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स्नेह यात्रा भाग पांच खंड छह

sneh yatra

“मिटता कौन नहीं है! अगर लड़ाई न भी हो तो अमरौती किसने खाई है! अगर किसी श्रेष्ठ कार्य में जान जाए तो बुरा क्या? जो मजा लड़ने वाले जान जोखिम में डाल कर उठा जाते हैं उससे न लड़ने वाले वंचित रह जाते हैं। जो उल्लास, जो खुशी और जो गर्व लड़ने से उगता है वो सहज स्थितियों में कभी सुलभ नहीं हो पाता।” एक सुडौल शरीर वाला व्यक्ति बोल रहा है। लगा है – वो अगले पल में हम सब से लड़ जाएगा।

विश्व शांति के लिए लड़ना, लड़ाई बंद करना या लड़ाई का तरीका जानना कितने ही रोचक तथ्य उभरे हैं। लगा है आज का युवक अपने भविष्य के चिंतन में जागरूक है। मुझे खुशी हो रही है कि मैं इन सब के साथ हूँ। समय चुक गया है पर तर्क अभी भी बाकी है। प्रदीप ने मुझे बोलने को कहा है!

“हमें शांति चाहिए ..!” मैंने चिल्ला कर गंभीर कंठ से पुकारा है।

पल भर मैं चुप रहा हूँ। अब लोग मेरी ओर ध्यान मग्न होकर देखने लगे हैं।

“शांति पाने के लिए न लड़ना बुरा है और न मरना। चढ़ाव उतार अस्थिर संज्ञाएं हैं और शांति खुद कोई अस्थाई रूप नहीं रखती। शांति के साम्राज्य में मानव मन उत्पात करने को ललक उठता है। और तभी युद्ध की नींव पड़ जाती है। हमारे अपने अंतर द्वंद्व – जो हमें हरा जाते है वही युद्ध की स्थिति ला देते है। घर में परास्त हम कभी-कभी बाहर लड़ कर विजय पा जाना चाहते हैं ताकि एक हार को दूसरी जीत खा जाए। अगर हम इस हार जीत को मन से निकाल फेंकें और अपने ऊपर संयम करके कहें कि हम अच्छाइयों से हारे और बुराइयों से जीते तो हार-जीत का फासला हल हो जाता है। जो हमसे आगे हैं उसे मान्यता दे दें और जो पीछे वाला है उसे सहारा – बस!”

एक पल मैं रुका हूँ। तालियां बज उठी हैं। मैंने सोफी को घूरा है। वह घुटनों पर उलम कर दोनों हाथों को आसमान की ओर करके पीट रही है ताकि मैं देख सकूं। मैंने अपनी हार इस बृहत सभा के सामने जैसे स्वीकार ली है तभी साफी खुश है। वो अब भी शायद मेरी हार जीत से पृथक है और मुझ पर रीझ गई है।

“अपने आप मैं ही खोजने से शांति मिलती है। हमें विश्व के हर प्राणी को यहां तक बौद्धिक उन्नति करा कर लाना होगा कि वो स्वयं सोच सके – उसकी जीत और हार किसमें है। जब तक लोग भेड़ों की तरह किसी अगुआ का अनुसरण आंख बंद कर के करते रहेंगे तब तक न शांति मिलेगी न युद्ध बंद होगा!”

तालियां बजी हैं। मैं अपने आप को कोई धर्म गुरु या किसी धर्मराज से कम नहीं मान रहा हूँ। गर्व से उन्नत मैं कुछ ऊंचा उठ गया हूँ।

सभा के विसर्जन पर न नारे लगे हैं और न झूठी तारीफों के पुल बांधने के प्रयत्न हुए हैं। मैं भी चुपचाप अपने खेमे की ओर बढ़ा हूँ। तनिक बुरा सा लग रहा है मुझे। मुझे तो सीधा सोफी के पास जाना चाहिए था पर मैं जा नहीं पाया हूँ। मेरा अहंकार मुझे अब भी विपरीत दिशा में खींच रहा है और मैं इससे लड़ नहीं पा रहा हूँ। शायद इसी तरह लोग शांति और समझौतों को नकार देते हैं। अपने द्वंद्वों से परास्त होकर भी विपरीत दिशाओं में अग्रसर होते हैं और अपनी भूल अंत समय तक भी नहीं स्वीकारते और वो हमेशा-हमेशा के लिए हार जाते हैं।

“सर कुछ लोग गुल-गपाड़ा कर रहे हैं।” एक पुलिसिया ने आ कर सूचना दी है।

“कौन हैं?” मैंने कठोर स्वर में पूछा है।

“बाहर शहर से आए हैं। कहते हैं यहां छिनालपन और बदमाशियां चल रही हैं।”

“तो तुम बताओ न कि यहां क्या चल रहा है!” मैंने उसे डांट कर कहा है।

“हम को क्या मालूम सर!” उसने खीज कर कहा है।

मैं भभक उठा हूँ। एक अजीब तनाव पूर्ण स्थिति मुझमें उभरने लगी है। मन आया है कि इन लोगों को खुद जा कर गरिया दूँ। अपने आप को जिम्मेदार समझ कर मैं कदम रोक लेना चाहता हूँ।

“चलो!” कह कर मैं उस पुलिसिया के साथ हो लेता हूँ।

एक भीड़ जमा है। बूढ़े, अधेड़, बच्चे और कुछ युवा टोलियां जमा हैं। उनके हाथों में कुछ काले पर्चे और झंडियां हैं। कुछ के चेहरे विद्रूप हैं और कुछ हंस मुख लग रहे हैं।

“क्या कष्ट है आप लोगों को?” मैंने झिड़कते हुए पूछा है।

जमा भीड़ तनिक सहम सी गई है। अब तक का जोशोखरोश ठंडा पड़ता लगा है। कुछ व्यक्ति निर्लिप्त से लगे हैं और उस समूह से कदम दो कदम पीछे हट गए हैं। मुझे अपना देहली वाला जुलूस याद हो आया है – जहां तमाशबीन ज्यादा और कर्मठ लोगों का अभाव ही रहता है।

“ये अनैतिकता समाज का कलंक है!” उनमें से एक चीखा है।

जरूर कोई मास्टर होगा – मैंने तुरंत ताड़ लिया है। इन मास्टरों को आज कल आधे शब्द जो ये इस्तेमाल करते हैं – उनका मतलब तक नहीं आता।

“अनैतिकता क्या है? आप परिभाषा बताने का कष्ट करेंगे?” मैंने बहुत ही गंभीर कटाक्ष करके उसे परास्त करना चाहा है।

“हू हुल्लड़, नंगे धड़ंगे नाच, खुले आम लड़के लड़कियों का सहवास और धरम करम पर जूते रख कर हमारी मान मर्यादा का खून – सभी अवांछित है और अश्लील है।” उसने उसी जोश में भौंका है।

“क्या आपने ये सब देखा है?” मैंने दलील देते हुए पूछा है।

“सुना है!”

“गलत सुना है, बुजुर्ग वार! हम तो विश्व शांति, विश्व कल्याण और भूख जैसे गूढ़ विषयों के चिंतन में लगे हैं। वो सीखने का प्रयत्न कर रहे हैं जो आप ने हमें नहीं सिखाया। समझे आप!”

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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