हैलो! हैलो! हाँ! माँ! आप नमस्ते! कैसी हो आप! आज बहुत दिनों बाद आपकी आवाज़ सुन कर बहुत अच्छा लगा।”
“ मैं, ठीक-ठाक हूँ.. एकदम फर्स्ट क्लास! .. तू सुना! कैसी है, बेटा! तू.. बच्चे ठीक हैं.. तेरे!”।
“ हाँ! माँ! सब बढ़िया! बच्चे दोनों ठीक हैं.. आप बताओ! आपने तो बड़ी मुश्किल से याद किया, मैने आपके बारे में पता करने की बहुत कोशिश की.. पर न ही मुझे आपका ऐड्रेस ही पता चला.. और न ही कोई फ़ोन नम्बर ही किसी ने बताया था.. पर आपको कैसे पता चला.. कि मुझे आपकी बहुत याद आ रही है”।
“ अरे! स्वीटी! यहाँ अब बहुत ही बढ़िया सिस्टम हो गया है.. अब आप जिसे भी याद करते हैं.. उस इंसान से साल में एक बार ज़रूर बात कर सकते हैं”।
“ साल में एक बार ही क्यों! माँ! इन्होंने महीने वाला सिस्टम क्यों नहीं रखा…”।
“ अरे! क्या बतायूँ तुझे! सिस्टम तो हमनें सबनें मिलकर महीने वाला ही रखने को कहा था.. पर पता नहीं, स्वीटी! क्या हुआ बेटा! इन्होंने हमारी अर्ज़ी ही रिजेक्ट कर डाली”।
“ कोई बात नहीं माँ! चिन्ता वाली कोई बात नहीं है, आप सब मिलकर महीने का सिस्टम भी करवा लेना.. मान जायेंगे ये लोग!”।
“ और, बेटा! दामाद जी ठीक हैं न, कैसा चल रहा है, तेरा!”।
“ सब फिट है, माँ! आप सुनाओ.. आपको तो कोई परेशानी नहीं है, वहाँ पर.. सारी सुविधाएँ दे रखी हैं.. न आपको!”।
“ हाँ! हाँ! तू मेरी चिन्ता बिल्कुल भी मत करना.. मैं यहाँ मज़े में हूँ.. मुझे कोई भी परेशानी नहीं देते ये लोग! यहाँ पर हमें हमारे कर्मों के फल के हिसाब से वार्ड मिले हुए हैं.. जिसका जैसा कर्म फल.. उसको वैसा ही वार्ड देते हैं”।
“ कर्म फल क्या! माँ!”।
“ बेटा! यहाँ का जो हैड ऑफ द डिपार्टमेंट है, उसके पास एक फ़ाइल होती है.. जिसमें से वो बन्दे का नाम पुकारता चलता है, सभी लोग लाइन में लगे होते हैं.. जिस किसी का भी नाम पुकारा जाता है.. उसे आगे जाना होता है.. आगे जाने पर उस इन्सान के नाम के आगे उसके धरती पर किये गए कर्मों का लेखा-जोखा होता है.. जिसके हिसाब से हाथ में फ़ाइल पकड़े हुए हैड ऑफ़ द डिपार्टमेंट वाला यह आदमी वार्ड अलॉट करता चलता है.. जैसे कर्म वैसा ही वार्ड मिलता चला जाता है”।
“ आपका कैसा वार्ड है, माँ! इस आदमी ने आपके कैसे कर्म बताये थे!”।
“ हा! हा! हा!”।
“ अरे! क्या हुआ, माँ! कुछ गलत कह दिया क्या! इतनी ज़ोरों से क्यों हँसी तुम!”
