Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

स्नेह यात्रा भाग नौ खंड तीन

sneh yatra

“बच्चों का क्या हाल है?”

“दुआ है सरकार और .. अर ..”

“बोलो-बोलो क्या बात है?”

“सुलोचना की शादी पक्की हो गई है।”

“सुलोचना ..?”

“मेरी बड़ी बेटी सरकार! उस दिन ..!”

“अरे हां-हां! उस दिन मैंने ही तो सुझाया था। अच्छी खबर है। कब ..?”

“बस सरकार! लगन भेज दी है। चट मंगनी और .. हींहीं ..” गोपाल एक निरीह सी हंसी हंस कर उपहास जैसी कोई उमस किसी रूप में भरता लगा है।

बेटी की शादी किसी भी बाप के मन में खुशियों के पारावार नहीं भरती। एक बोझ सा टलता लगता है। एक जिम्मेदारी हलकी होती लगती है और एक लड़का ढूंढने का महान संकट चुक जाता है।

“लड़का .. मेरा मतलब क्या करता है?”

“दो नम्बर का धंधा करता है सरकार। सुना है खूब पैसा रोर रहा है।”

“दो नम्बर का?” मैंने जान बूझ कर गोपाल को उकसाया है।

“हां सरकार! बिना दो नम्बर के कोई भी धंधा पानी आज कल नहीं चलता। यूं सीधे नौकरी चाकरी में क्या धरा है? नौकरी तो मोह भर रह गई है।”

गोपाल एक शर्मनाक बात को किस सहजता से कहे जा रहा है – मैं सोचता ही रहा हूँ। आज पैसे कमाने में कोई भी ऊंच नीच नहीं देख रहा है। वास्तव में इस धन के अभाव ने ही सारे मानक मूल्य सटक लिए हैं। हाव भाव में हर कोई फंसा एक ताक में बैठा बगुला भगत लगता है – मौका लगा कि माल दोस्तों का! सरे आम लोग दो नम्बर और तीन नम्बर के धंधे करते हैं और समाज उनका आदर करता है, उन्हें ही लड़कियां मिलती हैं, पूछ होती है ओर समाज में सम्मान मिलता है। लेकिन क्यों?

“मैं सोच रहा था .. सरकार ..” गोपाल सकुचा गया है।

“हां-हां कहो गोपाल!”

“आप को न्योता देने की बात ..?”

“अरे हां! वो न्योता – चलो मान लिया!”

“आओगे न सरकार?”

“हां! आऊंगा – अवश्य आऊंगा!”

“अगर नहीं आए तो मरी शरम उघड़ जाएगी सरकार .. नकद पांच हजार ..” गोपाल रुआंसा हो आया है। मैं अपने दुख दर्द भूल कर गोपाल के जर्जर चेहरे में जा धंसा हूँ। लग रहा है मैं हाथ में एक ललकती लहर पकड़ कर द्रोणाचल को धकेलने लग रहा हूँ। मूर्खता पूर्ण इस कार्य से कोई हास्य नहीं उपजा है। एक घोर ग्लानि से मन कुंद हो गया है। कहां क्या हो रहा है – समझ नहीं आ रहा है।

लेकिन कमरे में भी मेरा पसीना नहीं सूखा है। मैं आगे बढ़ कर अन्य विभागों में घूम जाना चाहता हूँ। समग्र लोगों के सामने आ कर मैं साबित कर देना चाहता हूँ कि मैं भी उनमें से ही एक हूँ और खूनी नहीं, उनका चहेता और कर्णधार हूँ। अचेतन मन बार-बार कहे जा रहा है – मिथ्या है ये सब दलीप! तुम इन के साथ कभी नहीं मिल सकोगे। बीच में पड़ी दरार कभी नहीं मिट सकती और एक अमीर कभी गरीब के साथ नहीं जुड़़ सकता। पर मैं जुड़ूंगा – मैंने बड़बड़ाया है।

“मुक्ति! गोपाल की लड़की की शादी है।”

“गोपाल ..?” मुक्ति ने शक जाहिर किया है।

“हां-हां गोपाल – लेकिन रूप में .. वो बूढ़ा वर्कर ..”

“ओह अब समझा सर! ये शादी ब्याह तो चलते ही रहते हैं।” मुक्ति ने मेरे इरादे को आया गया करना चाहा है।

“उसने मुझे न्यौता दिया है।”

“सर, ये तो कस्टमरी है। इनका फर्ज बनता है कि ..”

“और मेरा फर्ज?”

“यही कि – काम है, बिजी हैं आप! आई मीन – देहली मीटिंग में नहीं जाना?”

“मुक्ति ..!” मैं इंटरकॉम पर गरजा हूँ।

एक केस क्या खड़ा हुआ ये मुक्ति भी मुझे उल्लू समझने लगा है। मारे रोष के माथा फटा जा रहा है। पता नहीं क्यों मैं गलत राय या गलत बात सुन कर अपनी प्रतिक्रिया जज्ब नहीं कर पाता। ठंडा नहीं रह पाता जैसे कि .. त्यागी, नवीन .. और ..

“आई एम सॉरी सर! मेरा मतलब ..” सामने खड़ा मुक्ति मुझे फिर से भला लगने लगा है।

“आई एम सॉरी मुक्ति! आवेश में पता नहीं क्यों मुझे तैश आ जाता है।” मैंने भी अपनी गलती मानी है।

मुक्ति सामने जम कर बैठ गया है। आज उसका कोई स्वस्थ सा इरादा मैं तौल कर घबरा गया हूँ। वो मुझे जरूर कुछ बताने चला आया है। क्यों कि काम काज की कोई फाइल उसकी बगल में नहीं दबी है।

“सर! फ्रेंकली – वैरी फ्रेंकली आप इन मजदूरों में मिक्स होना छोड़ दें!” मुक्ति ने बेधड़क कहा है।

“इंसानियत छोड़ने को कह रहे हो?”

“सर! ये उनके और आपके हित में होगा! अभी इतना इनका स्तर नहीं है जो आपके विचारों की कदर कर सकें!”

“लेकिन मैं तो समझता हूँ?”

“इकतरफा कोई बात नहीं चलती सर। यहां तक कि ..”

“प्यार भी इकतरफा नहीं चलता?”

“यस सर!” कह कर मुक्ति तनिक मुसकुराया है।

मुक्ति लगता है – ठीक कह रहा है। लेकिन मेरे दिए वायदे का क्या होगा? अगर मैं नहीं गया तो राना ये सिद्ध कर देगा कि मैं सिर्फ जीत के यहां ही गया था और ..! लोग मुझे पक्का फरेबी और मक्कार मानने लगेंगे। एक अच्छाइयों की चादर उघड़ कर किसी विमानवीयता की लाश नंगी कर जाएगी! में किसी से नजर मिलाने के काबिल न रहूँगा। मैं एक सहम पीता-पीता गोपाल की बेटी की शादी में शरीक होने का तरीका ढूंढता रहा हूँ।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

Exit mobile version