
साजिश

उन के साम्राज्य का सोच तो सही था !
उन का सोच था कि हमारे उत्तराधिकारी अपने इस महान भारत को इस की पुरानी गरिमा से भी आगे के आयामों तक ले जांयगे ! उन का सोच था कि इस देश के नागरिक एक ऐसी आदर्श व्यवस्था की संरचना करेंगे जिसे लोग हैरत भरी निगाहों से देखेंगे …सराहेंगे …! उन्हें विश्वास था की देश में महान प्रतिभाएं अपने विस्तार पाने के लिए बे-ताब हैं …!
लेकिन उन की आशाओं के विरुद्ध – लड़ पड़े लोग !
भाषा को लेकर लडे हैं ….धर्म को लेकर लड़ रहे हैं ….प्रान्तों के लिए जंग जारी है ….! विभक्त होने का बुखार पूरे देश पर जोरों से चढ़ा है !
कारण – हम अपने साम्राज्य के सोच को कोई दिशा नहीं दे पाए हैं ! ब्रिटिश आए – अपना धर्म और अपनी भाषा साथ लाए …! हमारी भाषा और हमारे धर्म का न तो उन्होंने सम्मान किया न विकास किया ! मुग़लों के कारनामे तो और भी संगीन थे ! उन्हीं की भाषा और उन्हीं का धर्म चला !!
हम क्या करें ….? अनेंकों भाषाएँ …अनेकों धर्मों …और अनेकानेक विचार धाराओं को एक साथ बहने को कहा जा रहा है ! देश को एक साम्राज्य नहीं – धर्मशाला बनाने के प्रयत्न हो रहे हैं !
क्या हमारे साम्राज्य को समाप्त करने की ये कोई साजिश तो नहीं ….?
सोचो , मित्रो !
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