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स्नेह यात्रा भाग दस खंड चौदह

sneh yatra

पूरा कलंगूट बीच देश विदेशों से आए हिप्पियों, विद्यार्थियों और भिन्न-भिन्न धर्म और समाज सुधारकों से भरा है। लगता है मेरे बीच के गुजरे समय में प्रदीप ने इस संस्था को और आगे बढ़ाया है। प्रदीप का सुघड़ चेहरा सामने उभरने लगता है।

“पिटकर आए हो?” जैसे वह मुझसे पहला सवाल पूछ बैठा है।

मैं उसे खड़ा-खड़ा घूरता रहा हूँ। सोच रहा हूँ – इसने बैठने तक के लिए नहीं पूछा, कोई हमदर्दी नहीं बरती और न कोई दिलासा का ठंडा शर्बत पिलाया? ये पुराना शौक है – गिरों में लात देना पर प्रदीप तो कभी से पुरानों में नहीं था। ये संघ – स्नेह यात्रा का मेला तो विश्व शांति जैसी भारी भरकम बातों के लिए चिंतन मनन का है। फिर ..?

मैं ठिठका हूँ। कोई भी मुझे इस समूह में पहचान लेगा। पुलिस प्रबंध के लिए तैयार है। उसके बाद ..?

“शायद सोफी मिल जाए? वो साथ-साथ जिए पल .. वो मुसकान शायद लौट आए? चल फैल जा। खोज ले अपना चैन!” मेरे बचे साहस ने साथ देते हुए कहा है।

एक लालच जैसी ही लालसा से मैं जूझने लगा हूँ। मेरी ठिठक आज भी खुलकर नहीं चाहती। मैं अपने आप को यहां हास्यास्पद स्थिति में बांध महज सोफी को पा जाने के लिए ले बलिदान नहीं करना चाहता।

“अगर सोफी मिल गई तो?” वही सम्मोहन मुझे सब्ज बाग दिखा रहा है। “जूते मारेगी वो तुम्हें – उसे दलीप नहीं प्रिंस दलीप चाहिए था।”

मैं स्नेह यात्रियों की भीड़ से पृथक कट कर ठंडी बालू पर अपना भारी मन पसार पड़ गया हूँ। मैं बेहद थका हूँ। बीच का मोहक दृश्य, रौनक और अथाह समुद्र का सामीप्य मुझे समो लेना चाहता है। मैं इसी प्रकृति का आकार जैसा बन गया हूँ जहां थका मानव मन भी रम जाता है। मैं सोफी के डर से भागा हूँ। पहचाने जाने के डर से भागा हूँ। पर सोफी की याद आज लाख कोशिश करने पर भी भुला नहीं पा रहा हूँ। वो स्नेह यात्रा के जिए समय के पल मुझे एक-एक कर याद हो आते हैं। कभी-कभी सुखद जीए पल भी यों अदृश्य हो जाते हैं – मैं अब अनुभव कर रहा हूँ। मैं कितना लाचार हूँ .. कितना डरा हुआ हूँ ..

लाउड स्पीकर पर बोलते वक्ता को कान सुन पा रहे हैं। मैं जानता हूँ रात आधी ढल चुकी होगी और अब कोई विश्व शांति के मूल सिद्धांतों को ठोस रूप दे कर ठोस कदम उठाने को कह रहा होगा! लेकिन मैं तो आज अपनी ही शांति खो बैठा हूँ। अगर प्रदीप को पता चल जाए तो शायद मेरे मुंह पर थूक देगा और ..

बीच पक्षियों जैसे कलरव और भयंकर रौरव से भरने लगती है। मैं जानता हूँ कि अब सभी प्रमादी नशे में धुत नाच उठे हैं। क्या विश्व कल्याण है? जैसे भाषण देने के बाद सब भटक गया है – खुशियां मनाई जा रही हैं। लेकिन एक कदम उठाने पर आदमी पर कितनी मार पड़ती है – शायद मेरा टीसता बदन जुबानी सुना सकता है। मन में आया है कि स्टेज पर जा कर खड़ा हो जाऊं और कहूँ ..

