” आह.. ! आह..! उफ्फ..!” क्या करूँ..! सरसों का तेल और सेंधा नमक भी लगा कर देख लिया.. पर आराम ही नहीं आ रहा.. बहुत ही दर्द कर रहें हैं! ये नीचे के दाँत..! वही तो कल रात जो वो मसाले के चावल खा लिए थे.. न! लगता है! उन्हीं से इन्फेक्शन हो गया है.. मसूड़े तो पहले से ही तंग कर रहे थे.. अब इन हिलते हुए.. दाँतों में भी दर्द हो गया.. आज शनिचर के दिन.. शनि महाराज का ग़ुस्सा हम पर ही टूटना था..!”।
” आह..! आह..! उफ़्फ़.. ! ऐसा करते हैं! गरम पानी में नमक डाल सिकाई करके देख लेते हैं.. हो सकता है! शनिचर उतर ही जाए!”।
गरम पानी से सिकाई भी कर डाली थी.. और सारे घरेलू उपाय भी अब हो ही गए थे.. पर भगवान क़सम दाँत और मसूड़े में आराम आने का नाम ही नहीं ले रहा था… और तो कुछ नहीं! शनिचर ही भारी था.. शनिदेव का सीधा-सीधा प्रकोप लग रहा था.. हमें! क्या करते गाल पर हाथ धरे बरामदे में करहाने लगे हुए.. थे।
तभी अचानक से हमारी कुर्सी के ठीक सामने वाला दरवाज़ा खुल जाता है..
” क्या हुआ! आपको माँ! ऐसे कैसे गाल पर हाथ रखकर उदास और परेशान हो!”।
न चाहते हुए भी.. दांतों की सारी दास्ताँ बेटे आगे बता डाली थी.. बार-बार शनिदेव को कोस रहे थे.. पर शायद उनकी यही मर्ज़ी थी।
” मुहँ खोलो.!”।
बेटे ने आदेश दिया था..
” अरे! रहने दो! हो जाएगा ठीक..!”
” अरे! मुहँ खोलकर दिखाओ! कह रहें हैं!”।
बेटे की ज़िद्द के आगे एक न चली थी.. बस! कर दिया था.. बड़ा सा आ..!!”।
” अरे! बाप रे! आप के मसूड़े एकदम लाल हो रहें हैं! माँ..! और दाँतों का भी बुरा हाल है! पहले बोला था.. न! कि डॉक्टर को दिखा लेना! पर एक न सुनी थी.. अपने आगे किसी को गिनती ही कहाँ हो! मोटरसाइकिल निकाल रहें हैं! फ़टाफ़ट से नीचे आ जाओ..! डॉक्टर के पास चलना है! अभी और इसी वक्त!”।
अरे! सुनो..! चले जाएंगे हम अपने-आप..! रहने दो!”,
” नहीं! बेवकूफ़ बना देती हो! पर जाती नहीं हो!”।
” जल्दी आओ….!!”।
डर लगता है.. तुम्हारे संग मोटरबाइक पर बैठने में.. फलाँ-ढिमका दुनिया भर के बहाने करने की कोशिश कर डाली थी.. की डॉक्टर के पास न ही पहुँचा जाए.. तो अच्छा है! पर एक न चली.. बेटा जबरन मोटरसाइकिल पर बिठा.. डॉक्टर की क्लिनिक में जा पहुँचा था..
क्लिनिक में घुसते ही सामने लिखे स्लोगन पर हमारी नज़र जा पड़ी थी..
Your smile
Our passion
पढ़कर अच्छा लगा था.. पर इतने दर्द में क्या ख़ाक मुस्कुराते..
दर्द भरा गाल पकड़ कर बैठ गए थे.. डॉक्टर के सामने..
बस! फ़िर क्या था… बेटे ने हमारी चिंता करते हुए.. सारा किस्सा डॉक्टर के आगे गा डाला था.. डॉक्टर जी ने कुछ दवाओं सहित xray के लिए भी बता दिया था..मुहँ का xray कराने के लिए.. एकबार फ़िर हमनें टालमटोल करनी शुरू कर दी थी. डर जो बैठ गया था.. न जाने किस करवट शनि महाराज विराजमान होंगें।
पर वह भी हो ही गया।
डॉक्टर ने ट्रीटमेंट के लिए लगातार दो-दिन हमें अपनी क्लिनिक पर बुलाया था.. डरते-डरते और धड़कने बढ़ाते हुए.. अपना ट्रीटमेंट हमनें करवाया।
डॉक्टर की सही सलाह और ट्रीटमेंट से हमारे दाँतों और मसूड़ों में बेहद आराम आ गया था.. जिन शनिदेव को हम अपने ऊपर भारी लगाए बैठे थे.. उन्होंने ही हमारे बेटे और डॉक्टर साहब के रूप में हमारी मदद की।
एक बात तो हमारी समझ में यह आई थी.. कि ईश्वर से की गई दिल से प्रार्थना का फल अवश्य मिलता है..
और दूसरा जान है तो जहान है।
डॉक्टर के पास follow up के लिए जाने पर एकबार फ़िर हमारी नज़र क्लीनिक में लिखे.. उसी स्लोगन पर पड़ी थी..
Your smile
Our passion
जो हमनें तुरन्त ही बदल कर
My smile
My passion
में बदल दिया था।