अभी कोई भी बस स्टॉप नहीं आया था.. हमारी आर्मी स्कूल बस सिर्फ़ स्लो हुई थी,कि..

” अरे! भइया…! प्लीज चुप हो जाओ..! बिना मतलब आप क्यों विस्सल बजाए जा रहे हो! बस स्लो हुई है.. ब्रेकर है.. न!”

और काला चश्मा लगाए हमारे मोटे पेट वाले कंडक्टर भइया ने विस्सल बजानी बंद कर दी थी। और बस गति पकड़ आगे चली थी।

हम अपने स्कूल के ज़माने में आर्मी बस से ही स्कूल जाया करते थे.. हालाँकि स्कूल में सिविल बस भी थीं.. पर हम आर्मी बस से ही आते-जाते थे।

हमारी बस में ड्राइवर और कंडक्टर भइया का अनोखा मेल हुआ करता था.. कुछ न कुछ हमारे स्कूल जाते टाइम मुस्कुराने लायक हो ही जाया करता था..

अब इस विस्सल के वाकये को ही ले लीजिए..  बिना ही मतलब गाड़ी स्लो होते ही कंडक्टर भइया विस्सल बजाने लग जाया करते थे।

” क्या.. मेजर स्टॉप आए.. तभी विस्सल बजाओ न! स्पीड ब्रेकर पर गाड़ी धीरे की है.. मैने!”।

” ठीक है.. अब मैं विस्सल ही नहीं बजाऊँगा!”।

ड्राइवर भइया ने बड़े प्यार से गाड़ी साइड में रोक.. गर्दन पीछे कर..  शीशा हटाकर पीछे देखते हुए..कंडक्टर भइया को प्यार से समझा दिया था.. लेकिन अब तो तमाशा ही दूसरा हो गया था.. और जवाब में हमारे अनोखे कंडक्टर भइया ने विस्सल बजाने से ही मना कर दिया था।

” अरे! रोको भइया..!! हमारा स्टॉप आ गया..! बस रोको.. please!”।

हमारा स्टॉप आ गया था.. लेकिन  गाड़ी को रोकने के लिए.. अब तो ज़िद्द में विस्सल ही नहीं बजी थी.. और हमनें चिल्ला कर ही बस रुकवाई थी।

सच! अनोखे कंडक्टर भइया के साथ स्कूल बस में आने-जाने वाले मस्ती भरे वो दिन याद आ गए थे.. जब आज हमारे गेट पर त्यौहारी लेने चौकीदार भइया ने विस्सल बजाई थी।

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