कहिए फलों को हाँ!
किसान squash है.. जहाँ..!!
कहिए फलों को हाँ..!!
किसान squash है… जहाँ..!!
कुछ याद आया, बहुत पहले.. दूरदर्शन पर यह विज्ञापन आया करता था।
हमें तो बस इतना सा ही याद है.. कि यह विज्ञापन orange squash का हुआ करता था.. और मोटे-मोटे ताज़े बढ़िया नारंगी से संतरे दिखते थे, इस विज्ञापन में।
हमारे भी घर में orange squash और रूहाफ़ज़ा वगरैह हमेशा रहा करता था । squash में दो तीन और भी flavours रखा करते थे.. हमारे घर में। महमानों के आते ही काँच के सुंदर ग्लास में बना, झट्ट से serve कर दिया करते थे।
मज़ा तो हमें भी बहुत आया करता था, दोपहर में माँ से नज़र बचा.. ग्लास में घोल-घोल कर पीने में। वैसे मना नहीं था.. पर फ़िर चुपके-चुपके वाला मज़ा ही कुछ और हुआ करता था।
नानी के घर जाना होता, तो वहाँ भी हमारे मामा ख़ूब लाड़ जताया करते थे, हमारे लिए बाल्टी भर-भर ठंडा और मीठा शरबते आज़म और रूहाफ़ज़ा बना-बना।
सच! ठंडे और मीठे और रँगीन शरबतों में घुला हुआ वो बचपन बड़ा ही प्यारा और इन्हीं शरबतों जैसा रँगीन और मीठा था.. जो आज मौसम में चलते बढ़िया ताज़े संतरों को देख, फ़िर ताज़ा हो आया था।