“बंद करो ये बकवास! ये तरीका गलत है। ये बाते सच हैं पर यों नशे में झूमने से कुछ भी घटित नहीं होगा।”

अचानक मुझे – ये बाते सच हैं, पर भी शक हुआ है। क्या सच है और क्या झूठ है – मैं पहचान तक नहीं पा रहा हूँ। मस्तिष्क की नसें फटने को हो रही हैं। एक असह्य सर दर्द मुझे तिल-तिल में काट रहा है। ठंडी रेत पर मैंने सर को टेक दिया है ताकि थोड़ी राहत मिले।

“हाय! लव!” सुनहरी बालों वाली लड़की ने मुझे तलाश लिया है।

“हाय बेबी!” मैंने बड़े ही बिलगाव से उत्तर दिया है।

“यों ..? लोनली …”

“हां!”

“क्यों? लगता है कुछ हार कर आए हो?”

“हां! बहुत कुछ!” मैंने आह भर कर मान लिया है।

वो पास बैठ गई है। मेरा सर सहलाने लगी है। मुझे अचानक सोफी याद हो आई है। आंखें खोल कर उसे घूरा है।

“लेकिन तुम ..?” मैंने भी सवाल पूछा है।

“तुम पर मन आ गया है!” वह हंस गई है।

पता नहीं कहां से दुनिया भर का गुस्सा उबल पड़ा है। अचानक हाथ सड़ाक-सड़ाक थप्पड़ों से उसका हुलिया बिगाड़ देने को हुआ है। पर मैंने ही रोक लिया है।

“मैं .. प्लीज लीव मी अलोन!” मैंने शालीनता बरतते हुए आग्रह किया है।

“हाऊ सेड! दुनिया में जो किले जीतने निकलता है – हारता जरूर है। यों एक अकेला मनुष्य सब के लिए क्यों जूझे? पागलपन है ये ..”

“तुम जाओ!” मैंने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं है।

“कम ऑन यार! लेट्स हैव फन!”

“नो बेबी! आई एम टायर्ड!” कह कर मैंने फिर बेजान से शरीर को रेत पर लंबा हो छोड़ दिया है।

“कम ऑन! हैव दिस ..” उसने एक कैपसूल मुझे दिया है।

पता नहीं क्यों मैं झट से वो कैपसूल निगल गया हूँ। उसने भी एक मेरे साथ खाया है। एक विषैली मुसकान से मुझे घूरे जा रही है। मानव सभ्यता के युग में क्या ये सब सही है – मैं फिर सोचने लगा हूँ तो उसने झिड़क दिया है।

“फोरगेट द पास्ट। फोरगेट द फ्यूचर एंड लिव दिस मोमेंट – ओनली वन मोमेंट – लव!” उसने मेरा गाल थपथपाया है।

मैं इतना थक गया हूँ कि वास्तव में सब कुछ भूल जाना चाहता हूँ। ये सुनहरी बालों वाली परी मुझे एक विचित्र लोक में खींच ले जाना चाहती है जहां अनुभूतियां बोलती हैं। कोई स्थाई रूप नहीं उनका और न कोई स्थाई प्यार, सम्मोहन! लेकिन सभी खुश हैं क्योंकि वो वहां हैं!

“किताबी परिभाषाओं में मैं भी भटक चुकी हूँ। जानते हो मुझे क्या मिला? धोखा, फरेब .. मक्कारी, नफरत! हां, हां लव तब मुझे लगा कि जीवन के रास्ते के दोनों ओर किसी के कुकर्मी मन से इन खयालों की याद हो आती है ताकि कोई भी यायावर गुजरे तो खबरदार रहे!”

“तो तुमने भी भटक कर देख लिया है?” मैंने खुश हो कर पूछा है।

एक हारा दूसरे हारे से मिल जाए, गिरे-गिरे दो मिल जाएं तो एक अजीब सा सामंजस्य स्थापित हो जाता है। दोस्ती बन जाती है और मन आपस में मिल जाते हैं।

“लेकिन अब? माई ब्लाडी फुट हू द हैल आर यू .. लेट्स गो टू हैल ..” वह कहती रही है।

लगा है वही वाक्य मेरे भी अंतर से मुखरित हो जाना चाहते हैं। मैं भी विगत को भूल कर कह देना चाहता हूँ – माई ब्लाडी फुट! मैं कह देना चाहता हूँ – गो टू हैल! मैं स्नेह यात्रा के पड़ाव को एक लमहे में भूल जाना चाहता हूँ। इन झूठी संस्थाओं को मैं शायद उखाड़ कर फेंक दूं जो इन कुरीतियों का प्रतिफल है।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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