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स्नेह यात्रा भाग सात खंड सोलह

sneh yatra

अचानक एक स्पोर्ट्स कार में जो लाल गहरे रंग की है, लड़के लड़कियों का एक हुजूम हमारे पास से सांय करके गुजरा है। उन सब ने चीख कर कहा है – हाय! देयर? सभी के हाथ हवा में पल भर उठ कर झूल गए हैं। सभी ने बहुरंगी पोशाकें पहनी हैं और लड़के तथा लड़कियों के भेद जान लेना दुर्लभ सी कोई बात लगी है।

“कौन हैं ये लोग?” मैंने सोफी से पूछा है जो अभी भी कोई गमजदा भाव समेटे कार चला रही है।

“वीकेंडर्स!” सोफी ने संक्षेप में बता दिया है पर मैं खुश नहीं हूँ।

“पर लगते नहीं कि नौकरी पेशे वाले लोग होंगे?”

“यहां स्टूडेंट, क्लर्क और एक होटल के बैरे में कोई भिन्नता नहीं होती। आम तौर पर स्टूडेंट ऐसे वैसे काम पार्ट टाइम जॉब के रूप में करते हैं और रोजी कमाते हैं।”

“ओह हां! मैं तो भूल ही गया था कि ..” मैंने अपनी झेंप उतारी है।

“चलो तुम्हारी मुलाकात करा देती हूँ।” कह कर सोफी ने गाड़ी को एक होटल की ओर मोड़ दिया है।

होटल एक अच्छा खासा ठिकाना है जहां हर सुविधा उपलब्ध है। कार को पार्किंग में लगा कर हम लोग सामने के लॉन में बैठने के लिए चल दिए हैं। वहीं लड़के लड़कियों का हुजूम सारे होटल को सर पर उठाए नाच रहा है। मुझे अपने विगत के वो आवारा पल धमकाने लगते हैं। मैं उनके खिलाफ बोलने से झिझका हूँ। लगा है – एक लकीर के आगे वाले छोर पर बाबा खड़े हैं। बीच में मैं हूँ और ये अधेड़ युवक युवतियां अभी स्टार्ट पॉइंट पर ही हैं। तो क्या मैं आधा रास्ता चल चुका हूँ?

“हाय! देयर?” सोफी ने इन लोगों को आमंत्रित किया है।

“हाय!” सभी ने हम लोगों का अभिवादन किया है।

“मीट माई फ्रेंड!” सोफी ने सभी से मेरा परिचय कराया है।

“इंडियन ..?”

“यस!” मैंने उत्तर में स्वीकारा है।

कुछ एक थोड़ा हिल गए हैं वरना सभी ने एक अगाध प्रेम जैसी कोई भावना व्यक्त की है। कुछ ने बनावटी तौर से मुझे प्रभावित करना चाहा है तो कोई प्रश्नों के प्रेतों से मुझे आहत करता रहा है।

लग रहा है – इन लोगों के अंदर युवा हृदय की एक अबाध गति से बहती नदी उफन रही है जो कगार खाने को आतुर है और एक ही सांस में हर चढ़ाई पार करना चाहती है। रुकना अभी तक नहीं सीखा है। हर एक कुछ बनना चाहता है। कुछ करना चाहता है और कुछ कर पाया है। और शेष रहा अब करेगा। कोई भी जीवन लक्ष्य ही नहीं, कोई भी युवा जीवन नीरस नहीं और न कोई किसी पर आधारित या भार बोझ बना है। ये सब मुझे इसी स्वचालित वाटिका में खिले फूल लगने लगे हैं जिन्होंने अपने विकास के जुम्मे खुद संभाल लिए हैं। ये अब स्वयं ही खिलेंगे, महकेंगे और जीएंगे एक स्वतंत्र और स्वनिर्मित जीवन।

इस हुजूम में खोया सा मैं कोई सीख लेता रहा हूँ। यही हमें अपने देश में करना होगा – एक वाक्य है जो कई बार जबान पर आ आ कर टूट गया है। पता नहीं क्यों नकल करने से मैं हमेशा घबराने लगता हूँ।

“ये हैं – रॉबर्ट और मिसेज रॉबर्ट!” सोफी ने मेरा परिचय सेन फ्रांसिसको की एक दंपति से कराया है।

“हेलो दलीप!” रॉबर्ट ने मुझे नाम से पुकारा है। “आप के आने का संदेश मिल गया था।” मिसेज रॉबर्ट ने बताया है।

एक अजीब सी गहमा गहमी से वातावरण भर गया है। मिसेज रॉबर्ट और सोफी घुसुर पुसुर बतियाती रही हैं तो मैं रॉबर्ट के कई पैने और नुकीले सवालों के जवाब खोजता रहा हूँ।

“क्या वहां वास्तव में इतनी गरीबी है कि .. आई मीन ..?”

“गरीबी तो है पर ..” मैं चाह कर भी रॉबर्ट को अपने अमीर होने की दलील नहीं दे पाया हूँ।

आज पहली बार अहसास हो रहा है कि मेरा करोड़पति होना बाहर निकल कर कोई मतलब नहीं रखता। यहां मैं – दलीप दी ग्रेट, न रह कर इंडियन बन गया हूँ। देश का एक प्रतिनिधि लगने लगा हूँ ओर लगा है जैसे मैं एक ढेर में से पकड़ी मिट्टी की एक जिन्स हूँ जिसे निरखने परखने का अधिकार सभी को है। समूचे राष्ट्र का उन्नत होना ही मात्र एक उत्तर है – मैं सोच पाया हूँ।

“मुझे तो हिन्दुस्तान से बहुत दिलचस्पी है। खास कर वहां का बहु धर्मी, बहुरंगी और सेक्यूलर सोसाइटी देखने का मन है।”

“तो आइए न कभी!” मैंने निमंत्रण दिया है।

“जरूर आऊंगा!” रॉबर्ट ने स्वीकारा है।

लोगों को अब भी हिन्दुस्तान में दिलचस्पी है। अब भी कुछ अच्छाइयां हम में विद्यमान हैं ओर अब भी ऊपर उठने का शाश्वत इरादा मरा नहीं है। गरीबी तो एक अड़चन है – एक दूर की जाने वाली बीमारी है जिसका विकल्प मेहनत और उद्योग हो सकता है। फिर इस गरीबी को गले बांधे और दुनिया भर का कॉमप्लेक्स लिए हम क्यों बैठे हैं?

“मुझे तो कश्मीर देखने की चाह है!” मिसेज रॉबर्ट ने अपनी मांग पेश की है।

“आप आइए! जरूर दिखाएंगे कश्मीर!” मैंने बड़े ही सभ्य ढंग से कहा है।

“अच्छा! कल का क्या प्रोग्राम है?” रॉबर्ट ने सोफी से पूछा है।

“दलीप को घुमाना फिराना है बस!”

“कल स्टॉकटन चलते हैं! गुरु द्वारा है!” मिसेज रॉबर्ट ने सुझाया है।

“ओ यस, चलेंगे। आप लोग भी साथ चलेंगे न?” सोफी गहक कर बोली है।

“इफ यू डोन्ट माइंड ..” रॉबर्ट ने मुझे देख कर मजाक किया है।

“वैलकम!” सोफी ने और मैंने हंसते हंसते कहा है।

“और बच्चे ..?” मिसेज रॉबर्ट ने पूछा है।

“दे आर मोस्ट वैलकम!” मैंने अपना मत सबसे पहले दिया है।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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