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टिकिट चेकर

ticket checker

काम के सिलसिले में मुझे अक्सर बाहर जाना पड़ता है .. मार्केटिंग जॉब है. इस बार जोधपुर जाना था. पहली बार जा रहा था .. मेरे साथ मेरे एक कोलिक भी थे.

इन दिनों बच्चों के एक्साम्स चल रहे हैं तो रिसर्वेशन आसानी से मिल गया. दिल्ली सराए रोहिल्ला से जोधपुर लगभग ११ घंटे का रास्ता है. पहली बार जा रहा था तो काफी उत्साहित था. जोधपुर के विषय में कई वीडियो भी देख डाले की काम ख़तम होने के बाद क्या-क्या देखना है ..

रात को ११.३० की ट्रेन थी डेल्ही केंट स्टेशन से .. घर से ही खा-पी कर ट्रेन पकड़ ली. सुबह अगले दिन ११ बजे जोधपुर पहुँच गए.

जोधपुर स्टेशन बहुत ही साफ़-सुथरा है. वेटिंग रूम में नहा-धो कर रेलवे की कैंटीन में खाना खाया .. खाना बहुत ही अच्छा और घर जैसा ही था. अब हम काम के लिए फ्री थे.

मीटिंग में पहुंचे. प्रोडक्ट्स और मार्केटिंग प्लान पर ट्रेनिंग देनी थे .. पूरा दिन ही लग गया वहां पर. रुकने का प्रोग्राम नहीं था. शाम ६.४५ की दिल्ली वापसी की ट्रेन थे तो मीटिंग के बाद फटाफट स्टेशन पहुंचे. ट्रेन में खाने की कोई विशेष सुविधा नहीं थी, इसलिए एक बार फिर स्टेशन पर ही खाना खाया. शाम को खाते वक्त न जाने दांतों में क्या फँस गया .. शायद जीरा या और कुछ .. तब तो ज्यादा पता नहीं लगा पर थोड़ी देर बाद दांतों में दर्द होने लगा.

ट्रेन का टाइम हो रहा तो भाग कर ट्रेन पकड़ी. सोचा था दन्त का दर्द थोड़ी देर में ठीक हो जायेगा .. पर समय के साथ दर्द बढ़ने लगा. अपने साथी से पूछा .. उसके पास भी दवाई नहीं थी. आस-पास के अन्य सह-यात्रियों से भी पूछा .. किसी के पास भी दवाई नहीं थी.

बेचैनी बढ़ रही थी और कोई उपाय भी नहीं सूझ रहा था .. लगा आज की रात तो बस यु ही टहल-कदमी में जाएगी. यकीं करें दांत का दर्द बहुत बेचैन कर देता है.

टिकेट चेकर भी आ पहुंचा .. और मुझे देख कर पुछ बैठा – कोई प्रॉब्लम?

मेने उसे अपनी पूरी राम-कहानी कह सुनाई. उसने फ़ोन निकला और दो घंटे आगे स्टेशन पर फ़ोन कर अपने किसी साथी को दवाई का प्रबंध करने के लिए कहा और आगे चला गया. मुझे उसपर कोई ज्यादा भरोसा नहीं था ..

दर्द बहुत ज्यादा हो रहा था. सोचा अब क्या करूँ .. फिर कुछ सोच कर गूगल बाबा की शरण ली. कुछ दांत के दर्द को कम करने के लिए एक्यूप्रेशर पॉइंट्स की जानकारी जुटाई ..

ज्यादा तो नहीं पर दो-तीन पॉइंट्स पर प्रेशर दे कर कुछ आराम तो मिला .. पर नीद नहीं आ रही थी. गाल दबा कर, कम्बल ओढ़ कर लेट गया.

थोड़ी देर में किसी ने आवाज दी – आशीष वर्मा जी ..

मै उठ बैठा .. देखा टिकेट चेकर है. वो बोला – लो ये दो खुराक हैं दवाई की, एक अभी ले लो और एक सुबह ले लेना ..

मेरे धन्यवाद कहने से पहले वो जा चूका था .. दवाई ली और १५-२० मिनट में आराम आ गया.

चैन की नीद सोया .. और जब आंख खुलीं तो ट्रेन दिल्ली केंट पर पहुँचने वाली थी.

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