” हम्म! रुको..! पहले गेस्टों को जाने दो.. अभी मत लेना..!”।
गेस्टों के जाने के बाद..
” अब लें लें माँ!”।
और माँ प्यार से मुस्कुराते हुए.. कहा करतीं थीं..
” हाँ! अब तुम खा सकते हो!”,।
” ये वाले स्नैक्स आपने बहुत ही टेस्टी बनाए थे! हमारे लिए भी कभी-कभी ऐसे ही बना दिया करो न.. माँ!”।
और माँ हमारी और एक लंबी सी मुस्कुराहट फेंकते हुए..
” हाँ! हाँ! क्यों नहीं! जब बोलो जभी बना दूँगी!”।
दअरसल आज खाली बैठे यूँहीं.. फेसबुक पर अपने अकाउन्ट में स्क्रॉलिंग करते हुए.. हमारी नज़र स्नैक्स रखने की सुंदर चार काँच की कटोरियों पर जा पड़ी थी.. और मन अपनी माँ के ड्रॉइंग रूम में सेन्टर टेबल पर रखी.. स्नैक्स प्लेट्स में रखे टेस्टी स्नैक्स में जा पहुंचा था।
हमारे यहाँ चार या छह बहुत ही सुंदर स्नैक्स प्लेट्स हुआ करतीं थीं.. जब भी कभी मेहमानों का आना होता.. माँ उनमें टेस्टी स्नैक्स रख.. महमानों को परोसा करतीं थीं.. और हमारी नज़र उन्हीं स्नैक्स पर रहा करती थी..
पर महमानों के जाने के बाद ही हमें उन्हें ख़त्म करने की परमिशन मिला करती थी।
जितनी देर महमानों का घर में बैठना होता था.. उतनी देर हमारी नज़र उन स्नैक्स पर ही रहा करती थी.. उनके जाते ही प्लेट साफ़ करके खाने का मज़ा ही कुछ और हुआ करता था।