धुंदली थीं पर

प्यारी यादें

छोटी थीं पर

न्यारी यादें

यात्रा करते

जब संग में

हम सब

रेल की खिड़की

पर चिपकते

थे जब

मईया हाथ से

लेकर पूड़ी

आलू के संग

मलते थे जब

छुक-छुक

यात्रा करते

आनी-जानी

जगहों को तकते

एक ही डिब्बे में

उछल-कूद भी

चलती 

मस्ती करते

यात्रा चलती

ऐसी प्यारी

यात्रा थीं

वो

जीवन का

अनोखा पृष्ठ

बन गया जो

धुन्दला सा है

पर प्यारा सा है

आज भी यह

यात्रा का पृष्ठ

न्यारा सा है।

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