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ठहाका

Thahaaka

बात गर्मियों की छुट्टीयों की है.. घर जाना हुआ था। हर गर्मियों की तरह, नानी घर में पूरी रौनक जमी हुई थी।

हर साल की तरह सारा परिवार इकठ्ठा हो, दोपहरी में बिस्तर पर गप्पे हाँक रहा था.. माँ, हमारी नानी और बच्चे सभी थे।

कि अचानक हमारे वहीं पास में रखे.. लैंडलाइन फ़ोन की घण्टी बज जाती है… 

अब माहौल में गप्पों का रंग ही इतना चढ़ा होता है, कि किसी के कानों में फ़ोन की घण्टी सुन जूँ तक नहीं रेंगती।

पर हमारी नानी कई बार घण्टी बजने पर फ़ोन उठा लेती हैं.. 

और कान में फ़ोन लगाकर कुछ सेकंड बाद ही,” ठीक है.. बेटा!”।

नानी का यूँ कान में फ़ोन लगाना.. और ठीक है.. बेटा! का जवाब अचानक ही सबका ध्यान नानी की ओर केंद्रित कर देता है..

और नानी से पूछने पर, कि कौन था… फ़ोन पर!

” अरे! बेटा पहले उठाने पर तो कोई बोला नहीं.. फ़िर छोटू ने जब दोबारा नंबर मिलाया.. और मेरे कान पर रखा, तो एक औरत दूसरी तरफ़ से बोली,” थोड़ी देर बाद लगाना, अभी वयस्त हैं!”।

” मैने भी ठीक है! कह दिया”।

नानी का कस्टमर केअर की आवाज़ पर इस जवाब ने माहौल की ठहाकों में बदल दिया था..

आज भी फ़ोन पर कोई भी voice रिकॉर्डिंग सुनते ही ठीक है! निकल ही जाता है। 

और एकबार फ़िर मुस्कुराहट आ ही जाती है।

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