Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

स्नेह यात्रा भाग पांच खंड नौ

sneh yatra

मैंने ऐवरेस्ट के होंठों का अवलोकन किया है। कोई जहरीला पदार्थ उन होंठों पर पुता सा लगा है। मेरा मन ही नहीं हुआ है कि कुछ करूं। वो ललक, वो चाह, वो प्रमाद और पागलपन नहीं कर पा रहा जो पहली रात छा गया था। सोफी के साथ उपजा था और सोफी के अधर …? उफ …!

“क्यों ..?”

“गरमी .. बला की गरमी .. घुटन है!” मैंने ऐवरेस्ट को अपनी परेशानी बताई है।

“चलो – एकांत में ..!” और वो मुझे ले चली है।

एकांत में हम आ बैठे हैं। एक दम पास बैठी ऐवरेस्ट मुझे किसी पहरुए की याद दिला रही है। पता नहीं क्यों मैं इतना बदला हूँ? एक हसीन लड़की आग्रह करे और मैं ..? अचानक मैंने कुछ फासले पर एक मुक्त हंसी सुनी है। साफ जाहिर है कि सोफी है। मैं उछल कर उसके पास जाना चाहता हूँ पर हिचक गया हूँ।

“यू आर .. ग्रेट!” ऐवरेस्ट ने मुझे फुसलाने के मतलब से कहा है।

“वहां कोई है!” मैंने बताया है।

“सो ब्लाडी वॉट? लेट्स हैव फन!” एक चट्टान जैसी मांग सामने आ खड़ी हुई है। शायद पास वालों ने सब सुन लिया है।

“नॉट नाओ!” जैसे वाक्य अंधेरे के काले पर्दे पर छप कर उभर आया है। मैं उठ कर चलने को हुआ हूँ। ऐवरेस्ट ने मुझे बांह पकड़ कर खींचा है।

“यू – लेट डाउन! सिट डाउन!” क्रोध उगला है उसने।

खिल्ल खिल्ल की हंसी पास से उठ कर गुलाब की पंखुरियों की तरह बिखर गई है। मैंने द्रुम लता की तरह साहस बटोर कर शर्म और हया के कपड़े उतार फेंकने का निश्चय कर लिया है। मैं प्रत्यक्ष में बोला हूँ – सोफी ..?

“यस सोफी नहीं ऐवरेस्ट ..” ऐवरेस्ट ने मुझे नीचे खींचा है।

“नॉट यू ईडीयट!” मैंने झल्ला कर डांटा है और उसी हंसी की दिशा में आगे बढ़ गया हूँ।

ऐवरेस्ट मुझे कोसती रही है। मैं निर्लिप्त सा आगे बढ़ गया हूँ। दो जोड़े में बैठे इंसानों में से एक सोफी है मैं जानता हूँ पर जोड़ा बिगाड़ने की अधमता करने से तनिक ठिठक कर रह गया हूँ।

“बैठो दलीप!” सोफी ने ही आग्रह किया है।

मैं बैठ गया हूँ। बैठने पर पता चला है कि दूसरा और कोई न होकर द्रुम लता है। अब वो एक लुंगी में लिपटी है। अब और भी मोहक लग रही है।

“क्या चल रहा है?” मैंने तनिक हलके मन से पूछा है।

मुझे किसी संग्राम की आशंका थी पर अब चुक गई है क्योंकि द्रुम लता का सहवास मुझे नहीं खला है। अगर वो कोई गैर होता तो शायद मैं अपने पर काबू खो बैठता!

“योगाभ्यास चल रहा है!” द्रुम लता ने उत्तर दिया है। “आप ने सराहनीय कार्य किया है मिस्टर दलीप!” भगवान द्रुम लता कहती रही है। “योग की क्रिया में ..” द्रुम लता ने जब कहना शुरू किया है तो मैं चिढ़ गया हूँ।

“क्यों बोर करती हो?” मन की सारी खीज और विषाद उगला है मैंने।

“ओके पेल्स!” कह कर द्रुम लता चली गई है।

एक चुप्पी में मैं पल भर बंधा रहा हूँ। एक शर्मनाक बात मुझे अंदर से खा रही है। अपने द्वंद्वों से लड़ नहीं पा रहा हूँ। हिम्मत बटोर कर मैंने सोफी का हाथ पकड़ लिया है।

“आई एम सॉरी ..!” भर्राए स्वर में कह पाया हूँ मैं।

“क्यों ..?”

“तुम्हें ..”

“तो क्या हुआ? मैं तुम्हें समझती हूँ दलीप। शायद तुम से ज्यादा ..”

एक कांच टूटा है। कोई पश्चाताप और ग्लानि का बोध है जो अब किसी पवित्र गंगा में जा कर मिल जाएगा। मैंने इस पवित्र गंगा को बांहों में भर लिया है। बिना कुछ कहे अधरों का वार किया है और हाथों को पूरी आजादी दे दी है। सोफी ने कोई विरोध न कर के साथ दिया है।

“कितना अच्छा मिलन है।” थोड़ा तृप्त हुआ हूँ तो बोला हूँ।

“अच्छी खोज है ..?” सोफी ने भी पहेली बुझाई है।

“आत्मा की खोज ..?” कहकर मैं हंस पड़ा हूँ।

पल भर पहले का मन पर लदा बोझ भार उतर गया है। मैं सच्चाई में एक बार फिर दलीप बन गया हूँ।

“नाराज हो गए थे ना?”

“हां!”

“मैं जानती हूँ। और जानती भी थी कि तुम आओगे ..!”

“इसलिए नहीं आई थीं?”

“हां! आना तो तुम्हें चाहिए था वरना ..”

“भूल का प्रायश्चित न कर पाता?”

“हां!”

“तुम .. बहुत ..” मैं रुका हूँ।

“रुको मत! झिझको मत दलीप वरना सब कुछ खो बैठोगे!”

सोफी बहुत ही गंभीर स्वर में बोली है। पिछले पल को भी पश्चाताप में जी गई है। दुख झेलती रही है और ..

“साली नकटी ..!” कहकर मैंने सोफी की सुडौल नाक को भिंच दिया है।

“एक बार और कहो फिर और कहो दलीप!” पागल हुई सोफी मुझसे लिपट गई है।

“ओ सोफी .. नकटी .. स्वीट .. माई एंजिल!” मैं भी प्रमादी बन तांडव नृत्य करने लगा हूँ। हम दोनों झूम उठे हैं। भीड़ में जा मिले हैं और अब जय जय शंकर के जय घोष में उन्मुक्त हैं। अब हम एक हैं। सबसे कट कर एक हो पाए हैं। द्रुम लता ठीक कहती है कि हमारे टुच्चे पन ही हमें खाते रहते हैं!

Exit mobile version