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स्नेह यात्रा भाग सात खंड नौ

sneh yatra

सोफी का चेहरा एक लजाई सी भावना में डूब गया है। मैं अपने कहे कठोर वाक्य पर तनिक सकपका गया हूँ। खाना खा कर हम कॉटेज के बाहर छोटे लॉन में आ कर बैठ गए हैं। ताजा हवा के झोंकों ने हमारा स्वागत किया है।

“कितना अच्छा लगता है यहां?” सोफी ने बैठते हुए पूछा है।

“बहुत अच्छा!” कह कर मैं चुप हो गया हूँ।

अचानक सोफी के सामीप्य से पुरानी अनुभूतियों के सहारे और वो दबी इच्छा के उभरने से मेरा शरीर बेकाबू हो जाना चाहता है। फूलों से लदे बिरवे, कॉटेज पर छाई बेल और हवा में भरी मादक गंध एक मादक दृश्य बना रही है। मैंने सोफी के बालों से खेलना चालू कर दिया है। सोफी चुप है। मेरे नथुने किसी मॉलसरी या मोंगरा के फूलों जैसी गंध से भर गए हैं। सोफी का शरीर भी मुझे महकता लग रहा है। लग रहा है कोई आकर्षण उसके शरीर से रिस रहा है और मुझे बहुत समीप खींच लेना चाहता है।

“स्वीट ..!” मैं बहुत धीमे से फुसफुसाया हूँ।

“यस .. डार्लिंग!” सोफी ने साथ जैसा दिया है।

पता नहीं कहां से कोई हिम्मत और जोश मुझ में आकर भर गया है। मैंने सोफी को जोर से बांहों में लेकर मसोस डाला है। गर्म-गर्म होंठों पर प्रहार करता मैं सोफी की स्निग्ध और कोमल देह से नशा पीता रहा हूँ। सोफी ने भी भरपूर कोशिश की है कि मैं तृप्त हो जाउँ!

“हाऊ स्वीट?” मैं बुदबुदाया हूँ।

“ओह माई स्वीट स्वीट डार्लिंग दलीप, आई लव यू!” सोफी ने पूर्ण समर्पण जैसा किया है।

“आई लव यू – माई लव! माई स्वीट .. ओह डार्लिंग!”

अनायास और अनवरत ऐसे ही वाक्य मुख रित होते रहे हैं। हमें अमेरिका या हिन्दुस्तान भूल गए हैं। हम समय और दिशा का ज्ञान भूल गए हैं। हमारे इरादे और इच्छाएं पास खड़ी गुमसुम हमें देखती रही हैं और हम किसी अथाह खुशियों के समुंदर में गोते खाते रहे हैं।

“आई लव यू!” कह कर मैंने अनधिकार चेष्टा करनी चाही है।

“नो डार्लिंग! नॉट नाओ!” वही उत्तर सोफी ने दिया है और अलग हो गई है।

लगा है मैं एक बार फिर असफल हुआ हूँ। अचानक मोलसरी और मोंगरा की खुशबू ठंडी हवा बन गई है। एक ही वाक्य से चढ़ा तापमान जमाव के बिंदु पर ला कर रख गया है। मैं जम सा गया हूँ। मैंने सोफी को आंखों में घूरा है। सोफी की नीली आंखों में एक चमक, एक इरादा और एक आदर्श पहली बार झांक पाया हूँ। लगा है सोफी मुझे गिरने से हर बार बचा जाती है। लेकिन .. इस गिरावट तक क्यों खींच लाती है मुझे? क्यों मुझे हर बार वहां ला कर खड़ा कर देती है जहां से सिर्फ एक कदम का फासला बचता है? शायद यही एक कदम का अंतर प्यार और सेक्स में होता होगा।

“फिर कब?” मैंने उसी तरह पूछा है जैसे दिन तारीख और समय निश्चित कर लेना चाहता हूँ।

“समय आने दो! प्यार अभी अभी पनपा है इसे बढ़ने तो दो!” सोफी ने मेरा सर सहलाते हुए कहा है।

सोफी की लंबी लंबी उंगलियां मेरे खिन्न मन और ठंडे हुए शरीर को सहला सहला कर वापस सुनिश्चित अवस्था में ले आने का प्रयत्न करती रही हैं! एक थकान में चूर मैं सो जाने की चाह से भर गया हूँ।

