लैरी आज आ रहा है! एक लंबे इंतजार के बाद आज आशा किरन लौटी है।
इंतजार करना भी एक अजीब बात है। इंतजार करना भी जैसे एक आर्ट है। तरह-तरह के विचार आते हैं। कुछ आ कर डराते हैं तो कुछ आ कर धीरज बंधाते हैं। आशा और निराशा दोनों अखाड़े में उतर आदमी को अपने वश में कर लेती हैं। इंतजार के दिनों में जालिम ही एक ऐसा मुद्दा था जो मरा नहीं। और जालिम ही एक ऐसी चुनौती है जो उसे ललकारती ही रही है।
“कैसे स्वागत करूं लैरी का?” सोफी ने स्वयं से प्रश्न पूछा है। “क्या पूछूं उसे?” वह सोचती है। उसका दिमाग तो अभी तक आकाश की तरह साफ है। अभी तक वहां कुछ भी उगा नहीं है। “लेकिन लैरी मुझसे क्यों मिलना चाहता है?” सोफी स्वयं से ही प्रश्न पूछ लेती है। “जरूर उसका भी कोई स्वार्थ होगा।” उसने प्रश्न का उत्तर दिया है। “उसका कोई काम होगा, या उसका कोई मकसद जरूर होगा, वरना लैरी ..?” वह मान लेती है। “पहले लैरी के मकसद को जानो और फिर ..!” वह तय कर लेती है।
कई बार इस एकांत और जिज्ञासा के आतंक के बीच उसने लैरी से परामर्श करना चाहा है। लेकिन न जाने क्यों हर बार उसने इस विचार को नकार दिया है। वह तो लैरी से नाराज है। डैडी को रॉबर्ट ने पट्टी पढ़ा दी है। वह भी नहीं चाहते कि सोफी जासूसी जैसे जघन्य अपराध को गले में डाल कर देश विदेश में भागी डोले।
“बॉस इज आउट।” लैरी ने आते ही पहला धमाका किया है। वह जोरों से हंसा है। “उसे तो जाना ही था।” लैरी ने साथ में अपनी राय भी दी है।
लेकिन सोफी को क्या लाभ? वह भी तो अब विभाग से बाहर है। उसे तो पहले ही निकाल दिया था।
“क्यों निकाला उसे?” सोफी यूं ही के अंदाज में पूछ लेती है।
“जालिम। एक ही कांटा है – जालिम जो देश के दुखते पैर से निकल नहीं पा रहा है। ये जालिम देश को बहुत दुख दे रहा है। यहां तक कि देश की सारी संपत्ति पर यह डाका डाल रहा है। देश के मनोबल को गिरा रहा है। और अफवाहें भी तेज हैं कि जालिम एक न एक दिन हमें ले बैठेगा।” लैरी गंभीर है।
“आखिर हुआ क्या?” सोफी पूछती है।
“जालिम ने अमेरिका के खिलाफ सरेआम जंग का ऐलान कर दिया है।”
“वो कैसे?” सोफी उत्सुकता से पूछती है।
“हेट कैंपेन। तीन धमाके हुए हैं। सत्रह लोग मारे गए है। सात लोग बंदी बना लिए गए हैं। एक भाग निकला था जिसकी रिपोर्ट है कि ..!” लैरी चुप हो जाता है। बहुत कुछ ऐसा है जिसे शायद वह कहना नहीं चाहता।
“है क्या?” सोफी पूछ लेती है।
“शॉकिंग! जालिम का अमानुशिक व्यवहार! हिंसा .. प्रताड़ना .. जुल्म! थर्रा जाता है मात्र सुन कर आदमी का मन प्राण, सोफी। ये जालिम जालिम ही है।” वह सोफी की आंखों में घूरता है। “मैं तुम्हें डरा नहीं रहा पर ..!”
“डरना मेरे खून में है कहां लैरी!” सोफी विहंस कर कहती है। “जब मैं जालिम की कल्पना करती हूँ तो निरा एक निशाचर ही नजर आता है मुझे। मैं तैयार हूँ – मानसिक तौर पर भी और शारीरिक तौर पर भी।” सोफी गजब के आत्म विश्वास के साथ कहती है।
“गुड-गुड!” लैरी प्रसन्न हो जाता है। “आई एम ग्लैड।” वह सोफी को अपांग देखता है।
“मेरा तो अभी भी मन है लैरी कि मै वालेशिया चली जाऊं।” सोफी अपना मत जाहिर करती है। “जरूर ही जालिम वॉलेशिया में होगा।” अब वह सहयोग के लिए लैरी की आंखों में घूरती है।
लैरी भी एक बार फिर से सोफी को निरखता परखता है। सोफी का मन भी भाग कर वॉलेशिया चला जाता है। नंगी नाचती नृत्यांगनाएं उसे इशारे से बुला लेती हैं। वह भी अपने कपड़े उतार उनके बीच में जा मिलती है। फिर नृत्य आरंभ होता है। सोफी मन लगा कर नाचती है और सम्राट के आसन पर बैठे उस गाबदी को रिझाती है, उसकी आंखों में आंखें डाल कर मुसकुराती है और वह गाबदी उठ कर उसकी ओर चला आता है। पास आ कर उसे छू लेता है और उसे चुन लेता है। गाबदी उसे वर लेता है और वह मलिका बन उस गाबदी के साथ वॉलेशिया पर शासन करती है।
“आंखें फोड़ दो इसकी।” सोफी अपने ही स्वर सुनती है। “ये जालिम बहुत बड़ा जालिम है, एक बेरहम अपराधी है – हत्यारा है! इसे ऐसी सजा दो ..”