“ अरे! नहीं! नहीं! तूने तो कुछ भी गलत न कहा है, मुझे तो इसलिये हँसी आ गई.. कि जब मुझे यहाँ लाने की बात चली थी, तो इन लोगों ने मुझे इसी आदमी को लेने भेजा था। अब स्वीटी! क्या बताऊँ बेटा! तुझे! बड़ा ही अच्छा इंसान है! यह भी.. मुझे सारे रास्ते इसने कोई भी तकलीफ़ न होने दी थी.. बड़े ही आराम से यहाँ तक लेकर आया था, ये मुझे। अब सारे रास्ते तू ही बता! मैं करती भी क्या! सोचा इससे ही गप्पे हाँकती चलूँ! इस बन्दे ने मुझे हमारे यहाँ तक के सफ़र में ही सारे नियम क़ानून बता दिये थे। बातों ही बातों में तू तो जानती ही है.. मैं भी कहाँ कम पड़ती हूँ.. बस! पूछ बैठी थी.. मुझे कैसा वार्ड मिलेगा.. थोड़ा सा आईडिया दे सकते हैं, क्या आप!। मुझे देखकर मुस्कुराते हुए बोला था.. चिन्ता मत कीजिये आँटी!! आपको देखकर आपके कर्म तो अच्छे ही लग रहे हैं.. बाकी तो मैं वहीं पहुँचकर फ़ाइल में आपके नाम के आगे लिखी हुई कर्मो की लिस्ट पढ़कर ही बता सकता हूँ। अब बेटा! क्या बताऊँ, उसकी बात सुनकर मैंने तो उसी वक्त डिसाइड कर लिया था.. आराम से बैठ जा! कुसुम वर्मा! अब जो भी हो देख लेंगें। पर स्वीटी! लड़का बड़ा अच्छा था.. बेचारा सारे रास्ते चाय-पानी और खाने की पूछता हुआ चल रहा था। भला इंसान लग रहा था। पर तू तो जानती ही है.. मेरे बोलने की आदत.. पूछे बगैर रह ही न पाई थी… और हमारा स्टेशन आने ही वाला था.. कि मैने अपने-आप से कहा था.. चल! कुसुम वर्मा पूछ ही डाल.. और बेटा! आप यहाँ कैसे! अभी तो आपकी उम्र भी ज़्यादा नहीं है! लड़का मेरे सवाल पर थोड़ा घबरा सा गया.. और उदास भी हो ही गया था.. फ़िर बेचारे ने अपने आप को संभालते हुए.. बडी हिम्मत के साथ मुझे जवाब दिया…”।
“ बस! आँटी क्या बताऊँ .. अब आपने पूछ ही लिया है, तो!.. मैं एकबार सुबह दफ़्तर के लिये ही नकल रहा था.. पीछे से बड़ी गाड़ी वाला बुरी तरह से मार के भाग गया था.. पास खड़े हुए लोगों ने फटाफट एम्बुलेंस भी बुलवाई.. मुझे अस्पताल भी पहुँचा दिया था.. जब तक घरवाले पहुँचे.. खून बहुत बह चुका था.. और कोई और रास्ता न होते हुए डॉक्टरों को मुझे यहाँ पर शिफिट करना पड़ गया था.. आपके आने से थोड़े दिन पहले ही तो मेरी भी धरती लोक से यहाँ पर शिफ्टिंग हुई है।पहले इन्होंने मुझे किसी और वार्ड में रखा हुआ था.. नाम तो मेरा ही पुकारा गया था.. पर गलती से किसी और के कर्मों की लिस्ट पढ़ दी गई थी, इसीलिये मुझे ग़लत वार्ड में कुछ दिन रहना पड़ा था.. फ़िर मेरे ही साथ रह रहे, एक भले इंसान ने हैड ऑफ द डिपार्टमेंट में जाकर कंप्लेंट फ़ाइल की थी.. कि ये लड़का लगता तो अच्छा है.. इसके कर्मों की लिस्ट फ़िर से चैक करो! ज़रूर कोई गड़बड़ है। जब मेरे नाम के आगे लिखी हुई कर्मों की लिस्ट चैक हुई.. तो पता चला कि मैं तो किसी और का ही किया भोग रहा हूँ। उन लोगों ने अपने किये पर मुझसे माफ़ी माँगी.. और मुझे मेरे कर्मो के अनुसार हैड ऑफ द डिपार्टमेंट बना दिया.. तब से अब तक मज़े में हूँ, और अब हैड ऑफ द डिपार्टमेंट होने की वजह से साल में दो बार अपने घर पर अपनी बीवी, बच्चे और बूढ़ी माँ से भी बात कर लेता हूँ.. बहुत याद करते हैं, मुझे!”।
“ बस! स्वीटी! बेटा! गप्पे हाँकते हुए हमारा भी स्टेशन आ ही गया था! पर तुझे क्या बताऊँ इस लड़के ने मेरी बहुत मदद की.. मुझे सामान को बिल्कुल भी हाथ न लगाने दिया था.. आराम से यहाँ तक मुझे पहुँचा दिया”।
“ माँ! इन लोगों ने तुम्हारे साथ क्या किया था.. मेरा मतलब है, कि तुम्हारे पहुँचने के बाद तुम्हें कब वार्ड अलॉट हुआ था”।
