” कैसी हो तुम…! और घर में सब कैसे हैं!”।
यही सब बातें करना और पूछना तुमसे अच्छा लगता था.. तुम्हारे संग यह श्रद्धांजलि शब्द बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता।
जाना तो एक न एक दिन सबको ही होता है.. पर जब कोई अपना सदा के लिए बिछड़ता है.. तो ऐसा लगता है.. कि अरे! यह क्या हुआ..!
यह ग़लत था।
तुम्हें गए.. दो साल हो गए हैं.. माँ! पर मन आज भी तुम्हारे वापस आने का इंतज़ार कर रहा है..
तुम्हें श्रद्धांजलि का मन न होकर.. तुम्हें वहाँ से वापस लाने का जी करता है.. जहाँ तुम चली गयी हो.. और दूर कहीं से हमें देख भी रही हो!
जो सच है.. वो बदल नहीं सकता माँ! इसलिए आज 24 दिसंबर को तुम्हारी दूसरी पुण्यतिथि पर तुम्हारी यादों को संग लिए हुए.. तुम्हें अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि अवश्य देंगें..
पर फ़िर भी किसी रूप में तुम्हारे लौट कर आने का इंतज़ार अवश्य रहेगा।
तस्वीर में से कब तक मुस्कुराकर देखती रहोगी माँ…!!
एकबार फ़िर लौट आओ..!!