परफेक्शन

परफेक्शन

“पता नहीं! अपने आप को क्या समझते हैं.. थोड़ा सा भी कुछ नहीं आता!  मैं तो ऐसे करती.. कि सब बेहद ख़ुश हो जाते।” असल में होता क्या है.. कि हम अपनों में.. और रिश्तों में कमियाँ ही निकालते रहते हैं.. यानी के परफेक्शन ढूंढते हैं। जीवन का आधा क्या पूरा वक्त...