“सोऊंगा!” मैंने सोफी से कहा है।

“चलो अंदर!” सोफी ने मुझे उठाया है।

दो अलग अलग बिस्तरों पर एक ही कमरे में हम दोनों सो गए हैं। अंधेरे में मैं सोफी को करवट बदलते देख पा रहा हूँ। मेरा अपना भी मन अजीब से भावों से भर गया है। एक वेदना बनी कोई कामना मन प्राण में भर गई है। कई बार मन आया है कि दोनों बिस्तरों के बीच की दीवार ढा दूं। अंतर पार कर जाऊँ, सीमाएं तोड़ दूँ। पर सोफी से डर लग रहा है। पता नहीं कैसे और कब नींद आ गई है। रात भर कुछ ऊहापोह जैसे स्वप्निल संसार में भटकता रहा हूँ।

“डार्लिंग! चाय ..” सोफी ने दुलार का हाथ सर पर फेरा है।

मैंने आंखें खोली हैं। सोफी कहीं जाने को तैयार है। घड़ी पर समय देखा है तो लगा है मैं देर तक सोया हूँ। सोफी के बदन से बहुत ही फ्रेश फ्रेश सी सुगंध मुख रित हो रही है।

“तुम जा रही हो?” मैंने अंगड़ाई तोड़ते हुए पूछा है।

“हम जा रहे हैं!” सोफी ने उत्तर दिया है।

“ओ रियली?” मैंने कुछ आश्चर्य पूर्वक पुष्टि करना चाहा है।

“हां! गाड़ी तैयार है। सामान बांध लिया है और सफर की पूरी तैयारियां हो गई हैं।”

सोफी ने साथ साथ चाय पीते पीते मुझे सब कुछ समझा दिया है। मैं सोफी की दक्षता पर एक बार फर रीझ गया हूँ।

“झटपट तैयार हो जाओ! मैं नाश्ता तैयार करती हूँ।” सोफी ने बताया है।

मैं एक टक सोफी को देखता रहा हूँ। क्या इसी तरह हर कदम पर मुझे सोफी का अनुसरण करना होगा? क्या मैं अपना अपनापन खो बैठूंगा? बे ढब से सवालों ने आ कर मेरे गरेबां में हाथ डाल दिया है। मेरा अपना अस्तित्व मिटता सा लगा है। शुद्ध भारतीय संज्ञा जैसा पुरुष दंभ मुझे दुत्कारता रहा है – जोरू के गुलाम, बड़े गुलाम, दुक्की के गुलाम आदि आदि नाम मानस पटल पर उभरते रहे हैं। लगा है सोफी मुझे कोई वैसे ही वस्त्र पहनाती जा रही है और मैं कोई हीलो हुज्जत नहीं कर पा रहा हूँ। शायद उसके फूटते रूप के उजास में मैं अंधा हो गया हूँ।

“अनु से बिना मिले कैसे जाऊंगा?” मैंने आपत्ति खड़ी कर दी है ताकि कुछ बचाव कर पाऊं।

“मैंने अनु को बता दिया है कि हम ठीक नौ बजे वहां पहुंच रहे हैं।” कह कर सोफी हंस गई है।

मैं फिर से अपमानित होता लगा हूँ।

“वैसे आज मूड नहीं है कि ..” मैंने बहाना मारा है।

“कमऑन डार्लिंग! सच, तुम बहुत तंग करते हो!” सोफी ने अंगड़ाई ले कर कहा है।

“और तुम ..? साली नकटी!” मैंने सोफी की नाक भिंच दी है।

“ओह यू .. बारबेरियन!” सोफी चीखती रही है।

लगा है सोफी किसी अनाम प्यार से भर गई है। मेरा यूं चिढ़ाना उसे भाया है। शायद वो मुझ पर छा जाना नहीं चाहती बल्कि प्रभावित करना चाहती है।

“मुझे पहले क्यों नहीं बताया?” मैंने सोफी को उसका किया जुर्म बताया है।

“इसलिए कि तुम गहरी नींद में सो रहे थे। थके थे!” कह कर सोफी ने मुझे एक हलकी चपत से मारा है।

मेरा मन अजीब से भावों से भर गया है। रात का रोष और शंका छट गई है।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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