Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

स्नेह यात्रा भाग दो खंड दो

sneh yatra

मुझे लगा है – मैं एक नए स्थान पर आ गया हूँ। अपना ही घर द्वार मुझे आज फिर से अपना लगने लगा है। घर के सारे नौकर चाकर मेरी चाकरी में जुट गए हैं। सभी का मत है – छोटे सरकार के बिना ये घर खाने को आता है।

मैं फिर से यहां बहारें ला देना चाहता हूँ। फिर उन्हीं लड़कों को पकड़ लाने के लिए मन लालायित है। दिमाग आया है कि फोन घुमा घुमा कर सभी को सूचना दे दूं कि मैं वापस आ गया हूँ। और उसके बाद ..?

लड़कियों का हुजूम उमड़ पड़ेगा। शैल की पार्टी कोई प्रोग्राम बना लेगी। बहार, मस्ती और बेफिक्री का राज होगा और होंगे हम सब! पर मैं टेलीफोन तक जा कर ही रुक गया हूँ। मुझे उनके सारे नम्बर याद हैं पर शायद अब मेरा अपना ही नम्बर चूक में पड़ गया है। शायद मैं अब उस गुट से बाहर हो गया हूँ।

खाने के टेबिल पर आज बाबा के साथ खाना खाने में अजीब सा आनंद प्राप्त हुआ है। हम दोनों ने आज अपने व्यापार और समाज से लेकर देश और विश्व तक की समस्याओं की समालोचना की है। बाबा ने मुझे फिर याद दिलाया है कि अनुराधा के आने के बस चंद दिन ही बाकी हैं।

अनुराधा आएगी और साथ में उसके दो बच्चे – प्यारे प्यारे बच्चे जिन्हें बाबा गोद में भर लेंगे, घंटों प्यार करेंगे, उनके साथ खेलेंगे, उनसे खूब मार खाएंगे और बस उन्हीं में रम जाएंगे। बाबा को बच्चों से बेहद प्यार है। अनुराधा और मैं हमेशा ही किसी बात पर तर्कों में फंसे झगड़ते ही रहेंगे। बाबा बीच में बोलेंगे ही नहीं। अनुराधा छोटी है पर शादी पहले होने और अमेरिका चले जाने पर अपने आप को बुजुर्ग मान बैठी है। पर मैं भी एक ही ढ़ीट हूँ – जो वो कहेगी मैं वो कभी नहीं करूंगा – बस!

श्याम मुझे लेने आया है। शीतल जी ने बुला भेजा है और हड़ताल के बारे में जो भी बातें हैं या जो भी उपलब्धियां होने वाली हैं उनमें मेरी राय लेना जरूरी है। मैंने बाबा के कमरे में जा कर कहा है – पिताजी! मैं पार्टी की मीटिंग में जा रहा हूँ!

“जाओ बेटे!” साधारणतया बाबा ने मुझे इजाजत दे दी है।

बाबा ने मुझे शंकाकुल नजरों से नहीं घूरा है। कोई आदेश निर्देश भी नहीं दिए हैं और न ही कोई सवाल जवाब की भूमिका बनाई है। इससे मुझे विश्वास मिला है कि अब बाबा को मुझ पर पूर्णतया भरोसा है ओर विश्वास है कि मैं जो भी करूंगा – गलत नहीं करूंगा! एक अद्भुत सी शक्ति मुझ में भर गई है। एक उमंग मुझ पर सवार हो गई है और एक खुशी ने मेरे चेहरे को खिला दिया है। उछलता कूदता मैं बाहर आया हूँ!