“ अरे! तू यही कहानी मत पूछ! जैसे ही मैं पहुँची सामान वगरैह रखा!.. तुरन्त ही वहाँ पर अनाउंसमेंट हो गई.. मज़ा ही आ गया था.. अब देख, ले! आज ही पहुँची थी, बस! चाय का घूँट ले ही रही थी.. जो ये लोग हर किसी को देते ही हैं.. बाकी सब तो कर्मों के हिसाब से ही डिसाइड होता चलता है.. मेरे साथ बैठे लोग फ़टाफ़ट अपना वार्ड पता करने के लिये, वहाँ लग रही लाइन में लगने के लिये भागे थे.. अब सभी को जल्दी रहती ही है, वार्ड पता चले, तो अपना सामान वगरैह सेट करके आराम से आगे का सोचें। बस! तो मैने भी आलास न किया था.. लग गई लाइन में.. अब तू देख मेरा लक! नम्बर भी फ़टाफ़ट आ गया और नाम बोला गया.. कुसुम वर्मा!! मैं आगे पहुँची.. तो बेटा! यही लड़का जो मुझे यहाँ तक लाया था.. सबके कर्म पढ़ता चल रहा था.. और एक बुज़ुर्ग से व्यक्ति होंगें तेरे नानाजी की ऐज के.. वार्ड अलॉट करते चल रहे थे। नाम बोलते ही मैं आगे जाकर तुरन्त ही खड़ी हो गई थी.. कुसुम वर्मा!! आप ही हैं! मैने कहा था.. हाँ! जी! स्वीटी! वो जो बुज़ुर्ग थे, न.. जो वहाँ बैठकर वार्ड अलॉट कर रहे थे.. लड़के ने जैसे ही मेरे कर्मो की लिस्ट पढ़कर ख़त्म की थी.. उन्होनें मुझे एक प्यारी सी स्माइल देते हुए.. वार्ड अलॉट कर दिया.. और एक पास खड़ी हुई लेडी को ऑर्डर भी दे दिया था.. जाओ! कुसुम का सामान इसके वार्ड तक पहुँचा दो.. लाइट पानी सब चेक कर लेना वहाँ की”।
“ कैसा है, माँ! आपका वाला वार्ड अन्दर से!”।
“ चिन्ता मत कर तू! बढ़िया बेड लगा रखा है, खिड़की के पास स्टडी टेबल भी है.. अपना सुबह उठ कर पहले थोड़ा यहाँ पार्क में घूम आती हूँ.. आकर पूजा-पाठ कर लेती हूँ, अपना। ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर सब टाइम से कमरे में ही आ जाता है, उसकी चिन्ता नहीं है, मुझे। और सुना बेटा! तेरे पिताजी ठीक हैं.. तू जो पिताजी ने काम कहा था, कर तो रही है, न!”।
“ हाँ! माँ! पिताजी की तो आप बिलकुल भी चिन्ता मत करना.. मज़े में हैं.. सभी बच्चे और बड़े उनका बहुत ख़याल रखते हैं। अरे! हाँ! माँ! मैं तो आपको गप्पों में बताना ही भूल गई.. कल ही तो भइया और गुल्लन ने पिताजी को राइटिंग टेबल के लिये नई और बहुत सुन्दर कुर्सी लाकर दी है, अब आप इन लोगों से कह कर एक स्मार्ट फ़ोन भी ख़रीद ही लो.. आपके कर्म बहुत अच्छे हैं, बिल्कुल भी मना न करेंगें”।
“ हा! हा! हा! चल ठीक है, कह कर देखूँगी, मान जाएँगे तो!”।
“ पर अगर स्मार्ट फ़ोन की अर्ज़ी मंज़ूर हो गई, तो फ़ोन चलाओगी कैसे! अब वहाँ तो तुम्हारे साथ कोई है, नहीं!”।
“ आराम से बैठ तू! फ़ोन तो मिलने दे! है.. एक लड़का मेरे कमरे में जिसकी ड्यूटी है.. चटक सा है.. उसी से फ़ोन दिखवा लिया करूँगी”।
“ तो ठीक है, फ़िर जैसे ही तुम्हारे पास नया फ़ोन आ जायेगा.. मैं तुम्हें सारी फ़ोटो व्हाट्सएप कर दूँगी”।
“ माँ! याद है, तुम ने मुझे लिखने के लिये कितना कहा था.. पर मैंने तुम्हारी एक न मानी थी.. पर माँ! तुम्हारे जाने के बाद में अब लिखने लगी हूँ.. कानू के बारे में बहुत कुछ लिखा है, मैने.. सब तुम्हें सैंड कर दूँगी. और फ़िर जब अगली बार फ़ोन पर बातचीत करने का नम्बर लगे तो बताना कैसा लिखा है, मैंने!”।
“ चल! अच्छा! है, तेरे पिताजी खुश हो गए होंगें.. पर बेटा! स्वीटी! इस बार तुझसे बातें कर लीं.. अगली बार तो तेरे पिताजी के पास ही फ़ोन लगाऊँगी.. बहुत दिन हो गए हाल-चाल कहाँ पूछा है, उनका.. और! तेरी डॉगी ठीक है! खूब मन लगाती होगी तेरा!”।
“ हाँ! हाँ! खूब खेलती- कूदती है, और पहले से प्यारी भी हो गई है, उसी पर तो लिखती रहती हूँ”।
“ नानाजी, नानीजी और मौसीजी और हाँ! छोटे मामाजी सब कैसे हैं.. माँ!
“ एक दम बढ़िया! तेरी मौसीजी का कमरा तो मेरे साथ ही दो कमरे छोड़ कर ही है.. कभी वो आ जाती है, मेरे पास! कभी मैं चली जाती हूँ.. बढ़िया गप-शप्प हो जातीं हैं.. हम दोनों बहनों की। और बेटा! रही तेरे नानाजी, नानीजी और मामाजी, मेरे दादाजी की बात.. तो वो सब तो यहाँ के सामने वाली बिल्डिंग में हमसे थोड़ा सा बैटर वार्ड में है.. अब देखो! इन लोगों की मर्ज़ी रही तो मैं और सुमन भी वहीं पर शिफ्ट हो जायेंगे। पर तू चिन्ता बिल्कुल मत कर मैं और तेरी मौसी पैदल-पैदल चलते हुए.. मम्मी, पापा और बाबा से मिल आते हैं.. अरे! हाँ! स्वीटी! अब तो हमारे कमरों में T.V भी लगवा दिये जाएँगे, तो बस! मौज है, बेटा!”।
“ माँ! जब आप जानती थीं, कि आपका रिजर्वेशन हो चुका है, और आपका जाना तय है, तो आपने मुझे बुलवाना ज़रूरी क्यों नहीं समझा! क्या आप मुझसे मिलना ही नहीं चाह रहीं थीं”।
“ अरे! नहीं! इतना मत सोचा कर तू! अब सब इतना जल्दी में हो गया था, कि मुझे खुद भी पता नहीं चल पाया.. और बेटा! बिल्कुल टाइम ही नहीं मिला.. तेरे आने का इंतेज़ार करती तो ये ट्रैन मिस हो जाती.. और फ़िर इनका बंदा तैयार खड़ा था.. अब ऐसे अच्छा थोड़े ही लगता है। पर तू चिन्ता मत करना, और मन में कुछ मत रखना.. सुनी! अपना और बच्चों का ख़याल रखना। देख! घंटी बज रही है, फ़ोन रखने का टाइम हो गया.. खुश रहना देख! ले! आज कितनी देर गप्पें मारी हैं.. मैंने तेरे साथ.. इस बात पर तो तेरे पिताजी भी नाराज़ होंगें, और कहेंगे.. मुझे छोड़ दिया.. और उस मोटी लड़की से तूने पहले ही बात कर ली। चल रख दे बेटा! फ़ोन अब घंटी और तेज़ हो गई है, नहीं तो मुझे जुर्माना भरना पड़ेगा। अच्छा! बेटा! तू अपना और बच्चों का ध्यान रखना.. मेरी चिन्ता मत करना मैं बिल्कुल ठीक हूँ। bye!!”।
“ अच्छा! माँ! ठीक है! नमस्ते! Bye!!”।
घंटी बहुत ज़ोर से बजने लगी थी.. ऐसा लग रहा था.. मानो कान के पर्दे ही फट जाएँगे। और अचानक से मेरी नींद खुल गई थी.. “ अरे! यह क्या फ़ोन की घंटी नहीं! यह तो घड़ी का अलार्म बज रहा था.. कान पर। यानी मैं सपना देख रही थी, और माँ ने आज सपने में आकर मुझसे मुलाकात करी। चलो! अच्छा है, सपनों में ही सही माँ! आयीं तो सही मुझसे मिलने”।
हमारा शरीर केवल मशिनिरी की तरह होता है, जब तक मशीन के कल-पुर्जे ठीक से काम करते हैं.. तब तक ठीक से चलता है.. फ़िर यह मशीन ख़राब हो नष्ट हो जाती है। लेकिन इसमें परमात्मा द्वारा डाली गई आत्मा हमेशा अमर रहती है। जीवन तो नश्वर है.. पर आत्मा अमर है.. हमारे रिश्ते उस आत्मा के साथ अमर होते हैं, और सदा ही इस जहाँ में रहते हैं। इसलिये “ माँ! मैं जानती हूँ, कि तुम यहीँ कहीँ हो.. तुम कहीँ भी नहीं गई हो! केवल तुम्हारे शरीर ने हमसे अलविदा बोला है.. पर तुम्हारी आत्मा और तुम्हारा हमारे साथ रिश्ता अमर है.. और रहेगा भी। तुम्हीं हमेशा के लिये मेरी माँ रहोगी और मैं तुम्हें हर पल याद करने वाली तुम्हारी बेटी।