सोफी के दिमाग में बहते भावों को ताड़ लैरी जोरों से हंस पड़ा है।
सोफी का ध्यान टूटा है। वह महसूसती है कि लैरी उसके भावों को ताड़ गया है। लैरी एक बहुत बड़ा विद्वान है – सोफी यह जानती है। वह अपने फन का माहिर है। बातों से बात निकाल कर लैरी इस तरह तर्क और तथ्य नौचता है जैसे कोई कपड़े में गुमनाम हुए डींगर को पकड़ लाए। बहुत होशियार है लैरी।
“व्यर्थ है अब वॉलेशिया जाना।” लैरी अब की बार फिर खुल कर हंसा है।
“लेकिन क्यों?” सोफी पूछ ही लेती है।
“बगावत। भयंकर साजिश।” लैरी अपने दोनों हाथ हवा में फेंकता है। “फिनिश्ड ..!”
“पर कैसे?” सोफी तनिक निराश हो कर पूछती है।
“गाबदी की चुनी हुई सर्व श्रेष्ठ सुंदरी ने ही उसका खून कर दिया।” वह बताता है।
“ओह गोश!” सोफी दहला जाती है।
“अन्य सभी सुंदरियों ने उसका साथ दिया। और सब ने मिल कर गाबदी का पूरा काम काज काबू कर लिया। षड़यन्त्र तो बहुत दिनों से चल रहा था। बहुत ही बेरहमी से मारा गाबदी को।”
“हमारी ओर से कोई गया था?” सोफी की निगाहों में एक निराशा भर आती है।
“मूडी अभी भी वहीं है। हमारा सहयोग ..” लैरी रुक जाता है।
“हमीं ने तो नहीं कराया – यह सब?” सोफी सीधा सवाल पूछती है।
“मान लो ..! कुछ भी मान लो ..! था तो सब अनैतिक ही। एक गलत उदाहरण ही तो पेश हो रहा था। अब कम से कम स्त्रियां तन तो ढांपेंगी।” लैरी चुप हो जाता है।
सोफी भी चुप है। वह भी मरे सपने को अब नहीं छूती।
“जालिम ..?” सोफी हिम्मत जुटा कर पूछती है।
“वहां नहीं था – और न अब वहां है। केवल हमारा शक था। लेकिन ..!” लैरी सोफी को मुड़ कर देखता है।
“लेकिन मैं तो अब भी चाहती हूँ कि मैं जालिम को खोजूं, उसके पीछे जाऊं – पर कहां? मैं भी तो ..”
“मैं ये जानता हूँ।” लैरी ने विहंस कर बताया है। “लेकिन तुम अकेली ..? माने कि अकेला ही चना भांड़ फोड़ने चल दे? तनिक सोचो तो, सोफी?”
“क्यों ..? क्या तुम भी कम कूत रहे हो मुझे?” इस बार सोफी गुर्राती है।
“नहीं, वो बात नहीं है। पर मेरा एक सुझाव है, सोफी, और मैं जानता हूँ कि तुम्हीं इस सुझाव को समझ पाओगी .. और ..”
“क्या सुझाव है?” सोफी पूछ लेती है।
“एक संस्था बनाओ। और स्काई लार्क नाम दो इस संस्था को। संस्था चलाओ। काम है – बहुत काम है। लोग पैसा भी अच्छा देते हैं लेकिन वो काम तो लेते हैं।”
“लेकिन लैरी ..” सोफी बिगड़ सी जाती है।
“सुनो तो!” लैरी धीरज के साथ कहता है। “सुन तो लो पूरा आईडिया। पैसा कमाना हमारा ध्येय नहीं होगा। हमारा ध्येय होगा – जालिम। हम जालिम को अमरीका से ठेके पर खरीद लेंगे। प्राइवेट फर्म के तौर पर तब हम ..”
“असंभव है।” सोफी भभक उठी है।
“संभव है।” लैरी भी जोर देकर अपनी बात कहता है। “हमारा बॉस यही तो नहीं समझ पाया था। मैंने कई बार माइक को भी समझाया था पर वह तो डिसिप्लिन के पीछे ही हाथ धो कर पड़ गया था। इस तरह के काम एक अलग प्रकार से होते हैं, सोफी।”
“तो क्या तुम साथ दोगे, हमारे साथ होगे?” सोफी साफ-साफ पूछ लेती है।
“हां-हां! इसीलिए तो तुम्हारे साथ बैठा हूँ।” लैरी एक कामयाबी को करीब आते देख हंसता है। “मैं सब संभाल लूंगा। संस्था भी बना दूंगा। मैं और तुम .. और एक कोई और?”
“रॉबर्ट!” सोफी तपाक से तीसरा नाम सुझाती है।
“रैबिट नहीं सोफी – हमें शेर चाहिए शेर! हमें एक शेर की दरकार होगी।” वह रुकता है। “और हमें चाहिए – सर रॉजर्स। अब तुम पटा लो उन्हें।” वह सोफी को आदेश जैसा देता है। “और फिर हमें चाहिए पैसा! अकूत पैसा – अटूट पैसा और अतुल पैसा। ये एक अंधा गेम है और तुम तो जानती हो कि ..”
“और जालिम?” सोफी पूछती है।
“तुम्हारा रहा – जालिम!” लैरी वायदा करता है। “सुराग है। भारत में है। तुम्हीं जाओगी। लेकिन पहले भारत का सब कुछ सीखना होगा।” लैरी आदेश जैसा कुछ देता है।
भारत – एक गुलाब के फूल की तरह सोफी के दिमाग में खिल उठता है।
मेजर कृपाल वर्मा (रिटायर्ड)