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स्नेह यात्रा भाग सात खंड सत्रह

sneh yatra

“स्टॉकटन से कुछ दूर ये हिन्दुस्तानियों की ही बस्ती है। ये लोग खास कर पंजाबी हैं। बड़े ही दिलचस्प लोग हैं!” मुझे मिसेज रॉबर्ट ने बताया है।

“पंजाबी बहुत दिल वाले होते हैं।” मैंने समर्थन किया है।

“तुम भी पंजाबी हो क्या?”

“नहीं!”

“तो ..?”

“यू पी का भइया हूँ!” मैंने इस तरह कहा है कि अन्य सभी मेरे मजाक का छोर पकड़ लें।

हम सब हंसते रहे हैं। बीच बीच में मैं हिन्दुस्तानियों के प्रांतीय गुण विशेष वर्णन करने में व्यस्त रहा हूँ। सभी बड़ी उत्सुकता से मुझे सुनते रहे हैं। सोफी बीच बीच में मुझे गलती करने से बचाती रही है।

“साउथ इंडियन खाने की बजाए मिर्च खाता है तो बंगाली फिश के बगैर जिंदा नहीं रहता। साउथ इंडियन को दूध पिलाओ तो सजा जैसी काटता है तो नॉर्थ इंडियन को रसम पिलाओ – जुकाम लग जाता है।” आदि इत्यादि बातें करता मैं सबको खूब हंसाता रहा हूँ।

“यू आर इंटरेस्टिंग माई डियर!” रॉबर्ट ने एक आशीर्वाद जैसा मेरे माथे मढ़ दिया है।

“सुना है वहां कुछ लोग मीट नहीं खाते?”

“हां! हिन्दुओं – खास कर ब्राह्मणों के घरों में इसे पाप समझा जाता है।”

“ओह नो – इट्स नॉट ए सिन!” मिसेज रॉबर्ट ने आपत्ति की है।

“अहिंसा – यू नो ..?” मैंने पूछा है।

“यस यस! द वन विच गांधी टॉट!”

“यस! वही अहिंसा लोगों को मांस खाने से रोकती है।”

“बट .. इट्स ए काइंड ऑफ फूड!”

“आप ठीक कह रही हैं! कभी हमारे देश में खाद्यान्न प्रचुर मात्रा में पैदा हुआ करते थे तब इसकी जरूरत लोगों को नहीं थी। पर अब तो ..”

“लोग मांस खाते हैं!”

“खाने लगे हैं।” मैंने बात को अंतिम मोड़ पर छोड़ दिया है।

क्या मांस खाना भी कोई कला है? क्या ये भी गौरव की बात है कि एक अमेरिकी एक बार में एक किलो मांस खा लेता है? क्या मांस न खाना हमारे लिए अभिशाप है? क्या वास्तव में ही ये पाप है? संसार की समूची जनता का हिन्दू जाति एक सूक्ष्म भाग है। अगर मांस खाना पाप होता तो संसार अब तक रसातल में पहुंच जाना चाहिए था। क्यों कि इस देश में मांस खाना आम भोजन समझा जाता है। मुझे ये दलील खोखली लगी है और लगा है ये भी पुरानी पीढ़ियों से जुड़ी एक बासी बात है – जो अब त्याज्य है। शरीर को आवश्यक खुराक देना ही धर्म है, पुण्य है और एक पंगु संस्कृति का उदय रोकता है। अमेरिका में छह फुट का जवान आम मिलता है जबकि हमारे यहां इंसान बौना लगने लगा है।

आज इतवार का दिन है। मिस्टर और मिसेज रॉबर्ट छुट्टी पर हैं तथा बच्चों की भी छुट्टियां हैं। घर में एक अपूर्व आनंद की लहर सी किसी दिग्गज की तरह हर मन में ठाठें मार रही है। पता नहीं एक हिन्दुस्तानी अतिथि के घर में होने से बच्चे भी एक्साइटिड हैं और मुझे अजीबो गरीब से सवाल पूछ पूछ कर हर बार अमेरिका से उठा कर भारत फेंक देते हैं। पल छिन में मैं प्रशांत महासागर को लांघ जाता हूँ और जा उलझता हूँ देश की तुच्छ पुच्छ सी उलझ गई उलझनों में।

“अंकल! क्या वहां शेर होते हैं?”

“हां बेटा होते हैं।”

“क्या शेर आदमी को खाते हैं?”

“हां बेटा!”

“फिर भी हिन्दुस्तान की आबादी इतनी ज्यादा क्यों है?” नन्ही सी जूलिया ने मुझे सवालों के घेरे में फांस लिया है।

भारत की बढ़ती आबादी देश को छोड़ विदेशियों की आंखों में भी किरकिरी की तरह चुभती है। जो शेर कुछ आबादी घटाते मार डाले गए हैं अब उन्हें कौन रोके? बढ़ती जनसंख्या कौन बताए कि हम पैदा हो हो कर देश पर कलंक थोप रहे हैं। भुखमरी बढ़ गई है और एक कमजोर राष्ट्र का हम निर्माण कर रहे हैं।

“बेटा! शेर अब बूढ़े हो गए हैं। कड़क मानव देह को पुराने दांतों से चबा नहीं पाते हैं। समझ गई न?” मैंने जूलिया की आशंका में आग में घी का काम किया है।

जूलिया की सशंक आंखों ने मुझे घूरा है। अब वो मरी बात पर विश्वास नहीं करना चाहती। सोफी और मिसेज रॉबर्ट मेरे दिए उत्तर पर मंद मंद मुस्कान से मुझे जूली को डाज मारने का मुबारकबाद दे रही हैं। जूली मेरे आगोश में चिपकी मन में कोमल शब्दों का संचार कर रही है। वाक पटुता की सरलता पर मुग्ध सा मैं उसे दुलारता रहा हूँ।

एक ही कार में सब लोग स्टॉकटन चल पड़े हैं। मैं और सोफी आगे बैठे हैं और रॉबर्ट परिवार पीछे की सीट पर जमा है। गाड़ी खाने की और बाहर बैठने के लिए छोटी फोल्डिंग कुर्सियों तथा मेजों से खचाखच भरी है। इस तरह पूरा साज सामान लेकर चलना मुझे अच्छा लगने लगा है। लगा है – अमेरिका में लोग जीवन के हर पल का आनंद उठा कर अमूल्य जीवन कलह या घुटन से काट देते हैं। ये भी तो एक कला है।

हरे भरे खेतों का झिलमिल शुरू हुआ है तो कुछ लोग दिखाई दे गए हैं। पास से गुजरने पर ही रंग भेद सी एक झाई सी उग आई है। एक विदेशी है – भारतीय है – हालांकि साज सज्जा में कोई भारी अंतर नहीं दिखाई पड़ता।

“आओ जी दलीप बाबू आओ!” एक वृद्ध ने हमारा स्वागत किया है। “साडे धन भाग जो तुसी आए हो। माराज तुसी सानू इज्जत बख्शी है।” एक अधेड़ उम्र का खालसा है जो कहता रहा है।

यहां गुरुद्वारे पर अपार भीड़ है। हिन्दू स्त्रियां नाच गाने में निमग्न हैं। साड़ी, कुर्ता सलवार और अमेरिकी स्कर्ट तथा बैलबॉटम भी अनुपस्थित नहीं हैं। आदमियों ने भी कुर्ते के नीचे पैंट सूट टाई तथा कुर्ता धोती चढ़ाया हुआ है। लगा है सारा भारत यहां मौजूद है।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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