कल आना है ..!”

“समझी नहीं मैं?” सोफी प्रश्न करती है।

“भाई हम लोगों के साइन भी तो होने हैं।” लैरी सूचित करता है। “सर रॉजर्स को बता दिया है न?” वह पूछता है।

सोफी सकते में आ जाती है। उसने तो डैडी से अभी तक जिक्र भी नहीं किया है – वह मानती है। फिर से उसे रॉबर्ट पर रोष आता है। कबाब की हड्डी – कह कर वह बड़बड़ाती है। “पहले इस हड्डी को निकाल फेंकना होगा।” वह एक निर्णय लेती है।

“सर रॉजर्स पर ही सारा गेम डिपेंड करेगा सोफी।” लैरी फिर से समझाता है। “डाएरैक्टर रिग्स इनका वियतनाम की लड़ाई में बडि रहा है। मैंने सब पता कर लिया है। बस काम हुआ धरा है अगर ..”

“लेकिन लैरी ..?”

“फिर तो राष्ट्रपति तक की चिंता नहीं सोफी। वह भी इन दोनों को खूब जानते हैं। और सर रॉजर्स का तो रुतबा ही अलग है। नैशनल हीरो हैं भाई।” लैरी जोरों से हंस पड़ा है।

लेकिन सोफी चुप है। वह सोच रही है कि सर रॉजर्स को ..

“और हां, पैसे का बंदोबस्त भी हो जाएगा। जालिम के नाम पर तो लोग, पागलों की तरह पैसा लगाने पर तुले हैं और सरकार भी अब हाथ खोल कर पैसा खर्च करने पर तुली है। एक बार – बस एक बार हमारा काम हो जाए, फिर देखना सोफी। मैंने तो पूरी प्लान तैयार कर ली है।”

“कैसी प्लान?”

“तुम्हें भारत भेजने की। सब कुछ तय है। हमारी तो चर्चा भी चल पड़ी है। तुम्हारा नाम मैंने टॉप स्लॉट के लिए दे दिया है। अब तुम्हीं पर सब कुछ निर्भर करेगा।” लैरी अपनी पूरी बात एक सांस में कह जाता है।

लेकिन सोफी अभी भी चुप है। उसे तो अभी भी रॉबर्ट का ही डर खाए जा रहा है। क्यों मुंह लगाया उसने इस इंसान को? सब कुछ ले डूबेगा ये रॉबर्ट। डैडी को भी न जाने इसने क्या-क्या बता दिया होगा। न जाने अब क्या होगा? डैडी न जाने अब ..

“मां को फोन मिलाओ!” सोफी का मन कूद कर कहता है। “वह भी तो ..?”

सर रॉजर्स और सोफी की मां का एक छोटा मुकाबला उसकी आंखों के सामने ही होता है। मां का पैसा हाथ फैला-फैला कर लड़ता है, लेकिन उनके किस्से कहानी उस पैसे गरिमा को लेकर डूब मरते हैं। मां मुकाबला हार जाती है और उनका पैसा भी हार जाता है। “नाम तो सर रॉजर्स का ही चलेगा।” सोफी की समझ में सब कुछ समा जाता है।

“कल किस वक्त आऊं?” लैरी पूछता है। “मैं तो सोचता था कि ब्रेकफास्ट सर रॉजर्स के साथ खाएं? बड़े ही दिलचस्प व्यक्ति हैं। मैं इन से सन 81 में मिला था। इनका कद तब बहुत बड़ा था। और मैं था बहुत छोटा ..” लैरी कहता रहता है।

लेकिन सोफी अब कुछ नहीं सुनती है। वह तो चिंता मग्न है।

“तो फिर ब्रेकफास्ट पर आना तय रहा?” लैरी फिर से पूछ लेता है।

“हूँ ..? हां-हां। लैरी, लेकिन ..?” सोफी गले में अटके शब्द उगल नहीं पाती। उसका गला ही रुंध जाता है।

“डॉन्ट लैट मी डाउन बेबी।” लैरी समझाता है। “सब कुछ तय हो चुका है।” वह फिर से याद दिलाता है। “सी यू ऑन ब्रेकफास्ट टेबुल। ओ के ..!” लैरी फोन काट देता है।

सोफी का दिल बैठ-बैठ जाता है। वह फोन पकड़े-पकड़े कई पलों तक खड़ी ही रहती है।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

मेजर कृपाल वर्मा (रिटायर्ड)

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