पटरी पर निष्क्रिय बैठा आनंद आज ऊंघ न रहा था।
“जरूर-जरूर राम लाल ने झुग्गी में अकेली बर्फी के साथ बुरा काम किया होगा?” आनंद कयास लड़ा रहा था। “ये आदमी सीधा नहीं है।” उसने मन में सोचा था। “बर्फी ..?”
“आनंद बाबू!” कल्लू ने पुकारा था। “गुरु याद कर रहे हैं।” उसने सूचना दी थी। “जाओ।” वह हंसा था। “चले जाओ।” उसने हाथ का इशारा किया था।
आनंद पूछने को हुआ था कि “मनी ऑडर हुआ कि नहीं” पर चुप हो रहा था। वह जान गया था कि कल्लू राम लाल का पक्का चेला था। उन दोनों की एक बात थी। और वह अभी तक कहीं भी न पहुंचा था। गिने चुने कदमों से आहिस्ता-आहिस्ता आनंद राम लाल की चाय की उस झोंपड़ी नुमा दुकान में घुसा था। उसका मुकाबला घुसते ही राम लाल से ही हुआ था।
“बुलाया था ..?” आनंद बाबू ने हिचकते हुए पूछा था।
“हां-हां। बैठो आनंद बाबू!” राम लाल ने विहंस कर उसका स्वागत किया था। “चाय तो पिएंगे?” उसने पूछा था।
आनंद चुप था। उसे जैसे कोई गम खाए जा रहा था।
“लो पर्ची।” राम लाल ने आनंद को मनी ऑडर की रसीद दी थी। “मां को पैसे मिल जाएंगे।” वह हंसा था। “अच्छा हुआ कल्लू गया।” उसने आनंद को घूरा था। “आप जाते तो बात न बनती। कह रहा था – बहुत भीड़ थी।”
मनी ऑडर की रसीद को देख आनंद तनिक खिल गया था।
“आइए! चाय पीते हैं।” राम लाल ने आनंद को साथ चाय पीने के लिए आमंत्रित किया था।
आनंद को आभास हुआ था कि अब राम लाल उसे बर्फी की बाकी कहानी बताएगा। न जाने क्यों उसके दिमाग में बर्फी का कल्पित चेहरा बैठा हुआ था जो उत्तर मांग रहा था – उसे बुला रहा था।
“मैं सोच रहा हूँ आनंद बाबू कि ..” रुका था राम लाल। उसने आनंद को परखा था। वह अब ठीक था। मनी ऑडर की पर्ची का उस पर ठीक असर हुआ था। “आप अंग्रेजी बोलना तो सीख ही लें।” हंसा था राम लाल। “क्योंकि बिना अंग्रेजी बोलने के बात बनेगी नहीं।” उसका अपना मत था।
“क्यों ..?” भभक गया था आनंद। उसके चेहरे के भाव बदल गए थे। “मैं .. मैं तो अंगेजी से नफरत करता हूँ।” दो टूक बोला था आनंद। “ये भाषा .. ये ..”
“लेकिन क्यों आनंद बाबू?”
“अरे, इन लोगों ने हमें गुलाम बनाया था और हमारा देश लूटा। आप नहीं जानते राम लाल जी कि अंगेजों ने हमारे साथ क्या-क्या नहीं किया। अगर आपने हिस्ट्री पढ़ी होती तो आप को पता चलता कि ..”
“छोड़ो वो सब आनंद बाबू।” राम लाल ने मधुर आग्रह किया था। “किसने किसको क्या बनाया – ये सब तो लंबा यजुर्वेद है!” राम लाल ने हाथ झाड़े थे। उसे किसी की गुलामी-आजादी से कुछ लेना देना न था। “आप ने क्या बनना है – प्रश्न तो ये है!”
“क्या बनूं ..?” तुरंत ही पूछा था आनंद ने। फिर उसने राम लाल की मचलती आंखों को पढ़ा था। वहां कुछ था – था तो जरूर पर आनंद समझ न पा रहा था।
एक चुप्पी छा गई थी। दोनों के चाय पीने की चुस्कियां ही सुनाई दे रही थीं। आनंद विचार शून्य था। उसे तो कुछ भी नजर न आ रहा था। चारों ओर निराशा के अलावा वह और कुछ देख ही न पा रहा था।
“कुछ ऐसा सोचो आनंद बाबू जो ..” राम लाल ने चुप्पी को तोड़ा था। “जो – न सांप मरे न लाठी टूटे।” राम लाल ने जुमला कहा था।
आनंद अभी भी निराशा के मंझधार में ही खड़ा था।
“मेरा मतलब है कि ऐसा कुछ – जहां न गुलामी हो और न कोई घटिया काम जिसे आदमी करते-करते छोटा हो जाए।” राम लाल अब भूमिका बना रहा था। “सोचो कोई ऐसा काम?” राम लाल ने फिर से कुरेदा था राम लाल को।
“आप ही सोचें। आप ही बताएं कोई ऐसा काम ..”
“माने कि – मस्त काम!” राम लाल हंसा था। “कोई ऐसा काम जो आपके रुतबे के ही अनुकूल हो।”
“हां-हां। ऐसा ही कोई काम।” आनंद राजी हुआ लगा था।
“तो फिर कल से आप अंग्रेजी बोलना सीखने कल्लू के साथ चले जाएं।” राम लाल ने बात को अंतिम अंजाम दिया था। वह जान गया था कि अब आनंद उसकी बात मान लेगा।
“जैसा आप कहें।” आनंद ने भी बात को सर चढ़ा कर मान लिया था।
“गई मुर्गी दड़बे में।” मन ही मन राम लाल ने कहा था – और वह हंस पड़ा था।
आनंद भी उसके साथ हंसा था पर उसे तो राम लाल की हंसी का कारण तक पता न था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड