“कितनी प्यारी है। हाऊ स्वीट! . भइया! ये यहीं रहती है.. क्या..? और बच्चे कहाँ हैं!”।
बिटिया को स्कूल छोड़ने के लिए बस स्टॉप पर खड़ी मैने.. सामने कोठी मे चौकीदार के साथ प्यारी सी पप्पी को खेलते देख पूछा था।
भूरे और सफ़ेद रंग की यह puppy वाकई में बहुत ही नटखट और प्यारी थी।
” नहीं! बस.. यही है! दूध वाले के संग आ जाती है.. और खेलती रहती है”।
चौकीदार का कहना था।
क़िस्सा आज से दो-चार साल पुराना है।
बस! फ़िर हम उस प्यारी सी पप्पी के चक्कर में थोड़ा जल्दी बस स्टॉप पर जाने लगे थे। और वो हमें रोज़ चौकीदार भइया के पास इसी तरह से खेलती-कूदती दिखने लगी थी।
उसका वो खेलना, नटखटपन और प्यारा सा चेहरा कुछ मन को भा गया.. और उसके प्यारी सलोनी सी सूरत पर फ़िदा हो.. हम उसे टुक-टुक कहकर बुलाने लगे थे।
अब तो टुक-टुक कहते ही सडक पार कर चौकीदार को छोड़ हमारे पास खेलने आने लगी थी।
स्कूल की गाड़ी आने तक.. बिटिया तो टुक-टुक को गोद में उठाकर ख़ूब खेला करती थी।
टुक-टुक का यूं सड़क पर मिलना, उसे प्यार करना और उसके साथ खेलना, रोज़ के routine में आ गया था।
अचानक एक दिन ज़बरदस्त तूफ़ानी बारिश के कारण हम टुक-टुक को लेकर घबरा गए..” न जाने कहाँ होगी!’।
छाता लेकर भागे, तो पाया कि.. पीछे वाले खाली मकान में मस्त खेल रही थी। बस! लपक कर गोद में उठा, प्यारी टुक-टुक को अपने साथ घर ले आए थे। उस तूफ़ानी रात में टुक-टुक को हमने अपने साथ ही रखा था।
हमारे साथ-साथ टुक-टुक अब पूरी कॉलोनी की प्यारी हो गयी थी।
जहाँ मन करता वहीं बैठने और रहने लगी थी।
कुछ दिन पहले ही किसी कारण से टुक-टुक हम सब की आंखें नम कर चली गई।
सच! पूरी कॉलोनी में टुक-टुक की याद में शोक की लहर आज भी है।
बाहर निकलते ही हर छोटे puppy को देख, मन प्यारी टुक-टुक को ही ढूंढ़ता है।