“चलो श्याम!” मैंने बड़े रौब से कहा है और कार स्टार्ट कर दी है। श्याम को शायद किसी महाभारत की आशंका थी पर वो अब निराश है ओर आश्चर्य चकित भी।

पार्टी का दफ्तर एक सड़ियल सा कमरा है। इसकी दीवारों पर बच्चों ने पेंसिल, चौक और कोयले से कुछ लकीरें, कुछ बातें और कुछ आख्यान लिख मारे हैं। एक भीनी भीनी सी गंध अंदर भरी है। सीमेंट के बने पापड़ उचल कर दीवार छोड़ने को किसी भी पल आतुर हैं। जो भी दो चार कुर्सियां हैं – जुड़ी-टूटी हैं और मेज पर एक गंदा हरा मेजपोश बिछा है। एक बिजली का बल्ब है जिसके चेहरे पर मनों धूल जम गई है। मन में आया है कि सभी एकत्रित नेता गणों को फटकारना आरंभ कर दूँ ओर कहूँ कि देश भक्तों पहले अपने आप को तो सुधार लो, फिर देश को देखना।

“आइए-आइए – दलीप जी आप तो वास्तव में ही महान हैं।”

“बहुत बड़े त्यागी हैं।”

“आप तो जनता के हैं। जनता आप को ही चाहती है।”

“अब तो सारा शहर भी आपको जान गया है।”

“अब तो आपका प्रभाव और भी बढ़ेगा!”

कितनी ही ऐसी बेतुकी बातें हैं जिन्हें मैं सुन कर भी नहीं सुन रहा हूँ। ये चापलूसी, झूठी प्रशंसा और भेड़ चाल ही हमारा सारा सत्यानाश कर जाती है।

शीतल जी ने उठ कर लोगों से कहा है – उपस्थित कार्यकर्ता गण तथा भइयों!

अब हमें अपने अधिकार मांगने हैं। हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना है और बढ़ती कीमतें रोकनी हैं। हमें काम मांगना है और साथ में सुरक्षा की व्यवस्था भी हमें चाहिए।

पूरा कमरा तालियों की ताल पर नाच उठा है। बीच बीच में किसी ने ऊंचे स्वर में कहा है – शीतल जी जिंदाबाद।

शीतल का चेहरा खिल गया है। लगा है उसका उद्देश्य तालियां बजने पर ही समाप्त हो गया है। भाषण देना ही आज के अगुआ का परम कर्तव्य है। अब शीतल जी ने आधा घंटा व्यर्थ की बातें करने में बिता दिया है। मैं बीच बीच में कहीं और भी उलझा हूँ और मैंने शीतल जी की बात नहीं सुनी है।

“अब दलीप जी आप से कुछ कहेंगे!” शीतल जी कहकर बैठ गए हैं।

“भाइयों!

हमें क्या करना है? शायद ये आप और मैं नहीं जानते। हमें क्या मांगना है – मैं भी नहीं जानता। मुझे तो मांगना ही बुरा लगता है।”

एक स्तब्ध सा वातावरण है जो शीतल जी का गला घोंटता जा रहा है। मैं भी पता नहीं क्यों शीतल जी पर कुपित होता जा रहा हूँ।

“हमें काम करना है – मांगना नहीं है। हम किससे मांगें और क्यों मांगें? पहला काम – आप का पार्टी दफ्तर कितना गंदा है – इसकी सफाई। अपने कपड़ों की सफाई। अपने अंदर स्वाभिमान और काम करने की लगन – सभाएं जोड़ने की नहीं।”

वही नीरवता अब हम सब को खा जाना चाहती है। सभी जमा लोग मुझे नई निगाहों से देख रहे हैं।

“कल मैं दूंगा योजना। मैं बताऊंगा पार्टी का संचालन और आप करेंगे। फिर देखेंगे कि गरीबी कैसे नहीं भागती, बेरोजगारी कैसे टिकती है और हम अपने लिए किस तरह नए घर बना लेते हैं! सरकार आप हैं, अपने भविष्य के निर्माता आप हैं और जब आप अपना भविष्य सुधार लेंगे तो देश सुधर जाएगा। मुझे और कुछ नहीं कहना है।” मैं चुपचाप आ बैठा हूँ। कोई भी करतल ध्वनि नहीं हुई है और न ही कोई शोरगुल मचा है। एक चुप्पी लौट आई है।

मेजर कृपाल वर्मा

Exit mobile version